प्रयागराज (ब्‍यूरो)। अर्थ और आधुनिकतावादी दुनिया में जहां युवा पैसा और लक्जरी लाइफ की चाहत में पूरा वक्त लगा रहे हैं। वहीं दो लोग ऐसे भी हैं जो अपना वेशकीमती वक्त और जीवन धरती के अमृत यानी भू-गर्भ जल स्तर को बचाने में खपा रहे हैं। इनमें एक का नाम राम बाबू तिवारी है। वह गोविंद बल्लभ पंत सामाजिक विज्ञान संस्थान झूंसी के शोध छात्र हैं, तो दूसरे पूर्व पार्षद कमलेश सिंह हैं। कमलेश सिंह प्रयागराज शहर के रहने वाले हैं। बुंदेलखण्ड में पानी के लिए संघर्ष देख चुके शोध छात्र ने जल संरक्षण को लेकर जनजागरूकता का प्रयास इलाहाबाद अब प्रयागराज से शुरू किया। गांव-गांव और गली-गली से शुरू हुई उनकी चौपाल और भू-गर्भ जल संरक्षण की यात्रा अनवरत बढ़ती जा रही है। नि:स्वार्थ भाव से इनके इस संघर्ष की भनक लगी तो मन की बात कार्यक्रम में प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने इस शोध छात्र से बात की। आज, आप कह सकते हैं कि इन 'वाटर हीरोजÓ से समूचे समाज के हर वर्ग को सबक लेनी चाहिए। आईए आप को बताते हैं कि जल संरक्षण के लिए संघर्ष करने का विचार इनके मन में कहां से और कैसे आया।

पीसीबी छात्रावास से शुरू की पहल
शोध छात्र राम बाबू तिवारी मूल रूप से बुंदेलखण्ड बांदा जिले में स्थित अधांव गांव के निवासी हैं। पेशे से टीचर रहे उनके पिता शिवमूर्ति प्रसाद तिवारी अब इस दुनिया में नहीं हैं। वह कहते हैं कि हमारे बुंदेलखण्ड एरिया में पानी के संकट से भला कौन नहीं परिचित है। उनकी मां सरस्वती देवी व अन्य महिलाओं को एक से दो किमी दूर से पानी घड़े में लाना पड़ता था। बात उन दिनों की है जब वे वहां इंटर तक की पढ़ाई कर रहे थे। इंटर की पढ़ाई के बाद आगे की शिक्षा ग्रेजुएशन के लिए 2011 में इलाहाबाद (प्रयागराज) आ गए। यहां आने के बाद वे इलाहाबाद यूनिवर्सिटी में एडमिशन मिले। इसके बाद सर पीसीबी छात्रावास में उन्हें कमरा मिल गया। अपने गांव घर में पानी के संकट और कीमत समझ चुके राम बाबू तिवारी यहां हास्टल में रहकर पढ़ाई करने लगे। बताते हैं कि इस छात्रावास में नहाने के लिए उन दिनों स्नान के लिए सावर यानी फव्वारा लगा हुआ था। गांव में पानी की त्रासदी देख चुके राम बाबू कहते हैं इस फव्वारे में नहाते वक्त कम से कम पंद्रह बीस बाल्टी पानी बह जाता था। यहां पानी की इस उपलब्धता और गांव के संकट को देखकर आए राम बाबू आश्चर्य चकित थे। यह नहीं समझ पा रहे थे कि एक हमारा बुंदेलखण्ड है जहां नहाना तो दूर, पीने के लिए भी पानी का संकट व संघर्ष करना पड़ता है। और एक यह हास्टल है जहां पानी की कोई कीमत ही नहीं करता। जिसका जितना मन हो रहा बर्बाद कर रहा। बस राम बाबू तिवारी के दिमाग में यही विचार व तस्वीरें एक नई शुरुआत की ताकत बन गईं, और वह जल संरक्षण के लिए लोगों को जागरूक करने का संकल्प ले डाले।

