7 round का process  
किसी भी अखाड़े में नागा साधु बनने का प्रॉसेज सात राउंड में पूरा होता है। इसे पूरा करने में दो साल भी लग सकते हैं और 10 साल भी। नागा साधु बनाने की घोषणा सामान्यतया कुंभ के दौरान की जाती है। कुंभ का आयोजन देश के चार शहरों हरिद्वार, नासिक, उज्जैन व इलाहाबाद में होता है. 

नागा के different name
अलग-अलग ALLAHABAD : धर्म और अध्यात्म का रास्ता दुनियादारी से मुक्ति दिला देता है और घर चलाने से ज्यादा आसान है। ऐसा ही कुछ सोचते हैं? तो यह गलत है। किसी भी अखाड़े का मेंबर बनने के लिए एक-दो नहीं बल्कि कई ऐसे एग्जाम पास करने होते हैं, जो बेहद मुश्किल होते हैं। मेंबर बनने के बाद भी मुश्किलें कम नहीं होतीं। इसके बाद भी कई ऐसी जिम्मेदारी निभानी पड़ती है, जो एक परिवार चलाने से कहीं ज्यादा कठिन होता है. 
प्लेस पर दीक्षा लेने वाले नागाओं के नाम भी अलग-अलग होते हैं। अखाड़ा मेंबर्स के मुताबिक इलाहाबाद के कुंभ में दीक्षा लेने वालों को नागा, उज्जैन में दीक्षा लेने वालों को खूनी नागा, हरिद्वार में दीक्षा लेने वालों को बर्फानी व नासिक वालों को खिचडिय़ा नागा बोला जाता है। वैसे हर नाम वाले नागा साधुओं की पोजिशन एक समान होती है। इन्हें अलग-अलग नाम से केवल इसलिए जाना जाता है, जिससे उनकी यह पहचान हो सके कि किसने कहां दीक्षा ली है।  

Certificate भी मिलता है
संस्कार लेने की इच्छा रखने वाले को सात प्रॉसेज पूरा करने के बाद नागा साधु की उपाधि दे दी जाती है। अखाड़ा के सीनियर साधुओं के मुताबिक उपाधि प्राप्त करने वाले को एक सर्टिफिकेट भी दिया जाता है। जिससे कहीं भी वे खुद के द्वारा लिए गए संस्कार को प्रूफ कर सकें। ये सर्टिफिकेट श्री पंच दशनाम की सहमति के बाद दिए जाते हैं। सर्टिफिकेट ब्रिटिश गवर्नमेंट के जमाने से दिया जा रहा है.

फिर शुरू होती है जिम्मेदारी
संस्कार लेने वाले को नागा साधु की ये उपाधि लेने में सालों गुजर जाते हैं। लेकिन ऐसा नहीं कि उपाधि मिलने के बाद इनकी मुश्किल सॉल्व हो जाती है। इसके बाद भी नागा साधु को अखाड़े की उन जिम्मेदारियों को पूरा करना होता है, जो किसी भी एक परिवार को चलाने की जिम्मेदारी से कहीं अधिक मुश्किल है। नागा साधुओं को उनकी सीनियॉरिटी व एलिजिबिलिटी के मुताबिक कोतवाल, पुजारी, भंडारी, कोठारी, बड़ा कोठारी, महंत व सेक्रेटरी जैसे पदों पर नियुक्त किया जाता है। इसमें सेक्रेटरी की जिम्मेदारी सबसे बड़ी होती है.

दिनचर्या भी होती है कठिन 
नागा साधुओं की दिनचर्या भी कठिन होती है। इनका पूरा दिन इंपॉर्टेंट अरेंजमेंट करने में ही बीत जाता है। सुबह चार बजे बिस्तर छोडऩे के बाद नित्य क्रिया व स्नान के बाद श्रृंगार पहला काम होता है। इसके बाद हवन, ध्यान, बज्रोली, प्राणायाम, कपाल क्रिया व नौली में ज्यादा समय निकल जाता है। ये क्रियाएं इनके लिए जरूरी होती हैं। पूरे दिन में एक बार शाम को भोजन करने के बाद ये फिर से बिस्तर पर चले जाते हैं.

भस्मी होता है main श्रृंगार
भस्मी नागा साधुओं का मेन श्रृंगार होता है। इसे लम्बे प्रॉसेज से तैयार करते हैं। जूना अखाड़ा के कोतवाल अखंड नारायण बताते हैं कि भस्मी में ताजे मुर्दे के चिता की राख या हवन कुंड की राख का यूज करते हैं। हवन कुंड में पीपल, पाखड़, रसाला, बेलपत्र, केला व गऊ के गोबर को भस्म करते हैं। इस राख को कपड़े से छानकर कच्चे दूध में इसका लड्डू बनाया जाता है। इसे सात बार अग्नि में तपाया और फिर कच्चे दूध से बुझाया जाता है। इस तरह से तैयार भस्मी को समय-समय पर लगाया जाता है। यही भस्मी नागा साधुओं का वस्त्र होता है.

