चेतगंज में होती है मटका फोड़ तो दशाश्वमेध में डीजे संग होली की मस्ती गोपाल मंदिर में गुलाल और गुलाब संग होली


वाराणसी (ब्यूरो)शिव की नगरी काशी में होली खेलने का अपना अलग ही अंदाज है। कोई मटका फोड़ होली खेलता है तो कोई गुलाल और गुलाब संग सराबोर होता है। इसके लिए तैयारी एक हफ्ता पहले से शुरू हो जाती है। खासकर यूथ अपने इस फेस्टिवल को मिस नहीं करना चाहते। यही वजह है कि होली खेलने के लिए लोग बेसब्री से इंतजार करते हैं। इन्हीं में शामिल है चेतगंज, दशाश्वमेध, और गोपाल मंदिर की होली.

चेतगंज में मटका फोड़

चेतगंज की मटका फोड़ होली आज से नहीं मनायी जाती बल्कि 30 साल से परंपरा निभायी जा रही है। इस बार 25 मार्च को मटका फोड़ होली खेली जाएगी। इसके लिए चेतगंज व्यापार मंडल के व्यापारियों ने तैयारी शुरू कर दी है। लालबाबू का कहना है कि मटका फोड़ होली की परंपरा प्रतिस्पर्धा, साहस और मस्ती के बीच मनायी जाती है। मटका फोडऩे के लिए एक-दूसरे के ऊपर चढ़कर सीढिय़ां बनाते हैं फिर ढह जाते हैं। बार-बार करने के बाद भी सफल नहीं होते हैं। काफी मशक्कत के बाद 15 फीट ऊंचे मटके को होली की टोली फोड़ पाती है।

दुर्गाप्रसाद ने शुरू की

चेतगंज व्यापार मंडल के अध्यक्ष लालबाबू जायसवाल ने बताया कि 1993 में स्व। दुर्गा प्रसाद मोदनवाल ने मटका फोड़ होली की शुरुआत की थी। उस समय दस लोगों ने मिलकर अपनी मिठाई की दुकान के सामने सड़क के बीचोबीच करीब 15 फुट ऊपर रंग से भरा एक मटका बंधवाया था। यह घोषणा की कि जो इस मटके को फोड़ेगा उसे पुरस्कार दिया जाएगा। तब से यह परंपरा हर साल होली के दिन निभाई जाती है.

होती है खचाखच भीड़

मटका फोडऩे के लिए होली के दिन गजब की भीड़ होती है। लाल, काला तो कोई पीला चेहरा रंगे यूथ मटका फोडऩे के लिए पहुंचते हैं। अपने-अपने स्तर से हर कोई कोशिश करता है लेकिन सफल वहीं होता है जो बिना डरे लोगों की भीड़ के ऊपर चढ़कर मटकी फोड़ता है उसे पुरस्कार से सम्मानित किया जाता है।

दशाश्वमेध में होली

होली के दिन मोहल्ले, कॉलोनी में होली खेलने के बाद हुड़दंगियों की टोली मस्ती करते हुए दशाश्वमेध पहुंचती है। वहां पर हजारों की संख्या में डीजे के साउंड पर होली खेली जाती है। कोई मटकी फोड़ होली खेलता है तो डीजे पर नाचते-गाते अपने में मस्त रहता है। यहीं नहीं कई तो गंगा घाट किनारे एक-दूसरे को रंगने में मशगूल रहते हैं।

गुलाल संग होली

गोपाल मंदिर में गुलाल और गुलाब संग होली की परंपरा आज से नहीं बल्कि पांच सौ साल पुरानी है। काशी में होली का उत्सव रंगभरी एकादशी से शुरू होता है किन, यहां के पुष्टि मार्ग परंपरा का निर्वहन करने वाले वैष्णवजन वसंत पंचमी से ही होली के उल्लास में डूब जाते हैं। ब्रज की परंपरा के अनुसार काशी में वैष्णवजन 40 दिनों तक होली मनाते हैं।

होली का उत्सव

गोपाल मंदिर में वसंत पंचमी से फाल्गुन शुक्ल पूर्णिमा तक होली का उत्सव होता मनाया जाता है। इस दौरान राजभोग दर्शन, बागीचे की होली, रंगभरी एकादशी पर कुंज की होली होती है। तेरस के दिन भी बागीचे की होली खेली जाती है। महाशिवरात्रि से होली तक ठाकुर जी के शयन दर्शन होते हैं। 40 दिनों तक अष्ट सखाओं द्वारा रचित होली के रसिया के कीर्तन को कीर्तनकार ढोल, मृदंग और हारमोनियम आदि वाद्य यंत्रों के साथ गाते हैं। इस दौरान अबीर, फूल, चंदन, केसर से वैष्णवजन होली खेलते है।

चेतगंज में मटका फोड़ होली की परंपरा पिछले 30 साल से निभाई जा रही है। इसके लिए अभी तैयारियां शुरू हो चुकी हैं.

लाल बाबू जायसवाल, अध्यक्ष, चेतगंज व्यापार मंडल

गोपाल मंदिर में पिछले पांच सौ साल से गुलाब और गुलाल से होली खेलने की परंपरा है।

बृज किशोर, वैष्णव, गोपाल मंदिर

Posted By: Inextlive