Varanasi: आप जिस एरिया में रहते हैं वहां आपकी गहरी पकड़ है? चप्पे-चप्पे और बच्चे-बच्चे को आप जानते हैं? फिजिकली फिट हैं और शार्प माइंडेड हैं? एडवेंचरस वर्क करना चाहते हैं? तो समझिये पुलिस को आपकी तलाश है. डरिये नहीं. पुलिस को आप जैसे लोगों की जरुरत है इन्फार्मर्स यानि मुखबिर के तौर पर. काम के बदले तनख्वाह भले न मिले मगर आप हो जाएंगे अपने एरिया की पुलिस के सबसे खास... पढिय़े क्यों और कैसे...?


फिर याद आ रहे मुखबिर आज पुलिस हाई-टेक है। सर्विलांस जैसी अचूक टेक्नोलॉजी पास है। स्मार्ट, इंटरनेट फ्रेंडली और गैजेट सेवी इंस्पेक्टर और सब इंस्पेक्टर की फौज है। फिर भी ज्यादातर मोर्चे पर फेल। क्राइम रोकना इनके लिए मुमकिन नहीं तो क्राइम के बाद भी भटकते रहना इनकी फितरत बन चुकी है। पहले ऐसा नहीं था। वो भी वक्त था जब मुखबिर का एक जबरदस्त नेटवर्क पुलिस के पास होता था। मुखबिर पुलिस डिपार्टमेंट की जान होते थे। मगर कुछ वजहों से पुलिस और मुखबिरों ने एक दूसरे से दूरी बना ली। नतीजा ज्यादातर मोर्चे पर पुलिस फेल्योर। मगर अब खुद पुलिस डिपार्टमेंट को लगता है कि उन्हें मुखबिरों की सख्त जरुरत है। तभी तो एक बार मुखबिरों को तलाश रही है अपनी पुलिस। हेडक्वार्टर से भी डायरेक्शन


एक बार फिर मुखबिरों का नेटवर्क तैयार करने का जिम्मा सिर्फ लोकल पुलिस का नहीं। बाकायदा इसके लिए हेडक्वार्टर से भी डायरेक्शन मिले हैं। यानि पुलिस अब हाई-टेक होने के बावजूद पुराने तौर-तरीके भी अपनाने की सोच रही है। ये नेटवर्क उन थानेदारों और दरोगाओं की हेल्प करेंगे जो शहर की गलियों, यहां के वाशिंदों और शराफत का लबादा ओढ़े लोगों से अनजान हैं। एक पुलिस ऑफिसर ने अनऑशियली बताया कि हेडक्वार्टर से भी इसके लिए डायरेक्शन हैं। हर थानेदार को अपने एरिया में बेहतरीन, तेजतर्रार और लोकल लोगों को साथ लेते हुए नेटवर्क तैयार करने को कहा गया है। तब हर मर्ज की थी एक दवाचाहे मर्डर हो, स्मगलिंग हो या किडनैपिंग हर वारदात को डिसक्लोज करने में मुखबिर अहम रोल प्ले करता रहा है। लगभग एक दशक पहले उस थानेदार को सबसे स्ट्रॉन्ग माना जाता था जिसके पास सबसे अधिक मुखबिर होते थे। मुखबिर वही होते थे जो एरिया के एक्टिव और दबंग होते थे। इनकी पकड़ इतनी अधिक होती थी कि किसी वारदात के पहले उसकी जानकारी थानेदार के पास पहुंच जाती थी। पुलिस ऑफिसर्स इनका ख्याल अपने फैमिली मेम्बर्स की तरह रखते थे। इतने इंपॉर्टेंट होने के बावजूद मुखबिरों के लिए पुलिस डिपार्टमेंट के पास कोई मद नहीं है। इसके चलते समय के साथ मुखबिरों की व्यवस्था खत्म होती गयी। बेनियाबाग कांड बड़ा फेल्योर

