- 14 साल की सजा पूरी करने पर फूटा आक्रोश

- जेल प्रशासन में मची खलबली, दिया आश्वासन

आगरा। सुप्रीम कोर्ट के नियमों में संशोधन के बाद भी सेंट्रल जेल में 14 साल से अधिक की सजा काट चुके कैदी अब भी सलाखों के पीछे हैं। सोमवार को ऐसे ही कैदियों का आक्रोश फूट पड़ा। वे जेल में ही हड़ताल पर बैठ गए। कुछ उम्रदराज कैदियों ने खाना ठुकरा कर भूख हड़ताल का ऐलान कर दिया। जेल प्रशासन में खलबली मच गई। आनन-फानन में जेल अधिकारी पहुंचे। आश्वासन देकर कैदियों को मनाया।

हड़ताल पर बैठे कैदी

सोमवार की सुबह साढ़े 10 बजे सर्किल नम्बर तीन के चार कैदियों ने खाना लेने से इनकार कर दिया। रिहाई की मांग को लेकर सेंट्रल जेल में पेड़ के नीचे बैठ गए। जेल प्रशासन को पता पड़ा तो उनके पसीने छूट गए। जेल प्रशासन के लोग उनके पास पहुंचे। उनके साथ अन्य सजायाफ्ता कैदियों की भीड़ शामिल थी। कैदियों ने साफ तौर पर अपनी रिहाई की बात की। रिहाई न होने पर भूख हड़ताल का ऐलान कर दिया।

आश्वासन के बाद माने कैदी

जेल प्रशासन ने उन्हें हड़ताल न करने की हिदायत दी, लेकिन वह मानने को तैयार नहीं थे। जेल प्रशासन ने उन्हें आश्वासन दिया कि उनकी रिपोर्ट की प्रोसेसिंग चल रही है। रिपोर्ट आते ही उनको छोड़ दिया जाएगा। जेल प्रशासन के आश्वासन के बाद कैदी माने और हड़ताल खत्म कर दी।

काट चुके हैं 14 साल की सजा

अधिवक्ता एसपी भारद्वाज ने बताया कि पहले आजीवन कारावास का मतलब 14 साल की सजा मानी जाती थी। बाद में उसे मरणोपरांत तक तय कर दिया गया। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने नियमों में संशोधन करते हुए कहा कि यदि चाल-चलन अच्छा है तो राज्य सरकारें अपने विवेक से उन्हें रिहा कर सकती हैं। हाईकोर्ट इलाहाबाद ने कुछ कैदी रिहा भी किए थे। इस वर्ष सेंट्रल जेल से करीब 13 कैदी रिहा किए, फिर भी करीब 350 कैदी अब भी ऐसे हैं जो सेंट्रल जेल में निरुद्ध हैं। ये कैदी भी अपनी रिहाई की मांग कर रहे हैं, लेकिन इनकी सुनवाई पर तलवार ही लटकी है। इनमें से किसी को 18, किसी को 20 तो किसी को 25 साल तक हो गए हैं। जेलर के मुताबिक विशाल अवस्थी को अभी 11 साल ही हुए हैं। 6 महीने पहले वह अलीगढ़ जेल से आए हैं। राधे श्याम को 20 से 25 साल हो गए। ओमवीर को 20 साल हो गए। जितने भी बंदी है, उनको 14 साल से अधिक हो चुके हैं। कैदियों की उम्र 60 वर्ष से अधिक बताई गई है।

कैदियों की होती है रिपोर्ट तैयार

समाजसेवी नरेश पारस ने मानवाधिकार आयोग में ऐसे कैदियों का मुद्दा उठाया था। नरेश पारस ने बताया कि अब भी बहुत सारे कैदी रिहाई के इंतजार में हैं। उनके मुताबिक रिहाई से पूर्व संबंधित थाना क्षेत्र से उनकी रिपोर्ट मांगी जाती है कि इनको छोड़ने से वहां पर क्या प्रभाव पड़ेगा। इस पर थाने से रिपोर्ट जाती है कि उक्त व्यक्ति शारीरिक रूप से अक्षम व वृद्ध है। यदि रिपोर्ट में यह दर्ज हो कि वह मानसिक रूप से अब भी ठीक है और स्थिति विपरीत हो सकती है, तो रिपोर्ट नेगेटिव हो जाती है। रिहाई अधर में लटक जाती है। बताया गया है कि रिहाई की रिपोर्ट में थाने में मौटी डिमांड तक कर दी जाती है।