सन 2005 में जब मैं पाकिस्तान गया तो दिल में हसरत लेकर गया था कि मेहदी हसन साहब से जरूर मिलूंगा। मुझे उनके घर का पता नहीं मालूम था। मैंने अपने रिश्तेदारों से मेहदी हसन साहब से मिलने की ख्वाहिश की। दूसरे दिन मेरे दोस्त मुझे लेकर उनके घर गए। दरवाजे पर पहुंचे। घर खासा बड़ा है पर दरवाजे से मुफ्लिसी झांक रही थी। दरवाजा खटखटाया एक खूबसूरत लड़का बाहर आया। उसको बताया कि हम हिंदुस्तान से आए हैं और हमें उस्ताद मेहदी हसन साहब से मिलना है। लड़के ने कहा कि अब्बा तो बीमार हैं। फिर कहा आप लोग रुकिए थोड़ी देर में दूसरी साइड से दरवाजा खुला। उस लड़के ने हम लोगों को बुलाया और कहा आप लोग अन्दर आइए। हम लोग अन्दर गए तो सामने तख्त पर एक तानपुरा, स्वरमण्डल, एक हारमोनियम और दो जोड़ तबले रखे थे। खैर बैठने के लिए जगह पर्याप्त थी। थोड़ी देर बाद वही लड़का मेहदी हसन साहब को सहारा देकर ला रहा था। हम सब लोग उठ खड़े हुए और उनका इस्तकबाल किया। मैंने उनके दोनों हाथ अपने हाथों में लिए और उन्हें सहारा देकर तख्त पर बैठा दिया। मैं उन्हें देखता ही रहा। सहसा मेरे जहन में उनकी गाई हुई लाइनें दौडऩे लगीं

दिले वीरा है मेरी याद है तन्हाई है।

जिन्दगी दर्द की बाहों में सिमट आई है।

ऐसे उजड़ा है बहारों का चमन तेरे बाद।

फूल मुरझाए हैं बहारों पे खिजा छाई है।

जिन्दगी दर्द की बाहों में सिमट आई है.

मैं उन्हें देख रहा था, निहार रहा था और खोया हुआ था। हसन साहब ने मुझसे पूछा क्या देख रहे हो? तो मैंने कहा सर मैं आपको देख रहा हूं। आपका क्या हाल है? हसन साहब ने कहा-

पत्ता-पत्ता, बूटा-बूटा हाल हमारा जाने है।

जाने न जाने गुल ही न जाने बाग तो सारा जाने है.

एक बार फिर उनके बोल कानों में गूंजने लगे। वो लम्हे और उनका चेहरा सामने आ गया। मेहदी हसन साहब से मिलकर बहुत सुकून मिला था। वह मिलनसार और नेकदिल इंसान थे। गजल गायक तो बहुत हैं पर उनका कोई सानी नहींहै। हमारे बीच से एक और महान कलाकार जिसे गजल सम्राट के नाम से खिताब किया था। हमारे बीच से लुप्त हो गया। हम दुआ करते हैं कि अल्लाह उन्हें जन्नत अत: करे।