- बीआरडी मेडिकल कॉलेज में स्टूडेंट्स को प्रैक्टिकल के लिए नहीं मिल रही डेड बॉडी

- एमबीबीएस प्रथम वर्ष में ही मानव के शरीर संरचना पर करना होता है रिसर्च

GORAKHPUR: बीआरडी मेडिकल कॉलेज में एमबीबीएस की सौ सीटें हैं। एमबीबीएस की पढ़ाई करने वाले स्टूडेंट्स को प्रथम वर्ष के सिलेबस में ही मानव संरचना के बारे में जानना है। इसके लिए उन्हें डेड बॉडी की जरूरत होती है लेकिन बीआरडी को डेड बॉडी नहीं मिल पाने के कारण बिना रिसर्च ही इनकी पढ़ाई आगे बढ़ रही है। इसी तरह वे डिग्री भी ले लेंगे। ऐसे में सवाल उठता है कि बिना प्रैक्टिकल के क्या वे अच्छा डॉक्टर बन पाएंगे और क्या वे सही इलाज कर पाएंगे।

चाहिए 10 डेड बॉडी

मेडिकल कॉलेज के एनॉटमी विभागाध्यक्ष डॉ। रामजी के मुताबिक इस समय सिर्फ दो डेड बॉडी हैं। जिस पर स्टूडेंट रिसर्च कर रहे हैं। हालांकि मॉडल के रूम में एमबीबीएस के स्टूडेंट्स को डेड बॉडी दिखाई जाती है। विभाग में स्टूडेंट्स को मानव शरीर की प्रैक्टिकल जानकारी देने के लिए दस टेबल हैं। एक-एक टेबल पर 10-10 स्टूडेंट्स के प्रैक्टिकल की व्यवस्था है। ऐसे में सौ सीटों के लिए हर वर्ष कम से कम 10 डेड बॉडी की जरूरत है लेकिन पिछले दस वर्षो में 14 ही डेड बॉडी उपलब्ध कराई गई।

पुलिस से मदद नहीं

मेडिकल कॉलेज की ओर से डेड बॉडी के लिए कई बार पुलिस के आला अफसरों को पत्र लिखा गया। साथ ही उन्हें फोन पर इसकी जानकारी दी गई। लेकिन फिर भी कोई नतीजा नहीं निकला। विभाग के आला अफसरों के जल्दी-जल्दी बदल जाने और नये अफसर के आने के बाद नये सिरे से बात रखने में काफी परेशानी होती है। जिसके चलते यह मामला पेंडिंग हो जाता है।

बॉक्स

पोस्टमार्टम के बाद बेकार हो जाती है बॉडी

पुलिस से डेड बॉडी लेने में यह भी दिक्कत होती है कि वह पोस्टमार्टम के बाद डेड बॉडी देंगे जबकि तब यह रिसर्च के लायक नहीं बच पाती हैं। एनॉटमी विभागाध्यक्ष डॉ। राम जी ने बताया कि पोस्टमार्टम के बाद बॉडी इस स्थिति में नहीं होती कि उसे सुरक्षित रखा जा सके। इसलिए प्रयास किया जाता है कि ऐसी लावारिस डेड बॉडी उपलब्ध कराई जाए, जिसका पोस्टमार्टम न किया गया हो, लेकिन पुलिस विभाग बिना पोस्टमार्टम के डेड बॉडी देने में असमर्थता जता देता है। वहीं पोस्टमार्टम वाली डेड बॉडी बेकार हो जाती है और उसकी खून की नलीया कट जाती है जिसकी वजह से बॉडी में दवाए नहीं चढ़ाई जा सकती है। लेकिन जरूरत पड़ने पर कुछ पा‌र्ट्स मंगाए जाते हैं और उनके बारे में स्टूडेंट को बताया जाता है। डेड बॉडी नहीं मिलने से काफी परेशानी होती है।

इतनी मिली डेड बॉडी

वर्ष डेड बॉडी की संख्या

2007 4

2008 2

2010 4

2011 4

2015 1

2017 1

वर्जन

मेडिकल कॉलेज में डेड बॉडी की कमी के चलते मेडिकल स्टूडेंट्स को प्रशिक्षण में कठिनाई आती है। इसके लिए तमाम सेमिनार किए जाते हैं। देहदान की इस पहल के बाद मेडिकल शिक्षा प्राप्त कर रहे स्टूडेंट्स को बेहतर प्रशिक्षण देने में मदद मिलेगी। लेकिन अभी भी जागरूकता का अभाव है। जिसकी वजह से कोई देहदान नहीं करता।

डॉ। राम जी, विभागाध्यक्ष एनॉटमी मेडिकल कॉलेज

वर्जन

डेड बॉडी देने के निर्णय का अधिकार जिला प्रशासन को है। जिला प्रशासन यह निर्णय कमेटी बनाकर करता है। मेडिकल कॉलेज प्रशासन की ओर से पत्र मिला है जिसका जवाब दिया जा चुका है।

रामलाल वर्मा, एसएसपी गोरखपुर