औसतन हर दिन गंगा में डूबने से हो रही मौत 90 फीसदी बाहरी श्रद्धालु अलर्ट करने के बाद भी सेल्फी व स्नान कर रहे दर्शनार्थी

वाराणसी (ब्यूरो)आस्था की नगरी काशी में गंगा स्थान करना सौभाग्य की बात है, लेकिन दुर्भाग्य तब बन जाता है जब जरा सी लापरवाही आस्था की डुबकी को मौत के गोते में बदल दे रही है। काशी के सात घाट जहां, दर्शनार्थियों का स्नान के लिए जमावड़ा लगता है, वहां सबसे ज्यादा डूबकर मरने वालों की संख्या है। सालाना आंकड़ों पर नजर डालें तो गंगा में डूबकर मरने वालों की संख्या 120 से अधिक है, जिसमें 90 फीसद संख्या बाहर से आने वाले श्रद्धालुओं की होती है। संत रविदास से लेकर नमो घाट तक कुल 84 घाट हैं। खासकर तुलसी घाट, अस्सी घाट, शिवाला घाट, दशाश्वमेध घाट, चेतसिंह घाट, ललिता घाट, त्रिलोचन घाट पर स्नान के दौरान डूबने की घटनाएं ज्यादा होती हैं.

गर्मी में बढ़ जाती है 50 गुना संख्या

भेलूपुर थाना क्षेत्र के शिवाला घाट पर मंगलवार सुबह गंगा स्नान के दौरान बेंगलुरु के रहने वाले 35 वर्षीय श्रीनिवास अंदाज नहीं होने की वजह से गहरे पानी में चले गए। स्वीमिंग नहीं आने की वजह से वह डूब गए। इसे देखकर लोगों ने शोर मचाया, लेकिन गोताखोर के आने में लेट हो गया। जब उसे निकाला गया तो उसकी मौत हो चुकी थी। तीन दिन पहले सुल्तानपुर के रोहित के साथ आठ युवक गंगा स्नान करने आये थे। स्नान करते समय पांच युवक गंगा में डूबने लगे। तीन को डूबने से बचा लिया गया। एक लापता हो गया। दूसरे को ट्रामा सेंटर ले गए, जहां इलाज के दौरान उसकी मौत हो गई। गंगा में डूबने की घटनाएं सबसे अधिक गर्मी के दिनों में होती हैं, क्योंकि गर्मी में स्नान करने वालों की संख्या सामान्य दिनों से 50 गुना अधिक हो जाती है, जिसमें 20 फीसद संख्या बाहरियों की होती है.

सुरक्षा के नाम पर सिर्फ सांकेतिक बोर्ड

गंगा में कुछ घाटों पर जब डूबने वालों की संख्या बढ़ती है तो वहां पर प्रशासन की ओर से सांकेतिक बोर्ड लगा दिया जाता है। मजे की बात यह है कि बोर्ड भी उस जगह लगता है, जहां किसी की निगाह नहीं पड़ती है। स्वीमिंग एक्सपर्ट मनोज साहनी बताते हैं कि स्थानीय लोगों को घाट की सीढिय़ों और उसकी गहराई के बारे में जानकारी होती है। अधिकतर लोगों को स्वीमिंग भी आती है, लेकिन बाहर से आने वालों को इसकी जानकारी नहीं होती है। इसलिए स्नान के दौरान छोटी सी लापरवाही मौत की वजह बन जाती है। इसलिए इस मौसम में प्रमुख घाटों पर गोताखोरों की नियुक्ति होनी चाहिए.

कॉरिडोर बनने के बाद बाद भीड़ बढ़ी

श्री काशी विश्वनाथ कारिडोर बनने के बाद वाराणसी में दर्शनार्थियों और घूमने वालों की संख्या में जबर्दस्त इजाफा हुआ है। रोजाना एक लाख से अधिक लोग काशी आते हैं, जो बाबा विश्वनाथ का दर्शन और गंगा स्नान जरूर करते हैं। खासकर अस्सी से लेकर ललिता घाट तक स्नान करने वालों की भीड़ ज्यादा रहती है। इन्हीं घाटों के बीच में अधिकतर डूबने की घटनाएं भी होती हैं.