मुखबिरों के अभाव में पुलिस फेल्योर कितना ज्यादा है इसका सीधा एग्जाम्प्ल है बेनियाबाग हत्याकांड। न सिर्फ इस हत्याकांड के बाद आरोपी पुलिस की पकड़े से दूर घूमते रहे बल्कि पुलिस की आंखों में धूल झोंक एक-एक करके सभी ने कोर्ट में सरेंडर भी कर दिया। पुलिस हाथ ही मलती रह गयी। सिटी में लगातार बढ़ रही चोरियां, हर एरिया में एक्टिव चेन स्नैचर्स का गैंग, मुहल्ले-मुहल्ले में एक्टिव ड्रग सप्लायर्स व पैडलर्स, सिटी में बेखौफ एय्याशी की जिंदगी जी रहे बड़े माफिया गैंग्स के शॉर्प शूटर्स पुलिस को अक्सर ही चिकोटी काटते हैं। मिला साथ तो बनी बात पिछले कुछ महीनों से लगभग हर थानेदार और चौकी इंचार्ज अपने-अपने एरिया में मुखबिरों का नेटवर्क तैयार करने में जुटे हैं। इसके पॉजिटिव रिजल्ट्स भी सामने आ रहे हैं। कुछ थानेदारों ने बड़े क्राइम केस को साल्व भी कर लिया वह भी मुखबिरों की इंफार्मेशन पर। मगर अब भी थानेदारों को और ज्यादा एक्टिव मुखबिरों की जरुरत है। ये तलाश आगे भी जारी रहेगी। कमाई में भूले अपना फर्ज

मुखबिरों का पुलिस नेटवर्क से कटने के पीछे बड़ी वजह रही करप्ट पुलिस अफसरों का सामने आना। पुलिस डिपार्टमेंट के सोर्सेज बताते हैं कि जब पुलिस ने क्रिमिनल्स से हाथ मिलना शुरू किया, इंफार्मर्स की सूचना पर क्रिनिनल्स को पकडऩे की बजाय उनसे वसूली शुरू करनी शुरू कर दी तो उन्होंने अफसरों से कन्नी काटनी शुरू कर दी। और तो और, कुछ तो इतने भ्रष्ट निकले की उन्होंने मुखबिरों के नाम तक क्रिमिनल्स के आगे खोल दिये जिसकी वजह से उन्हें जान गंवानी पड़ी। इसके दर्जनों एग्जाम्प्ल्स हैं। इसके बाद पुलिस डिपार्टमेंट से उन्हें किसी भी तरह की सुविधा न मिलना। ये सारी वजहें मुखबिरों के नेटवर्क के खात्मे में अहम रहीं। अब मिलेगी सुविधाएं भी भले ही पहले के मुखबिर सुविधाओं से दूर थे मगर अब पुलिस डिपार्टमेंट नये मुखबिरों पर खास मेहरबान रहेगा। इसके लिए हर थाना एरिया में जो भी मुखबिर अच्छा काम करेंगे उन्हें थानेदार अपने रिसोर्स से इनाम दिया करेंगे। इतना ही नहीं, उनके फोन व कम्युनिकेशन के दूसरे खर्च भी वहन करेंगे। जरुरत पडऩे पर उन्हें जर्नी के केस में अपने खर्च पर भेजेंगे। फिलहाल मुखबिर के रूप में पुराने क्रिमिनल्स जो नार्मल जिंदगी जी रहे हैं, छुटभैये नेता, सोशल एक्टिविस्ट, चाय-पान-आमलेट बेचने वालों को शामिल करने पर ज्यादा फोकस है। ये भी व्यवस्था की जा रही है कि एक थाना एरिया का मुखबिर अपने संबंधित थाने को ही सपोर्ट करेगा। थानेदार बदलने पर भी मुखबिर यथावत रहेंगे। मुखबिरों के बदौलत मुखबिरों की नेटवर्किंग अब बीच-बीच में रंग दिखा रही है। मुखबिरों के जरिये ही पिछले कुछ महीनों में कई खुलासे हुए हैं। जरा देखिये - पिशाचमोचन में सुधीर के मेन हत्यारे को 24 घंटे के अंदर गिरफ्तार किया- लंका पुलिस ने हाई-फाई वाहन चोरों को गिरफ्तार किया
- एसओजी ने दर्जनों लोगों के रुपये लूटने वाले लुटेरे प्रकाश यादव को अरेस्ट किया- बीजेपी नेता विजय वर्मा के हत्यारोपी को एसटीएफ ने पकड़ा- शिवपुर बाइपास तरना में सेनेटरी वेयर कारोबारी सुशील सिंह की हत्या के आरोपितों की गिरफ्तारी- चेतगंज में हुई सुधीर दुबे की हत्या के मुख्य आरोपित को गिरफ्तार किया

Posted By: Inextlive