गुरु के साथ मां का पूजन भी अत्यंत आवश्यक है। कई भक्तों के अनुसार पारस लोहे को सोना कर सकता है लेकिन सोना को पारस नहीं किंतु सद्गुरु अपनी सभी विद्या, सिद्धियां, युक्तियां आदि शिष्य को देकर शिष्य का अभयान्तर परिभार्जन करके उसे सद्गुरु हीबना देता है।

गुरु के साथ करें मां की भी पूजा

गुरु के साथ-साथ मां की भी पूजा करनी चाहिए क्योंकि मां ही आपकी पहली गुरु होती है। मां के ज्ञान से ही आप गुरु की ओर जाते हैं। इसलिए जितना फल मां की पूजा से मिलता है, कहते हैं कि माता-पिता के संस्कार ही सद्गुरु का मार्ग दिखाते हैं।वर्ष भर की सभी पूर्णिमाओं से अधिक गुरु पूर्णिमा का महत्व होता है। बच्चा मां का ही अंश होता है। जब बच्चा कुछ बोल नहीं पाता तब मां ही बच्चे की भावनाओं को समझती है इसलिए मां ही पहली गुरु या शिक्षिका होती है। पिता दूसरे गुरु हैं। मां का वातसल्य चाहिए तो पिता की सुरक्षा भी।

क्यों मनाते हैं गुरु पूर्णिमा

गुरु पूर्णिमा के साथ-साथ व्यास पूर्णमा भी कहा जाता है। भक्तों के अनुसार इस दिन सम्पूर्ण विश्व में गुरु की पूजा का महत्व है।व्याख्यात व्यास जिन्होंने हमें वेदों का ज्ञान दिया। उनकी ही स्मृति में यह पर्व सदियों से मनाया जा रहा है क्योंकि व्यास जी हमारे आदि गुरु हैं। अत: गुरुपूर्णिमा को गुरु की पूजा करने का विधान है। गुरु पूर्णिमा को अपने-अपने गुरुओं को व्यास का अंश मानकर पूजा करनी चाहिए।

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आम का दान करें

सनातन धर्म की मानय्ता के अनुसार गुरु पूर्णिमा को भगवान विष्णु की पूजा के साथ-साथ स्नाना का भी महत्व है। इस दिन आम का प्रयोग और आम के दान का महत्व है। इसी दिन से ही दाल का पाराठा और आम खाने की परंपरा है।

पंडित दीपक पांडेय