-पुलिस कर्मियों को 'रोबोट' बनाने के तमाम उपाय किए गए हैं पुलिस एक्ट में

-सालों पुराने पुलिस एक्ट में नहीं बदले गए अब तक एक भी भत्ते

>DEHRADUN : पुलिस कर्मियों को रोबोट कहें तो गलत नहीं होगा। क्योंकि रोबोट मालिक के इशारे पर काम करता है तो पुलिस कर्मी अधिकारी के। रोबोट को खाने की जरूरत नहीं होती है तो पुलिस कर्मियों को महज जिंदा रखने के लिए खाना दिया जाता है। रोबोट की संवेदना नहीं होती है तो पुलिस कर्मियों की संवेदना को हालात मार देते हैं। बस जो कहा जाए वह करना होता है एक रोबोट की तरह।

बस ड्यूटी करो

दरअसल, पुलिस एक्ट में जो प्रावधान किए गए हैं उसके अनुसार पुलिस कर्मियों को रोबोट की तरह काम करना होता है। बिना विरोध किए उन्हें अपने सीनियर के आदेशों का पालन करना पड़ता है। चाहे सीनियर का आदेश नियम विरुद्ध ही क्यों न हो। पुलिस कर्मियों को रोबोट बनाने के लिए तमाम तरह के अन्य उपाय भी एक्ट में किए गए हैं। मसलन उनकी संवेदना को मारने के लिए उन्हें परिवार से दूर अन्य स्थानों पर तैनाती दी जाती है। त्योहारों पर छुट्टी की बिल्कुल मनाही होती है। कपड़ों के नाम पर साल में केवल दो जोड़ी वर्दी दी जाती है और खाने के लिए महज कुछ रुपए मिलते हैं। हालात खासे बुरे हैं।

नहीं उठा सकते हैं आवाज

हालात को बदलने के लिए पुलिस कर्मी आवाज भी नहीं उठा सकते हैं, क्योंकि उनके ड्यटी चार्ट में यह शामिल है। साफ है कि यदि उन्होंने धरना प्रदर्शन या फिर विरोध स्वरूप आवाज उठाई तो उनके खिलाफ विभागीय कार्रवाई की जा सकती है। दोषी साबित होने पर उन्हें ट्रांसफर करने के साथ लाइन हाजिर या फिर सस्पेंड तक किया जा सकता है। वह चाहकर भी कुछ नहीं कर सकते हैं। चाहे स्थिति कितनी भी बुरी क्यों न हो उन्हें बस काम करना होता है एक रोबोट की तरह।

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महंगाई बढ़ गई लेकिन भत्ते नहीं

:- साल में पुलिस कर्मियों को दो वर्दी दी जाती हैं। एक गर्म व दूसरी ठंडी, लेकिन हैरानी वाली बात यह है कि वर्दी की सिलाई के लिए महज भ्0 रुपए दिए जाते हैं।

:- महंगाई के इस दौर में पचास रुपए में नाश्ता भी भरपेट नहीं मिलता है, लेकिन पुलिस कर्मियों को आहार भत्ते के रूप में महज भ्0 रुपए दिए जाते हैं।

:- त्योहारों के दौरान छुट्टी पर पाबंदी लगाई जाती है। वजह शांति व्यवस्था बनाए रखने के लिए पुलिस की कमी बताई जाती है।

:- संवेदना को मारने के लिए पुलिस कर्मियों को परिवार से दूर दूसरे स्थान पर ड्यूटी करनी पड़ती है। हर तीन साल में तैनाती स्थल बदल दिया जाता है।

:- पूरे माह बाइक को दौड़ाने के लिए जो भत्ता दिया जाता है वह मात्र फ्भ्0 रुपए है। इसी में अपराधियों की धरपकड़ के लिए पूरे माह बाइक दौड़ानी पड़ती है।

:- बंदियों को खाना खिलाने के लिए पुलिस को महज क्ख् रुपए दिए जाते हैं। जाहिर है कि कर्मियों को अपने जेब से बंदी को खाना खिलाना पड़ता है।

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केरल के बाद दूसरा राज्य

केरल के बाद उत्तराखंड में वर्ष ख्008-09 में पुलिस एक्ट लागू हुआ। इसमें पुलिस सिस्टम को दुरुस्त रखने के लिए तमाम तरह के कायदे बनाए गए। जिनमें पुलिस के भत्ते सहित अन्य सुविधाएं भी शामिल हैं, लेकिन समय के साथ उस दौरान तय की गई सुविधाएं अब पुलिस कर्मियों को अखरने लगी है, क्योंकि महंगाई लगातार बढ़ती जा रही है।

'पुलिस कर्मियों के भत्ते बढ़ाने के लिए शासन को प्रस्ताव भेजा गया है, जिसमें कुछ भत्ते बढ़ाने की स्वीकृति मिल चुकी है। अन्य मामलों पर विचार किया जा रहा है.'

-निलेश आनंद भरणे,

एआईजी प्रोवजनिंग एंड मॉर्डनाइजेशन

Posted By: Inextlive