स्लेट से प्रशासनिक अधिकारी तक का सफर

आई नेक्स्ट के स्कूल अभियान से जहां पेरेंट्स अवेयर हुए हैं वहीं बच्चों की प्रॉब्लम्स भी खुलकर सामने आई हैं। पेरेंट्स ने भी आई नेक्स्ट की इस कैंपेनिंग को हाथों-हाथ लिया है। आई नेक्स्ट ने ऐसे ही कुछ पेरेंट्स से बात की। ये हैं उनके रिएक्शंस

स्कूल बैग का बढ़ता बोझ तो सभी पेरेंट्स के लिए समस्या है। आई नेक्स्ट की यह पहल बहुत ही महत्वपूर्ण और सामयिक है। मैं आई नेक्स्ट टीम को इसके लिए बधाई देती हूं। बहुत ही अच्छा मुद्दा उठाया है। स्कूलों को भी इसके बारे में सोचना चाहिए।

-डॉ। वंदना शर्मा

मुझे तो आई नेक्स्ट देखकर ही पता लगा कि नर्सरी और केजी में तो स्टूडेंट्स के पास बैग होना ही नहीं चाहिए। अभी तो बच्चे को वैन तक छोडऩे के लिए बैग लेकर सर्वेंट को लेकर जाना पड़ता है और घर वापस आने पर बच्चा सर्वेंट को ही तलाशता है। वास्तव में आई नेक्स्ट का विजन बहुत अच्छा है।

-डॉ। नीला सिंह

यह बहुत अच्छा अभियान है। स्कूलों में जल्द से जल्द इसका एग्जीक्यूशन होना चाहिए। यह आई नेक्स्ट का क्रिएटिव कदम है। स्कूल बैग का बोझ खत्म हो जाए तो बच्चों को बहुत सुकून हो जाएगा।

-नीलेश अग्रवाल

बच्चों पर दया होगी अगर उनका स्कूल बैग हल्का हो जाए। वास्तव में हैवी स्कूल बैग बच्चों को बुरी तरह थका देता है। मुझे आई नेक्स्ट की यह पहल बहुत अच्छी लगी है।

-शरद खरे

यह सही है आजकल बैग का वजन बच्चे के वजन के रेशियो में नहीं होता है। कई बार तो लगता है कि बैग टांग कर बच्चा गिर जाएगा। पर वास्तव में आई नेक्स्ट ने बहुत अच्छा इश्यू उठाया है। बस अब ये अंजाम तक पहुंच जाए।

-रितेश अग्रवाल

मुझे तो आई नेक्स्ट की खबर देखकर बहुत खुशी हुई है। एक शुरुआत हुई है तो कभी न कभी बच्चों को इस बोझ से मुक्ति भी मिलेगी। रियली इट्स ए ग्रेट एफर्ट आई नेक्स्ट।

-जूही अग्रवाल

किसी-किसी दिन तो स्कूल बैग इतना भारी होता है कि बच्चों से उठता ही नहीं है। उन्हें देखकर तरस आ जाता है पर क्या करें जैसा स्कूल में बताया जाता है, उतनी किताबें तो बच्चे को देनी ही पड़ती हैं। बट आई एम वेरी थैंकफुल टू आई नेक्स्ट फॉर दिस कैंपेन। आपने बच्चों की प्रॉब्लम्स समझी हैं।

-संदीप अग्रवाल

मेरी बेटी केजी में पढ़ती है पर उसक ा बैग देखकर यह एहसास नहीं हो सकता है। हम कुछ कर भी नहीं सकते हैं, अब बच्चे को पढ़ाना है तो बैग तो देना ही होगा। आई नेक्स्ट ने बताया कि  केजी में बैग ही नहीं होना चाहिए, सुनकर ही आश्चर्य हुआ।

-सत्यप्रकाश मिश्रा

मैं तो बच्चों के बैग के बढ़ते बोझ से तंग आ चुकी है। स्कूल से आने के बाद बच्चे की स्थिति देखकर लगता है जैसे छोटी सी उम्र में उन पर दुनिया भर का बोझ डाल दिया गया हो। मेरा बेटा गेट पर आने के बाद बैग छोड़ देता है। मुझे ही उठा कर लाना होता है। आई नेक्स्ट ने अच्छा अभियान शुरू किया है।

-शीबा

मुझे तो लगता है कि बच्चे खेल-खेल में जितना सीख सकते हैं उतना किताबों के बोझ तले दबकर नहीं। मुझे खुशी है कि किसी ने तो बच्चों की इस प्रॉब्लम क ो समझा है। यह आई नेक्स्ट का बहुत ही अच्छा कदम है।

-मोनिका वर्मा

मेरा बेटा बस से स्कूल जाता है पर कई बार उसे बस में खड़े भी रहना पड़ता है। ऐसे में तकरीबन आधे घंटे तक बस में बैग टांगकर खड़े रहने से उसके कंधे, कमर और पैर में दर्द भी हो जाता है पर बैग ले जाना तो उनकी मजबूरी है। आई नेक्स्ट की पहल देखकर अच्छा लगा।

