कंबाइंड प्री मेडिकल टेस्ट में अपनी मेहनत के बल पर सफलता हासिल करने वाले मेधावियों की कहानी दूसरे प्रतियोगियों के लिए प्रेरणास्त्रोत की तरह है। सफलता में इनकी कड़ी मेहनत, लगन व पेरेंट्स के डिवोशन ने अहम रोल निभाया है। आईनेक्स्ट ने सीपीएमटी में सफल प्रतिभागियों से जाना उनकी सफलता का मूलमंत्र

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डाक्टर माता व पिता ने दी प्रेरणा

सीपीएमटी परीक्षा में पहले ही अटेम्प्ट में सफलता के झंडे लहराने वाली सोफिया मोहसिन ने परीक्षा में यूपी में जनरल कैटेगरी में 24वीं रैंक और ओबीसी कैटेगरी में सातवीं रैंक हासिल की। सोफिया ने बताया कि उनकी सफलता के पीछे उनके पैरेंट्स का सबसे अधिक योगदान है। उनकी मां डॉ। समीरा हमीद भी पेशे से डाक्टर हैं और स्टेट यूनानी हॉस्पिटल में मेडिकल ऑफिसर हैं। जबकि पिता डॉ। अनवर मोहसिन प्रतापगढ़ के कुंडा में सीएचसी में पोस्टेड हैं। सोफिया ने बताया कि उन्हें हमेशा से बॉयालोजी विषय ही पसंद रहा है। ग‌र्ल्स हाईस्कूल से 12वीं पास करने के बाद वे सीपीएमटी की तैयारी में जुट गई। मेडिकल परीक्षा की तैयारी कराने में उनकी मां डॉ। समीरा ने भी कठिन मेहनत की। सोफिया रोजाना तकरीबन 12 से 13 घंटे की पढ़ाई करती थी। रात में उनकी मां भी बेटी के साथ ही जागती रहती थीं। इसलिए वे अपनी मां को सबसे अधिक क्रेडिट देना चाहती है। सोफिया फ्यूचर में डाक्टर बनने के साथ ही पॉलीटिक्स में भी जाना चाहती हैं। वे कहती हैं कि अगर मौका मिला तो वे पॉलीटिक्स जरूर ज्वाइन करेंगी। सोसल साइट्स की बात करने पर सोफिया ने बताया कि वाट्सअप के अलावा वे कोई साइट यूज नहीं करती हैं। 12वीं पास होने के बाद हाल में ही उन्होंने अपनी एफबी पर प्रोफाइल बनायी है।

किसान पिता का सपना पूरा करने में लगे पांच साल

सीपीएमटी की परीक्षा में ओबीसी कैटेगरी में यूपी में 8वीं और जनरल कैटेगरी में 29वीं रैंक हासिल करने वाले सतीश कुमार बिन्द की कहानी भी ऐसी ही है। सतीश ने बताया कि उनके पिता पंधारी लाल बिन्द का सपना था कि उनका बेटा डाक्टर बने। सतीश भी शुरू से ही अपने पिता के सपने को जीने लगे थे। यही कारण था कि 2010 में 12वीं पास करने के बाद से ही वे मेडिकल परीक्षा की तैयारी में जुट गए। लगातार पांच अटेप्ट देने के बाद उन्हें ये सफलता मिली। सतीश बताते हैं कि उनके पिता ने अपने चारों बेटों की पढ़ाई की जमीन तक गिरवी रख दी थी। लास्ट इयर सतीश का सलेक्शन एआईपीएमटी के द्वारा बीडीएस कैटेगरी में हुआ था। लेकिन उनका सपना एमबीबीएस करने का था। इसलिए उन्होंने फिर से तैयारी की और इस बार सफलता उनके हाथ लगी। सतीश अपनी सफलता को बाद बस यहीं कहते हैं कि ये फूल हमें विरासत में नहीं मिला, किसी ने मेरा कांटों भरा बिस्तर नहीं देखा।