और बजरंगी से बजरंगी भाई जान बन गए सलमान

बजरंगी भाई जान की स्टोरी एक ऐसी बच्ची पर बेस्ड है, जो पाकिस्तान की रहने वाली है। अपने माता-पिता के साथ इंडिया दरगाह में मत्था टेकने आती है, लेकिन यहां अपने माता-पिता से बिछड़ जाती है, जो बोल नहीं पाती है। जिस पर सामान्य परिवार के युवक बजरंगी की नजर पड़ती है। वो उसे अपने साथ ले जाता है। उसका ख्याल रखता है और किसी तरह उसे पाकिस्तान ले जाकर उसके परिजनों से मिलाता है और बजरंगी से बजरंगी भाईजान बन जाता है।

सतीश हैं रियल लाइफ के बजरंगी भाई जान

इलाहाबाद के बलुआघाट एरिया में रहने वाले समाजसेवी सतीश केसरवानी रील लाइफ के बजरंगी भाई जान की तरह रियल लाइफ में करीब 10 वर्षो से बिछ़डे बच्चों को उनके परिजनों से मिलाने का काम कर रहे हैं। इस काम को सतीश ने जीवन का मिशन बना लिया है। सतीश अब तक अलग-अलग शहरों से भटक कर आए और शहर में आकर अपनों से बिछड़ गए करीब 240 से अधिक बच्चों को उनके परिजनों से मिला चुके हैं। बच्चों के साथ ही अगर बड़ों के आंकड़ों को मिला लिया जाए तो करीब 350 से अधिक लोगों की मदद कर चुके हैं।

इन्हें न मिलते बजरंगी भाई जान तो क्या होता

नाजिश के साथ पता नहीं क्या करता किडनैपर

2005 में बरेली में नाजिश नाम के एक बच्चे का किडनैप हुआ था। सड़क किनारे दुकान लगाने वाले ने बच्चे का अपहरण किया था और उसे इलाहाबाद ले आया था। किडनैपर बच्चे को प्रयाग स्टेशन छोड़ कर भाग गया था। प्रयाग स्टेशन पर सतीश ने नाजिश को देखा तो उसे अपने घर ले आए। 12 दिन तक अपने पास रखा और उसके परिजनों की खोजबीन जारी रखी। परिजनों का पता चलने पर उन्हें बुलाया और बच्चे को सौंप दिया।

तो आरती का क्या होता

2007 में घूरपुर इलाके के राजापुर गांव की आरती अपने-माता-पिता के साथ शहर आई थी। लेकिन भीड़ में वो पता नहीं कैसे उनसे बिछड़ गई। सतीश केसरवानी की नजर बच्ची पर पड़ी तो वे उसे अपने साथ ले गए। फिर खोजबीन शुरू की और आरती को उसके अपनों तक पहुंचाया।

कानपुर की जगह कहीं और पहुंच जाता राजकुमार

2007 में ही 11 साल राजकुमार अपनी मां की मौत की खबर पाकर अकेले ही मुंबई से कानपुर के लिए निकला था। लेकिन वो गलत ट्रेन में चढ़कर इलाहाबाद पहुंच गया था। लोकनाथ चौराहे पर बैठ कर रो रहा था। उसे सतीश के सहयोगियों ने देखा और चाइल्ड लाइन को सौंप दिया था। जहां से उसे कानपुर भेजा गया था।

किसी बदमाश के हाथ लगता उत्कर्ष

अल्लापुर के रहने वाले सोहन लाल पाल का छह वर्ष का बेटा उत्कर्ष फरवरी 2011 में अचानक लापता हो गया था। जिस पर समाजसेवी सतीश केसरवानी की नजर पड़ी और वे उसे अपने साथ ले गए। फिर मीडिया में खबर दी। फोटो के साथ न्यूज पब्लिश होते ही उत्कर्ष के परिजन सतीश केसरवानी के घर पहुंचे, जहां बेटा हंसता-खेलता हुआ मिला।