सीढिय़ों पर काई जमने से फिसलन

लगभग सभी घाटों पर सीढिय़ां होती हैं। किसी घाट पर 10 तो किसी पर 15 सीढिय़ां होती हैं, जो हमेशा पानी में डूबी रहती हैं। इसके चलते इन सीढिय़ों पर काई जम जाती है, जिसकी कभी सफाई नहीं होती है। इसके लिए स्नान करते समय सीढिय़ों का अंदाज नहीं होने पर दर्शनार्थियों के पैर फिसल जाते हैं और वे डूब जाते हैं। गंगा सफाई अभियान के सदस्य प्रभाकर दुबे कहते हैं कि गंगा से सिल्ट या कूड़े निकाले जाते हैं, लेकिन काई की सफाई नहीं होती है। अगर सफाई हो तो डूबने की घटनाएं कम हो सकती हैं.

बीएचयू विशेषज्ञों ने बताया था कारण

गंगा में डूबने की घटनाओं को लेकर पिछले साल बीएचयू के विशेषज्ञों ने रिसर्च रिपोर्ट की जानकारी दी थी। विशेषज्ञों के अनुसार गंगा के अपस्ट्रीम से लेकर डाउनस्ट्रीम तक कई स्थानों पर स्वाभाविक प्रवाह के साथ छेड़छाड़ हुई है। यह स्थिति घाटों के लिए लगातार खतरा पैदा कर रही है। आईआईटी बीएचयू के पूर्व निदेशक प्रो। सिद्धनाथ उपाध्याय ने बताया था कि प्रयागराज से काशी तक गंगा सर्पाकार में बहती हैं। कई इलाकों में नदी की धारा में भारी मोड़ है। बनारस में गंगा प्रवेश करने के बाद विश्वसुंदरी पुल से टकराती है। सामनेघाट पुल के पिलर से आगे गंगा की लहर सीधे घाटों की ओर तेज रफ्तार से बढ़ती है। यह अस्सी से लेकर केदारघाट तक प्रभाव डालती है और उसी रफ्तार में सीधे बहती निकलती हैं। इसी कारण गंगा में घाट किनारे के इलाकों में गहराई ज्यादा है, जबकि इससे काफी कम गहराई उस पार और बीच के चैनल में है.

डूबने का सिलसिला

6 जून: शिवाला घाट पर गंगा स्नान के दौरान बेंगलुरु के रहने वाले युवक की डूबने से मौत.

4 जून: रैपुरिया घाट पर गंगा में स्नान करते दो युवक डूबे, जबकि तीन को बचाया गया.

2 जून: कैथी घाट पर गंगा में स्नान करते समय एक युवक की मौत.

28 मई: दरभंगा घाट पर एक युवक की गंगा में डूबने से मौत हो गई। एनडीआरएफ ने शव बाहर निकाला.

27 मई: चौबेपुर के पेड़वा बर्थरा कलां घाट पर नहाने गए चार दोस्त तेज धारा में बह गए। तीन की डूबकर मौत हो गई.

26 मई: तुलसी घाट पर गंगा में मोबाइल से रील बनाने के चक्कर में आजमगढ़ के दो युवकों की मौत.

08 अप्रैल: शिवाला घाट पर गंगा स्नान करने आए बिहार से दोस्त के साथ एक युवक की डूबने से मौत हो गई.

बाहरी लोग ग्रुप में आते हैं, जिन्हें गंगा घाट का अंदाज नहीं होता है। बार-बार मना भी किया जाता है, लेकिन युवा होने के कारण वे बात नहीं मानते हैं। इसलिए डूबने की घटनाएं ज्यादा होती हैं.

संतोष दुबे, पंडा

गर्मी के दिनों में स्नान करने वालों की संख्या ज्यादा बढ़ जाती है। हर किसी पर नजर रखना संभव नहीं है। घाट किनारे मल्लाह या नाविक बैठे रहते हैं। अगर उनकी नजर पड़ती है तो वह डूबने वालों को बचा लेते हैं.

शंकर साहनी, नाविक

जिस घाट पर सीढिय़ां नहीं हैं या डूबने की घटनाएं होती हैं, वहां बोर्ड लगाकर लोगों को अलर्ट किया गया है। इसके अलावा जल पुलिस लगातार गंगा में गश्त करती है। समय-समय पर गंगा घाट किनारे स्थानीय थाने की पुलिस भी गश्त करती है.

आरएस गौतम, डीसीपी, काशी जोन

Posted By: Inextlive