पूरे शहर में काट रहे चक्कर, कोई अस्पताल नहीं कर रहा भर्ती

केस-1

सारनाथ के रहने वाले 34 वर्षीय राजेश राजभर बाइक से गिर गए। उनकी गले की हड्डी कॉलर बोन टूट गई। एक्सरे कराया तो हट्टी कई जगह से टूटी मिली। चिकित्सकों ने पट्टी तो कर दी, लेकिन कहा कि बिना ऑपरेशन किए हड्डी नहीं जुड़ेगी। मोहित कई अस्पतालों में गया, लेकिन कहीं भी ऑपरेशन नहीं हो रहा है। एक प्राइवेट चिकित्सक से बात की, लेकिन ऑपरेशन के लिए बेहाशी वाले डॉक्टर की जरूरत होगी जो उपलब्ध नहीं है। वहीं जो चिकित्सक ऑपरेशन करता वह खुद कोरोना संक्रमित हो गया।

केस-2

सुंदरपुर की रहने वाली 56 वर्षीय मनीषा दीक्षित को अचानक उल्टी दस्त हो गई। कई अस्पतालों में भर्ती कराने का प्रयास किया, लेकिन कहीं कोई व्यवस्था नहीं हो पाई। उम्र ज्यादा होने के कारण उन्हें ऑक्सीजन लेबल भी कम हो गया। दो दिन तक घर पर ही इलाज किया, लेकिन स्थिति बिगड़ने लगी। उसके बाद लालपुर के कीर्ति अस्पताल में भर्ती कराकर इलाज शुरू कराया गया। परिजनों ने लगातार हो रही ऑक्सीजन की किल्लत के कारण अपने एक परिचित से ऑक्सीजन के सिलेंडर की व्यवस्था की।

केस-3

विकास शर्मा की उम्र 45 साल है। उनकी पित्त की थैली में पथरी है। चिकित्सक ने जल्द से जल्द ऑपरेशन की सलादी है। कभी भी उन्हें इसकी वजह से असहनीय दर्द होने लगता है। कोरोना संक्रमण के चलते किसी भी अस्पताल में ऑपरेशन नहीं हो सका है। अब विकास को कोरोना होना का भी डर सताने लगा है। दर्द के कारण कई बार उन्हें बुखार भी हो जाता है। चिकित्सकों का कहना है कि जब तक यह महामारी से कुछ राहत नहीं मिलती तब तक पेन किलर के सहारे ही समय काटना होगा।

ये तीन केस सिर्फ उदाहरण हैं, लेकिन ऐसे गंभीर मरीजों की संख्या बहुत ज्यादा है, जिनका कोरोना संक्रमण के चलते इलाज में परेशानी आ रही है। ऐसे मरीज को न तो सरकारी और न ही निजी अस्पतालों में सही प्रकार के उपचार हो रहा है। इसी जद्दोजहद में कई मरीजों की जान भी जा चुकी है। कुछ मरीजों की हालत गंभीर बनी हुई है। इसकी बड़ी वजह शहर के सरकारी और अधिकतर निजी बड़े अस्पतालों को कोविड अस्पतालों में तब्दील किया जाना है। नॉन कोविड मरीज डर के कारण इन अस्पतालों में नहीं जा रहे हैं।

बड़े कोविड हो गए, छोटे में संसाधन नहीं

कोरोना संक्रमण की दूसरी लहर ने पूरी व्यवस्था को चौपट कर रखा है। जिले में सरकारी अस्पतालों के अलावा करीब 53 निजी अस्पतालों को पूरी तरह से कोरोना मरीजों के इलाज के लिए कोविड अस्पतालों में तब्दील कर दिया है। इन अस्पतालों में कई प्रकार की बीमारियों का इलाज होता था, लेकिन इन दिनों केवल कोरोना की मरीजों को ही भर्ती किया जा रहा है। इन अस्पतालों में सामान्य बीमारी के मरीजों के लिए न तो आईसीयू और न ही वेंटीलेटर की व्यवस्था है, जो बचे हुए नॉन कोविड अस्पताल हैं उनमें मरीजों के अनुसार न तो सुविधाएं हैं और न ही मरीजों का इलाज करने के लिए चिकित्सक। ऐसे मरीज जिनको हृदय, सांस, किडनी जैसी बीमारी है। उन्हें दिक्कत होते ही अस्पताल में जाना पड़ा है। उनके लिए अब कोविड अस्पतालों में जाना जान जोखिम में डालना है। ऐसे मरीजों को इलाज की जरूरत है लेकिन वह कोविड की चपेट में नहीं है। इसी कारण परिजन ऐसे मरीजों को कोविड अस्पताल तक ले जाने से भी डर रहे हैं। यहीं वजह है कि इन मरीजों को अन्य अस्पतालों में इलाज भी नहीं मिल रहा है।

नर्स व पेरोमेडिकल स्टाफ कर रहे इलाज

लोगों की मजबूरी है कि वह अपने मरीज का घर में इलाज नहीं कर सकते। दवा, इंजेक्शन, ग्लूकोज चढ़ाने के लिए अस्पताल में भर्ती होना जरूरी है। ऐसे में लोग अ अपने मरीजों को ऐसे अस्पतालों में भर्ती करा रहे हैं, जहां केवल नर्स या पैरामेडिकल स्टाफ उनकी देखरेख कर सकता है। चिकित्सक की सलाह वह ऑनलाइन भी ले रहे हैं।

200 से ज्यादा सर्जरी अटकी

प्रमुख अस्पतालों के कोविड में तब्दील होने के कारण शहर में करीब 200 से ज्यादा सर्जरी अटकी हुई है। इन मरीजों की बीमारी का जल्द से जल्द ऑपरेशन होना था, लेकिन सभी को टाल दिया गया है। ऐसे मरीज को केवल दवा के सहारे ही इलाज पर छोड़ा गया है। पथरी, असलर, दांत के ऑपरेशन, हड्डी के ऑपरेशन कराने वाले मरीज को काफी दिक्कत हो रही है।

Posted By: Inextlive