- आजादी का नाजायज फायदा उठाने में पीछे नहीं हैं हम बनारसी

- अपने मन के हिसाब से करते हैं सारे काम, न दूसरों की फिकर ना जिम्मेदारी का एहसास

- रूल्स तोड़ना समझते हैं शान, कर्तव्यों से ज्यादा करते हैं अधिकारों की बात

VARANASI: सौ साल तक संघर्ष और लाखों लोगों की शहादत के बाद हमें आजादी नसीब हुई। लेकिन हम नयी पीढ़ी के लोग इस आजादी सही कीमत कभी नहीं समझ सके। हमने तो आजादी के अपने ही मतलब गढ़ लिये हैं। 'जन गण मन' में आज देखिये कितने मनबढ़ हो गये हैं हम। आज की रिपोर्ट के बाद आप खुद फील करेंगे कि ऐसी आजादी शायद कहीं और है भी नहीं

मैं चाहे जो करुं मेरी मरजी

जन गण मन देश की स्वतंत्रता और अखंडता के वह तीन शब्द हैं जिसमें पूरे देश की भावनाएं समाहित है। लेकिन क्या हम जन गण के हिसाब से अपने मन का इस्तेमाल कर रहे हैं? शायद नहीं। यही वजह है कि आज आजादी के म्8 साल बीत जाने के बाद हमने अपने बनारस शहर को इतना बरबाद कर डाला है, जितना इसे अंग्रेजों ने भी बरबाद नहीं किया था। आज अपने बनारस की कई समस्याओं की वजह हमारा मनबढ़ मन है।

हम हैं प्रॉब्लम की वजह

गंदगी, सीवर सिस्टम, ट्रैफिक प्रॉब्लम, इंक्रोचमेंट, पब्लिक प्रॉपर्टी के साथ छेड़छाड़ जैसी कई प्रॉब्लम्स की बड़ी वजह हम खुद हैं। क्या हमने कभी सोचा है कि अपने अपने मन से इस शहर, इस समाज और इस देश के लिये क्या किया है? शायद नहीं सोचा होगा। हां, वो सारे काम हम और आप बहुत शौक से करते हैं जो हमारा मन कहता है। इस बात की हमें कोई फिकर नहीं होती कि इससे हमारे समाज के दूसरे लोगों को क्या तकलीफ होगी। हमारे शहर का क्या नुकसान होगा। हमारे देश की छवि कैसी होगी। चलिये अब आप भी देखिये कि कौन-कौन सी समस्याओं की वजह हम खुद हैं।

घर में सफाई, शहर से बेवफाई

अपना शहर यूपी के सबसे गंदे शहरों में एक है। कोई सड़क या गली ऐसी नहीं जहां कूड़ा बिखरा न दिखे। प्रॉपर कूड़ा न उठने के लिये जितना नगर निगम जिम्मेदार है, उतना ही हम और आप। घर को चमका कर रखना हमें आता है मगर कूड़े को नजदीकी कूड़ेदान तक पहुंचाना हमें नहीं आता। मुहल्ले में कोई भी खाली जगह देख हम कूड़ा फेंक देते हैं। इसे जानवर बिखेर देते हैं। इतना ही नहीं, हमारे यहां कूड़ा फेंकने का भी कोई फिक्स टाइम नहीं। कई बार कूड़ा उठाने वाले के जाते ही हम फिर गंदगी कर देते हैं। ऐसे में शहर साफ सुथरा दिखे तो कैसे?

थूकने के उस्ताद बनारसी

पान बनारस की शान है मगर इस शान को मुंह में घुलाने के बाद ज्यादातर लोग एक घटिया गुस्ताखी जरूर करते हैं। जहां मन में आया थूक दिया। पान, गुटखा, च्यूंगम या यूं ही बिना कुछ खाये हमें थूकने की बीमारी है। इस बीमारी की निशानी हर सरकारी और प्राइवेट बिल्डिंग, सड़कों पर, डिवाइडर्स पर, बस-ट्रेन, स्टेशंस, बाजार में दिखती है। बेहद शर्मिदा करने वाली इस हरकत से विदेशी सैलानियों के सामने हमारी खराब इमेज बनती है। मगर हमारे मन को आज तक कोई फर्क नहीं पड़ा। शहर गंदा हो रहा है सो अलग।

जैसे सब अपने बाप का हो

हमारी मनबढ़ई का बड़ा नमूना हम उन चीजों में दिखाते हैं जिसे पब्लिक प्रॉपर्टी कहा जाता है। चाहे रेलवे स्टेशन पर लगी बेंच हो, ट्रेन में लगे पंखे और ट्यूबलाइट हो। स्ट्रीट लाइट हो या सरकारी हैंडपम्प। इन सारी चीजों को हम पर्सनल प्रॉपर्टी समझते हैं। उसे नुकसान पहुंचाने, उसका गलत तरीके से इस्तेमाल करने में जरा भी संकोच नहीं करते। यहां भी हम अपनी आजादी का भरपूर गलत इस्तेमाल करते हैं।

नियम-कानून हमारे ठेंगे पर

बनारस के लोग नियमों की अनदेखी में बहुत आगे हैं। खासतौर पर ट्रैफिक नियमों को लेकर। यही वजह है कि अपने बनारस की ट्रैफिक पुलिस हर महीने ट्रैफिक नियम को पाठ पढ़ाने के नाम पर बनारसियों की जेब से क्7 से क्8 लाख निकलवा रही है। इसके बाद भी पब्लिक है कि ट्रैफिक नियमों को लेकर सुधरने का नाम नहीं ले रही है। बगैर हेलमेट और सीट बेल्ट के चलना, बाइक पर ट्रिपलिंग करना, रश ड्राइविंग, प्रेशर हॉर्न तथा ब्लैक फिल्म का इस्तेमाल करना हम शान समझते हैं।

जो मना करोगे, वहीं करेंगे

बनारसियों का मन एक और मामले में मनबढ़ है। हमें जिस चीज के लिये मना किया जाता है, हम वहीं काम करके खुद को तुर्रम खां समझते हैं। नो एंट्री में घुसना, नो पार्किंग में गाड़ी खड़ी करना, जहां यूरिनल करना मना हो वहीं दीवार पकड़ खड़े हो जाना हमारी आदत है। हम ये भी नहीं समझते कि ये सारी व्यवस्था शहर को अच्छा और सुविधायुक्त करने के लिये है। सब कुछ जान कर भी हम अपनी आजादी का दुरुपयोग कर समस्याओं को खत्म नहीं होने देते।

Posted By: Inextlive