- झंडीपुर में हजारों लोगों का जमावड़ा, सभी श्रद्धांजलि देने को आतुर

- स्ट्राइक वन मुख्यालय रखा गया पार्थिव शरीर, आज सुबह अंत्येष्टि

- सैन्य, प्रशासन और पुलिस अधिकारियों ने दी श्रद्धांजलि

मथुरा: जम्मू कश्मीर के कुपवाड़ा में दो पाकिस्तानी आतंकियों को ढेर करने के बाद शहीद हुए जिले के वीर सपूत बबलू सिंह के अंतिम दर्शन के लिए रविवार को हजारों आंखें तरसती रहीं। जम्मू-कश्मीर का मौसम खराब होने और दिल्ली में शहीद सैनिकों को अंतिम सलामी देने में हुई देरी के कारण शहीद का पार्थिव शरीर शाम को यहां आ सका, जहां सैन्य और प्रशासनिक अफसरों ने शहीद को श्रद्धासुमन अर्पित किए। शव को स्ट्राइक वन के मुख्यालय पर रखा गया है। सोमवार सुबह सेना की टुकड़ी शहीद के पार्थिव शरीर को लेकर उनके पैतृक गांव पहुंचेगी, जहां उनकी अंत्येष्टि होगी।

सुबह जैसे ही अखबारों से बबलू सिंह के शहीद होने की खबर लोगों को मिली, सैकड़ों की तादाद में लोग उनके पैतृत गांव झंडीपुर पहुंच गए। शहीद सैनिक के रिश्तेदार, परिजन और क्षेत्रीय लोगों का शाम तक गांव में भारी जमावड़ा हो गया था। सभी निगाहें गांव आने वाले रास्ते पर टिकी हुई थीं। वक्त गुजर रहा था और लोग शहीद के अंतिम दर्शन करने के लिए मार्ग के किनारे खड़े हो गए थे। देर रात तक हजारों लोग गांव में जमे हुए थे, लेकिन जब उन्हें शहीद का पार्थिव शरीर सोमवार को गांव आने की जानकारी मिली, तो भीड़ छटने लगी।

स्ट्राइक वन मथुरा स्टेशन से सुबह छह बजे शहीद के पार्थिव शरीर को लेकर सेना की टुकड़ी गांव झंडीपुर के लिए रवाना होगी। 6.40 बजे पार्थिव शरीर गांव पहुंचेगा और एक घंटे तक अंतिम दर्शन के लिए रखा जाएगा। इसके बाद मुखाग्नि दी जाएगी।

अफसरों ने दी श्रद्धांजलि

18 जाट रेजिमेंट में तैनात सैनिक बबलू सिंह का पार्थिव शरीर तीन बजे मथुरा हेलीकॉप्टर से मथुरा आना था, लेकिन शाम करीब साढ़े छह बजे बजे आ सका। एडीएम प्रशासन अजय कुमार अवस्थी ने बताया कि सोमवार की सुबह सेना की टुकड़ी शहीद के पार्थिव शरीर को लेकर उनके पैतृक गांव को रवाना होगी। इससे पहले स्ट्राइक वन मथुरा में डीएम निखिल चंद्र शुक्ला, एसएसपी बबलू सिंह, लेप्टिनेंट जनरल शौकिन चौहान, जनरल अॅफसर कमा¨डग, स्ट्राईक 1, डी ने वीर सपूत को श्रद्धा सुमन अर्पित किए।

साथ बैठाकर खिलाता था खाना

पिता मलूकचंद को बेटे की शहादत पर गर्व है। कहते हैं, देश के लिए उसने अपनी जान न्यौछावर कर दी। वह बताते हैं कि बबलू जब भी छुट्टी पर आता था, तो साथ ही रहता था और साथ ही बैठाकर खाना खिलाता था। बेटे ने अपना और गांव का नाम अमर कर दिया। इससे अधिक कोई भी बेटा अपने पिता को और क्या दे सकता है? उसकी कमी पूरी नहीं की जा सकती है, लेकिन उसकी यादों के सहारे जीवन के बाकी के दिन काटने ही हैं।

भाई गया पर नाम रोशन कर गया

शहीद के बड़े भाई चौधरी निर्भय सिंह ने बताया कि उसका भाई देश के लिए शहीद हो गया, लेकिन देश का नाम रोशन कर गया। उन्होंने कहा कि भारत माता के लिए अपनी जान की बाजी लगाने का सौभाग्य हर किसी को प्राप्त नहीं होता, जो उसके भाई का प्राप्त हुआ है। पर भाई तो भाई होता है। उसकी कमी हमे सदा ही खलती रहेगी।