-साइबर क्रिमिनल मोबाइल एप के जरिए जाल बुनकर कर रहे ठगी

-पब्लिक की सुविधा के लिए बनाए गए एप, साइबर क्रिमिनल कर रहे मिसयूज

देहरादून,

कोरोनाकाल में साइबर ठगों ने पब्लिक को झांसे में लेने और ठगने के नए तरीके खोज लिए हैं। साइबर क्रिमिनल मोबाइल एप के जरिए जाल बुनकर ठगी कर रहे हैं। पहले पब्लिक शॉपिंग या किसी भी तरह के बैंकिग ट्रांजेक्शन के लिए एटीएम का इस्तेमाल करते थे, तो साइबर क्रिमिनल एटीएम के जरिए पब्लिक को चूना लगा रहे थे। कोरोनाकाल में पब्लिक ने यूपीआई का ज्यादा इस्तेमाल करना शुरू कर दिया तो साइबर क्रिमिनल ने यूपीआई के जरिए ही अकाउंट पर सेंध मारना शुरू कर दिया है। इसमें साइबर क्रिमिनल मोबाइल एप डाउनलोड कराने के बाद फ्रॉड कर रही है। जिन मोबाइल एप को पब्लिक की सुविधा के लिए तैयार किया गया, उन एप का साइबर क्रिमिनल गलत फायदा उठा रहे हैं।

क्विक सपोर्ट

रिमोट एप से मारते हैं सेंध

कोरोनाकाल में कैश मनी का इस्तेमाल कम हुआ तो पब्लिक ने यूपीआई के जरिए ट्रांजेक्शन शुरू कर दिया है। लेकिन साइबर क्रिमिनल यूपीआई से आसानी से पब्लिक को ठगने लगे हैं। यूपीआई के जरिए पैसे का लेनदेन करने वालों को झांसे में लेने के लिए साइबर क्रिमिनल फ्रॉड के लिए रिमोट एप का इस्तेमाल कर रहे हैं। इन एप के जरिए जलसाज कहीं भी बैठकर यूजर के फोन को एक्सेस कर उसका पूरा कंट्रोल अपने ले लेते है। इस एप का इस्तेमाल जालसाज यूपीआई के जरिए पैसे की चोरी करने के लिए करते हैं। हालांकि ये एप कसी भी मोबाइल या लैपटॉप तो कहीं से एक्सेस करने की सहूलियत देता है। लेकिन जालसाज एप के जरिए लोगों के बैंक अकाउंट से पैसे की चोरी कर रहे हैं। साइबर फ्रॉड ऐप के डाउनलोड होने के बाद रिमोट डेस्क कोड की जरूरत पड़ती है। कोड मिलते ही ये यूजर के मोबाइल या कंप्यूटर स्क्रीन को आसानी से देख और कंट्रोल कर सकते हैं, जिससे स्क्रीन को रिकॉर्ड भी किया जाता है। स्क्रीन शेयर होने के साथ जालसाज यूजर की मोबाइल और कंप्यूटर की हर एक्टिविटी को मॉनिटर कर सकते हैं। यह बैंक डिटेल में सेंध लगाने का सबसे आसान तरीका है। जैसे ही यूजर अपने बैंक अकाउंट का यूजरनेम और पासवर्ड डालते हैं वैसे ही ये जानकारी जालसाज के पास पहुंच जाती है। सबसे चिंता वाली बात यह है कि ये एप फोन के लॉक होने के बाद भी बैकग्राउंड में चलते रहते हैं।

क्या करें-

-मोबाइल पर किसी भी एप को डाउनलोड करने से पहले उसके बारे में पूरी जानकारी कर लें।

-एप के काम करने के तरीके को भी सही तरह से समझ लेना चाहिए।

-कोई भी बैंक अपने ग्राहकों को एप डाउनलोड करने के लिए नहीं कहता।

केस 1-

दून निवासी एक महिला ने 497 रुपये की ऑनलाइन शॉपिंग की। जब कई दिनों तक ऑर्डर करने के बाद भी महिला को सामान नहीं मिला तो महिला ने कंपनी का कस्टमर केयर नंबर सर्च कर एक नंबर पर कॉल किया। कॉल पर सामने से एक व्यक्ति ने महिला को क्विक एक्सेस एप डाउनलोड करने को कहा। एप डाउनलोड करते ही महिला से एटीएम की डिटेल मैसेज मांगा, डिटेल देते ही महिला के अकाउंट से दो हजार रुपये निकल गए।

केस 2-

देहराखास निवासी एक व्यक्ति को किसी अज्ञात व्यक्ति ने कॉल कर खुद को एक ऑनलाइन सर्विस का कर्मचारी बताते हुए उसके ट्रम एंव ट्रेडिंग के बारे में बताया गया। अज्ञात व्यक्ति द्वारा पीडि़त को बैंक संबंधी जानकारी के लिए एनीडेस्क एप डाउनलोड करने को कहा गया। पीडि़त द्वारा एप डाउनलोड होते ही उसके बैंक अकाउंट से दो किश्तों में 24,999 व 23,000 रुपये निकल गए।

ये हैं एप -

एनीडेस्क

टीमव्यूअर

रिमोट एक्सेस वाली मोबाइल एप पब्लिक के ट्रेनिंग के परपज से बनाई गई है, साइबर क्रिमिनल इन एप का गलत इस्तेमाल कर रहे हैं। किसी भी एप का इस्तेमाल करने से पहले उनके बारे में सही जानकारी लें।

अंकुश मिश्रा, सीओ, साइबर क्राइम पुलिस स्टेशन

Posted By: Inextlive