ब्रह्मचारी 
नागा साधु का संस्कार लेने की इच्छा रखने वाले को ब्रह्मचारी बनाया जाता है। गृहस्थ जीवन से अलग करने के लिए उससे अगले कुंभ तक अखाड़े में ही सेवा भाव कराया जाता है.
-महापुरूष दीक्षा
इसके बाद महापुरूष बनाने के लिए दीक्षा दी जाती है। इसमें चोटी काटने, रूद्राक्ष पहनाने, भभूत लगाने, भगवा व लंगोटी देने की प्रक्रिया होती है। इसके साथ उसे प्रयोग करने की दीक्षा दी जाती है.
-बीजावन
महापुरूष बनाने के बाद बीजावन की प्रक्रिया पूरी की जाती है। इस प्रॉसेज में संस्कार लेने वाले को पूरी तरह से ब्राह्मण बनाया जाता है। इसमें यज्ञोपवीत व पिण्डदान का कार्य शामिल होता है.
-दिगम्बर
बीजावन के बाद संस्कार लेने वाले को दिगम्बर व श्री दिगम्बर बनाया जाता है। इस प्रक्रिया में लंगोट को खोलकर इंद्रिय को तोड़ दिया जाता है। धर्म ध्वजा के सामने तीन झटके दिए जाते हैं.
-बन जाते हैं नागा साधु
इन प्रक्रियाओं को पूरा करने के बाद श्री पंच दशनाम की सहमति से नागा साधु की उपाधि दे दी जाती है। श्री दिगम्बर बनने वाले कभी भी वस्त्र धारण नहीं करते हैं। दिगम्बर को कपड़ा पहनने की छूट होती है.

इन संन्यासियों के सात अखाड़े
-श्री पंच दशनाम जूना अखाड़ा
-आह्वान अखाड़ा
-अग्नि अखाड़ा
-महानिर्वाणी अखाड़ा
-निरंजनी अखाड़ा
-आनन्द अखाड़ा
-अटल अखाड़ा

संस्कार लेना और उसका पालन करना आसान नहीं है। कई प्रॉसेज को कई सालों में पूरा करना पड़ता है। हालांकि, ये सब संस्कार लेने के सेवाभाव पर भी डिपेंड करता है। संन्यासी बनने की इच्छा शक्ति को देखते हुए श्री पंच समय से पहले भी नागा साधु की उपाधि देने का निर्णय ले सकते हैं. 
रूद्र गिरी नागा बाबा, 
श्री पंच दशनाम जूना अखाड़ा, कोटा
7 round का process  

किसी भी अखाड़े में नागा साधु बनने का प्रॉसेज सात राउंड में पूरा होता है। इसे पूरा करने में दो साल भी लग सकते हैं और 10 साल भी। नागा साधु बनाने की घोषणा सामान्यतया कुंभ के दौरान की जाती है। कुंभ का आयोजन देश के चार शहरों हरिद्वार, नासिक, उज्जैन व इलाहाबाद में होता है. 

नागा के different name

अलग-अलग प्लेस पर दीक्षा लेने वाले नागाओं के नाम भी अलग-अलग होते हैं। अखाड़ा मेंबर्स के मुताबिक इलाहाबाद के कुंभ में दीक्षा लेने वालों को नागा, उज्जैन में दीक्षा लेने वालों को खूनी नागा, हरिद्वार में दीक्षा लेने वालों को बर्फानी व नासिक वालों को खिचडिय़ा नागा बोला जाता है। वैसे हर नाम वाले नागा साधुओं की पोजिशन एक समान होती है। इन्हें अलग-अलग नाम से केवल इसलिए जाना जाता है, जिससे उनकी यह पहचान हो सके कि किसने कहां दीक्षा ली है।  

Certificate भी मिलता है

संस्कार लेने की इच्छा रखने वाले को सात प्रॉसेज पूरा करने के बाद नागा साधु की उपाधि दे दी जाती है। अखाड़ा के सीनियर साधुओं के मुताबिक उपाधि प्राप्त करने वाले को एक सर्टिफिकेट भी दिया जाता है। जिससे कहीं भी वे खुद के द्वारा लिए गए संस्कार को प्रूफ कर सकें। ये सर्टिफिकेट श्री पंच दशनाम की सहमति के बाद दिए जाते हैं। सर्टिफिकेट ब्रिटिश गवर्नमेंट के जमाने से दिया जा रहा है।