भटक कर बलुआघाट पहुंच गया था मासूम

मार्च 2013 में चार साल का एक मासूम बच्चा बलुआघाट इलाके में भटकता हुआ मिलता था। जिसे लोगों ने सतीश के पास पहुंचा दिया। उसने अपना नाम अदनान बताया। लेकिन पता नहीं बता पा रहा था। लोगों और पुलिस की मदद से उसके परिजनों का पता लगाकर उसे घर तक पहुंचाया गया।

90 साल के बुजुर्ग को खो बैठा था परिवार

शहर के रहने वाले दया शंकर श्रीवास्तव के 90 वर्षीय दादा करीब छह महीने से मिसिंग चल रहे थे। जिसकी वजह से पूरा परिवार डिस्टर्ब था। काफी खोजबीन की, पुलिस से शिकायत की, लेकिन वे नहीं मिले। थक हार कर परिजनों ने समाजसेवी सतीश से मदद की गुहार लगाई। सतीश ने खोजबीन शुरू की तो दयाशंकर श्रीवास्तव के दादा 12 दिन के अंदर ही मिल गए।

पांच साल से बिछड़े सौरभ को मिला परिवार

अतरसुइया के सदियापुर में सब्जी का ठेला लगाकर परिवार का गुजारा करने वाले मक्खन लाल केसरवानी के चार बेटों में दूसरे नंबर का बेटा सौरभ 2008 में लापता हो गया था। परिवार के लोग उसके मिलने की आस छोड़ चुके थे। खागा के रहने वाले एक व्यक्ति ने सतीश केसरवानी से संपर्क कर उन्हें जानकारी दी कि मुंबई में एक लड़का भटक कर पहुंचा है, जो इलाहाबाद का रहने वाला है। सतीश ने फिर कमिश्नर से मिलकर प्रयास किया, तो खागा में एक घर में सौरभ मिल गया। जिसे इलाहाबाद लाया गया और परिजनों को सौंपा गया।

काश इन्हें मिल जाए कोई बजरंगी भाई जान

नेशनल क्राइम रिकार्ड ब्यूरो के मुताबिक हर साल करीब एक से डेढ़ लाख लोग मिसिंग होते हैं, जिनमें बच्चों की संख्या सबसे ज्यादा होती है। सुप्रीम कोर्ट में भी ये सबमिट है, जिसमें कहा गया है कि करीब 50 से 60 परसेंट केस अनट्रेस्ड रह जाते हैं। 2011 से 2014 के बीच देश भर में करीब 3.25 लाख बच्चे मिसिंग हुए। जिनकी रिपोर्ट दर्ज हुई। इसकी रिपोर्ट पार्लियामेंट में भी प्रस्तुत की गई। महाराष्ट्र में सबसे ज्यादा बच्चे अनसेफ हैं। जहां मिसिंग चाइल्ड की संख्या सबसे ज्यादा है। केवल महाराष्ट्र में तीन से चार साल में 50 हजार से अधिक बच्चे मिसिंग हुए हैं।

पाकिस्तान और चाइना में कम है चाइल्ड मिसिंग

इंडिया में जहां हर साल करीब एक लाख बच्चे गायब हो जाते हैं, वहीं पाकिस्तान में मिसिंग चाइल्ड की संख्या पर ईयर केवल 3000 के करीब है। ये पाकिस्तान एम्बेसी की ओर से इंडिया गवर्नमेंट को अवलेबल कराया गया ऑफिशियल डॉटा है। पॉपुलेशन के मामले में इंडिया से आगे चाइना में भी चाइल्ड मिसिंग परसेंटेज इंडिया से काफी कम है। चाइना में पर ईयर मिसिंग चाइल्ड की संख्या 10 हजार के करीब है।

Report by: balaji.kesharwani@inext.co.in