ऐसे बढ़ा जल संरक्षण में संघर्षों का सफर

आज बुंदेलखण्ड के हालात पर शोध कर रहे राम बाबू तिवारी कहते हैं कि जल संरक्षण जन जागरूकता की शुरुआत वह उसी सर पीसीबी छात्रावास से शुरू कर दिए।
हॉस्टल के छात्रों को जोड़कर बुंदेखलखण्ड में जल समस्या व यहां बर्बाद किए जा रहे जल को बचाने के लिए प्रेरित करने लगे। कहते हैं अच्छे और बुरे लोग हर जगह होते हैं।
लिहाजा छात्रा वास में कुछ सीनियर्स का सपोर्ट मिला तो कुछ खिल्ली उड़ाते हुए मनोबल गिराने लगे।
चूंकि हमें पानी की कीमत मालूम है। लिहाजा छात्रावास में पानी की बर्बादी बर्दाश्त नहीं होती थी।
खैर, जल संरक्षण को लेकर मैं छात्रों को जागरूक करने में लगा रहा। कुछ सीनियर्स व छात्र कहते थे, भाई तुम्हारे यहां संकट है पर यहां तो पानी है।
फिर हम इसके लिए पैसा देते हैं, तो जितना और जैसे मन चाहे यूज करेंगे? मगर, वह वक्त भी आया जब वे सब साथ जुड़े पूरा छात्रावास हमारे इस अभियान का हिस्सा बन गया।
मेरे प्रयासों को उन साथियों की ताकत मिली तो हमारा हौसला बढ़ा। बताते हैं कि इसके बाद ग्रुप में सभी गांव-गांव और गली-गली जल संरक्षण के लिए लोगों को नुक्कड़ नाटक और सभाओं के जरिए जागरूक करने लगे।
वर्ष 2012 में यह अभियान एक बड़ा रूप ले चुका था। हास्टल से हटकर भी लोग ग्रुप से जुड़ गए थे।
पढ़ाई के साथ-साथ यह काम हमारे साथ जुड़ा हर छात्र नि:स्वार्थ भाव से आज भी कर रहा है।
इस समय ग्रुप में करीब 350 युवा जुड़े हुए हैं, जो अलग-अलग जिलों व स्थानों पर यह काम कर रहे हैं।

प्रयाग से बांदा पैदल निकाल दी यात्रा
जल व भू-गर्भ जल संरक्षण के अग्रदूत बन चुके राम बाबू तिवारी का यह जुनून और हौसला काबिले तारीफ है। यह उनका जुनून ही था कि वे 2012 में प्रयाग से बांदा तक पैदल जल संरक्षण व भू-गर्भ जल बचाओ जागरूकता यात्रा निकाल दिए। रास्ते में जो भी गांव व चौराहे मिलते वह और उनके साथ रहे प्रो। केएन भट्ट, डॉ। मोनिषा सिंह, प्रियंका वर्मा, अनीता, स्नेहिल, संजू, ज्ञानप्रकाश पटेल, परीक्षित कृष्ण शर्मा, सौरभ सिंह, अभिनवमणि त्रिपाठी, रजनीश, प्रशांत मिश्र, धीरज पांडेय, अखिलेश कुशवाहा आदि लोगों को बुलाकर सभा व नुक्कड़ नाटक के माध्यम से पानी की कीमत समझाते हुए जल संरक्षण के लिए जागरूक किया करते थे। वह बताते हैं कि इसके बाद वह प्रयाग से लेकर बुंदेलखण्ड बांदा तक वाटर रिचार्जिंग के उद्देश्य से तालाब और कूपों के संरक्षण को लेकर काम शुरू किया। वह और उनकी टीम खुद कई तालाबों की खुदाई जन सहयोग से किए।

लड़ रहे हैं सरकार को जगाने की जंग
प्रयागराज के पूर्व पार्षद कमलेश सिंह को भी आप वाटर हीरो कह सकते हैं। भू-गर्भ जल स्तर और नदियों के पानी को बचाने के लिए वह दिल्ली से लखनऊ तक अपने पत्रों के माध्यम से एक कर दिए हैं। वह कहते हैं कि वर्ष 2000 की बात है यहां भू गर्भ जल स्तर मात्र 02 सेंटीमीटर नीचे गया था। आज तीस मीटर से भी अधिक नीचे चला गया है। वह कहते हैं कि ससुर खदेरी नदी को सीवर बैंक नुमायादी में मिला दिया गया, जिससे वह नदी समाप्त हो गई। जलकल यमुना नदी से करीब 90 एमएलडी पानी शोधित करके पीने के लिए सप्लाई करता है। आने वाले दिनों में यमुना नदी में भी पानी काफी कम हो जाएगा। क्योंकि गैर प्रदेशों व जिलों में यमुना नदी का पानी रोकने का प्लान तैयार हो चुका है। नदियों व उनके प्रवाह एवं भू-गर्भ जल संरक्षण को लेकर वह अब तक करीब डेढ़ सौ पत्र जिला प्रशासन, भारत सरकार, प्रदेश सरकार व सचिवालयों को लिख चुके हैं। इस शहर में जहां भी वाटर सप्लाई पाइप में लीकेज से पानी बहता रहता है वे उसकी फोटो खींच कर तुरंत नगर निगम को भेजते हुए ठीक करने के लिए विभागों का चक्कर काटने लगते हैं।