फिर शुरू होती है जिम्मेदारी

संस्कार लेने वाले को नागा साधु की ये उपाधि लेने में सालों गुजर जाते हैं। लेकिन ऐसा नहीं कि उपाधि मिलने के बाद इनकी मुश्किल सॉल्व हो जाती है। इसके बाद भी नागा साधु को अखाड़े की उन जिम्मेदारियों को पूरा करना होता है, जो किसी भी एक परिवार को चलाने की जिम्मेदारी से कहीं अधिक मुश्किल है। नागा साधुओं को उनकी सीनियॉरिटी व एलिजिबिलिटी के मुताबिक कोतवाल, पुजारी, भंडारी, कोठारी, बड़ा कोठारी, महंत व सेक्रेटरी जैसे पदों पर नियुक्त किया जाता है। इसमें सेक्रेटरी की जिम्मेदारी सबसे बड़ी होती है।

दिनचर्या भी होती है कठिन 

नागा साधुओं की दिनचर्या भी कठिन होती है। इनका पूरा दिन इंपॉर्टेंट अरेंजमेंट करने में ही बीत जाता है। सुबह चार बजे बिस्तर छोडऩे के बाद नित्य क्रिया व स्नान के बाद श्रृंगार पहला काम होता है। इसके बाद हवन, ध्यान, बज्रोली, प्राणायाम, कपाल क्रिया व नौली में ज्यादा समय निकल जाता है। ये क्रियाएं इनके लिए जरूरी होती हैं। पूरे दिन में एक बार शाम को भोजन करने के बाद ये फिर से बिस्तर पर चले जाते हैं।

भस्मी होता है main श्रृंगार

भस्मी नागा साधुओं का मेन श्रृंगार होता है। इसे लम्बे प्रॉसेज से तैयार करते हैं। जूना अखाड़ा के कोतवाल अखंड नारायण बताते हैं कि भस्मी में ताजे मुर्दे के चिता की राख या हवन कुंड की राख का यूज करते हैं। हवन कुंड में पीपल, पाखड़, रसाला, बेलपत्र, केला व गऊ के गोबर को भस्म करते हैं। इस राख को कपड़े से छानकर कच्चे दूध में इसका लड्डू बनाया जाता है। इसे सात बार अग्नि में तपाया और फिर कच्चे दूध से बुझाया जाता है। इस तरह से तैयार भस्मी को समय-समय पर लगाया जाता है। यही भस्मी नागा साधुओं का वस्त्र होता है।

ब्रह्मचारी 

नागा साधु का संस्कार लेने की इच्छा रखने वाले को ब्रह्मचारी बनाया जाता है। गृहस्थ जीवन से अलग करने के लिए उससे अगले कुंभ तक अखाड़े में ही सेवा भाव कराया जाता है।

-महापुरूष दीक्षा

इसके बाद महापुरूष बनाने के लिए दीक्षा दी जाती है। इसमें चोटी काटने, रूद्राक्ष पहनाने, भभूत लगाने, भगवा व लंगोटी देने की प्रक्रिया होती है। इसके साथ उसे प्रयोग करने की दीक्षा दी जाती है।

-बीजावन

महापुरूष बनाने के बाद बीजावन की प्रक्रिया पूरी की जाती है। इस प्रॉसेज में संस्कार लेने वाले को पूरी तरह से ब्राह्मण बनाया जाता है। इसमें यज्ञोपवीत व पिण्डदान का कार्य शामिल होता है।

-दिगम्बर

बीजावन के बाद संस्कार लेने वाले को दिगम्बर व श्री दिगम्बर बनाया जाता है। इस प्रक्रिया में लंगोट को खोलकर इंद्रिय को तोड़ दिया जाता है। धर्म ध्वजा के सामने तीन झटके दिए जाते हैं।

-बन जाते हैं नागा साधु

इन प्रक्रियाओं को पूरा करने के बाद श्री पंच दशनाम की सहमति से नागा साधु की उपाधि दे दी जाती है। श्री दिगम्बर बनने वाले कभी भी वस्त्र धारण नहीं करते हैं। दिगम्बर को कपड़ा पहनने की छूट होती है।

 

इन संन्यासियों के सात अखाड़े

-श्री पंच दशनाम जूना अखाड़ा

-आह्वान अखाड़ा

-अग्नि अखाड़ा

-महानिर्वाणी अखाड़ा

-निरंजनी अखाड़ा

-आनन्द अखाड़ा

-अटल अखाड़ा

ajit.shukla@inext.co.in

संस्कार लेना और उसका पालन करना आसान नहीं है। कई प्रॉसेज को कई सालों में पूरा करना पड़ता है। हालांकि, ये सब संस्कार लेने के सेवाभाव पर भी डिपेंड करता है। संन्यासी बनने की इच्छा शक्ति को देखते हुए श्री पंच समय से पहले भी नागा साधु की उपाधि देने का निर्णय ले सकते हैं. 

रूद्र गिरी नागा बाबा, 

श्री पंच दशनाम जूना अखाड़ा, कोटा