BAREILLY :

आज से पितृ पक्ष शुरू हो रहा है। पितृ पक्ष का सभी अपने पितृों का श्राद्ध करते हैं। इस दौरान दैनिक जागरण आईनेक्स्ट आपको रूबरू करा रहा है शहर के पितृों से, जिनमें बरेली की पहचान, विकास पुरुष और कुछ धार्मिक परम्पराएं जो शहर के लिए पहचान बन गई। आइए जानते हैं शहर के पितृों के बारे

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परंपरा बन गई पहचान

बमनपुर रामलीला

बमनपुरी रामलीला मुस्लिम संतों के सक्रिय सहयोग और समर्थन से 1861 में होली के बढ़ते हुड़दंग को रोकने और उसे ही धार्मिक महौल देने के लिए रामलीला शुरू की थी। मोहल्ले के रहने वाले बुजुर्गो के अनुसार शुरू में जब बमनपुरी रामलीला शुरू हुई तो अंगे्रजों ने रामलीला मंचन का विरोध कर इसे रोकने की कोशिश की। उस समय मुस्लिम संतों ने अंग्रेजों से लोहा लेते हुए इसे जारी रखा। उसके बाद आला हजरत इमाम अहमद खां की गवाही के बाद रामलीला को सरकारी मान्यता मिली। वर्ष 1988-89 में इसका स्वरूप बढ़ गया और बड़े स्तर पर रामलीला का मंचन होने लगा।

रामबारात

शहर में बमनपुरी मोहल्ला से प्रतिवर्ष होली पर एक रामबारात का आयोजन किया जाता है। राम बारात करीब 125 वर्ष पुरानी परम्परा है, जो कि पूरे शहर में होली से एक दिन पहले निकाली जाती है। लगातार सैकड़ों वर्षो से होते आ रहे आयोजन के कारण आज शहर में रामबारात एक पुरानी परम्परा में शामिल हो चुकी है। होली पर रामबारात के नाम से सभी जानते हैं। और शहर बासी होली पर इसको धूमधाम से पूरे शहर में घूमाते हैं और शहर के लोग इसका पुष्प वर्षा कर जगह-जगह स्वागत करते हैं।

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हेरिटेज बिल्डिंग

बरेली कॉलेज बरेली

बरेली कॉलेज बरेली एक ऐसी बिल्िडग है जिसने ने स्टूडेंट को शिक्षित करने के साथ देश भक्ति की भी अलख जगाई है। बरेली कॉलेज बरेली की नींव 1837 में रखी गई थी। इसी कॉलेज से प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में गुलामी की जंजीरों से देश को आजाद कराने की मुहिम चलाई थी। क्रांतिकारियों ने इसी कॉलेज से आंदोलन की रणनीति बनाई थी। एक बार तो आर्थिक तंगी के चलते आंदोलन बंद हुआ तो बरेली कालेज बरेली ने सफलता की नई इबारत लिखी। उस दौरान सिफ 57 स्टूडेंट ही कॉलेज में थे। 1857 के क्रांतिकारी में दो शिक्षक और एक स्टूडेंट ने भाग लिया था। इसके साथ शुरू हुए क्रांति के सफर ने न सिर्फ अंग्रेजों को खदेड़ा बल्कि वर्तमान में युवाओं को शिक्षित कर रहा है।

बरेली किला

1537 में स्थापित इस शहर का निर्माण मुख्यत मुगल प्रशासक मकरंद राय ने करवाया था। यहां बाद में इसके आसपास के क्षेत्रों पर नियंत्रण हासिल कर चुके प्रवासी समुदाय के रोहिल्लाओं की राजधानी बना। 1774 में अवध के शासक ने अंग्रेजों की मदद से इस क्षेत्र को जीत लिया, और 1801 में बरेली की ब्रिटिश क्षेत्रों में शामिल कर लिया गया। मुगल सम्राटों के समय में फौजी नगर था। अब यहां पर एक फौजी छावनी है। यह 1857 में ब्रिटिश शासन के खिलाफ हुए भारतीय विद्रोह का एक केंद्र भी था। यह किला शहर के लिए आज पहचाने के रूप में जाना जाता है।

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जिन्होंने दिलाई पहचान

डॉ। रामसिंह खन्ना

बांस बरल देव की आधार शिला से शुरू हो स्मार्ट सिटी की दहलीज तक पहुंच गए बरेली शहर की इस विकास यात्रा में कई विकास पुरुषों का योगदान रहा। बेहद निम्नवर्गीय परिवार में पैदा हुए राम सिंह खन्ना ने 1953 और 1957 में बरेली नगर पालिका का चेयरमैन चुनाव जीता। वहीं 1980 में विधानसभा चुनाव जीत उत्तर प्रदेश सरकार में आवास विकास मंत्री के पद पर आसीन हुए। नगर विकास मंत्री रहते हुए राम सिंह खन्ना ने ही सन 1982 में बरेली नगर पालिका को नगर निगम की पहचान दिलाई। इस नई पहचान के बाद से ही बरेली के विकास के दरवाजे खुले। राम सिंह खन्ना ने संजय गांधी को श्रद्धांजलि देते हुए शहर में संजय गांधी मल्टीपर्पज कम्यूनिटी हॉल बनाए जाने की नींव भी रखी और बीडीए से इसका निर्माण कराया। अलखनाथ मंदिर के जर्जर हो जाने पर उन्होंने सरकार से बजट दिलाकर मंदिर का जीर्णोद्धार कराया।

30 वर्ष संभाला था कॉलेज का लॉ एंड ऑर्डर

1953 में जन्मे डॉ। जोगा सिंह होठी ने बरेली कॉलेज में अनुशासन व्यवस्था सुधारने के ही पहचान दिलाई। वह 16 साल बीसीबी के प्रॉक्टर और फिर 14 साल तक वह चीफ प्रॉक्टर के पद पर रहे थे, लेकिन उन्होंने कभी पढ़ाने के बीच इसे बाधा नहीं माना। तब इतिहास विभाग के एचओडी होते हुए भी उन्होंने बरेली मंडल के इतिहास पर 14 किताबें लिखी थीं। वर्ष 1975 में इमरजेंसी के दौरान बरेली कॉलेज में ऐसा गुंडाराज फैला था कि पुलिस को घोड़े दौड़ाने पड़े थे। कॉलेज में उस समय इमरजेंसी के दौरान जोगा ंिसह होठी को प्रॉक्टर बनाया गया था।