-दिव्या

आई नेक्स्ट का पूरा स्कूल अभियान बहुत अच्छा है। भारी बस्ते का अभियान एक ऐसा काम है जो बहुत पहले ही हो जाना चाहिए था। स्कूल बैग के बोझ ने तो बच्चों को समय से पहले ही मैच्योर बना दिया है।

-आलोक कुमार

आई नेक्स्ट इज सुपर्ब। स्कूल बैग का बोझ 12 किलो तक हो सकता है यह तो मैंने भी नहीं सोचा था। बच्चे इतना वजन कैरी करते हैं, यह तो आश्चर्यजनक बात है। बैग के इस बोझ को जल्द से जल्द खत्म तो किया ही जाना चाहिए।

-कविता सक्सेना

स्कूल बैग तो वास्तव में काफी हैवी होता है। बच्चे इसको लेकर काफी परेशान भी रहते हैं पर पढ़ाई के लिए यह जरूरी लगता है। आई नेक्स्ट की खबर देखकर लगा कि बच्चों को इस बोझ से मुक्ति भी मिल सकती है। इसे कंटीन्यू करने की जरूरत है।

-पंकज वर्मा

आई नेक्स्ट का स्कूल अभियान पेरेंट्स के अवेयरनेस के लिए ठीक है। पर स्कूल्स की भी कुछ मजबूरियां होती हैं। कुछ प्रेक्टिकल प्रॉब्लम्स हैं। बच्चों उतनी बुक्स तो कैरी करनी ही पड़ेंगी, जितने सीबीएसई में सब्जेक्ट्स हैं।

-राजेश अग्रवाल, डायरेक्टर, जीआरएम

आई नेक्स्ट ने अच्छा काम किया है। वास्तव में बच्चों पर स्कूल बैग का ज्यादा बोझ नहीं होना चाहिए। इसलिए स्कूल में स्मार्ट क्लासेज भी शुरू किए हैं। इससे बच्चों को जानकारी तो मिलती है और साथ ही उन्हें बुक्स का बोझ नहीं उठाना पड़ता है।

-राधा सिंह, डायरेक्टर, सेक्रेड हाट्र्स स्कूल

आई नेक्स्ट का अभियान बहुत ही अच्छा है। यह बहुत ही इंस्पायरिंग है। स्कूल बैग के बढ़े बोझ पर बात होनी ही चाहिए। यह एक अच्छा इनिशिएटिव है।

-राजीव ढींगरा, एडमिनिस्ट्रेटर, अल्मा मातेर स्कूल

बैग के फंडे के बीच यह बात भी गौर करने वाली है कि सरकारी स्कूलों में आज भी भारी बस्ते का बोझ न के बराबर है। आज भी वहां पॉलीथिन में किताबें कैरी करने में कोई परहेज नहीं। आश्चर्यजनक आंकड़े यह हैं कि भारत में आज भी सबसे अधिक प्रशासनिक अधिकारी सरकारी स्कूलों से पासआउट हैं। जितने सीनियर ऑफिसर्स इन दिनों वर्किंग में हैं उनमें से अधिकतर गवर्नमेंट स्कूल से ही पासआउट हैं। बरेली की ही  अगर बात करें तो यहां के कमिश्नर के राम मोहन राव, डीएम सुभाष चंद्र शर्मा, आईजी देवेंद्र सिंह चौहान, डीआईजी  एलवी एंटनी देव कुमार, एसएसपी संजीव गुप्ता और एसपी सिटी शिव सागर सिंह समेत कई सीनियर अधिकारी सरकारी स्कूलों से पास आउट हैं, जहां भारी भरकम बस्ते का बोझ न के बराबर होता है। अपने डीएम सुभाष चंद्र शर्मा ने राजस्थान के अलवर से राजकीय विद्यालय में पढ़ाई की है। उन्होंने वहीं से 10वीं और 12वीं पास किया। सरकारी स्कूलों में आज भी बेसिक पढ़ाई की शुरूआत स्लेट से होती है, जबकि आई नेक्स्ट के बस्ता का बोझ अभियान में यह बात सामने आई है कि प्राइवेट स्कूल के नर्सरी के बच्चों के स्कूल बैग का बोझ भी तीन से चार किलो तक है। आज के बच्चों के मुकाबले वे कहीं ज्यादा मेंटली और फिजिकली स्ट्रॉन्ग होते हैं।

जाने कहां गए वो दिन

जब मैंने पढ़ाई शुरू की थी तो सबसे पहले मैं चौपुला के  पास के एक नगर पालिका के स्कूल में पढऩा शुरू किया। तब मैं स्कूल में तख्ती, कलम और बुदक्का लेकर जाता था। उसके बाद धीरे-धीरे कब एक-एक क्लास पास करके हाईस्कूल तक पहुंच गए पता ही नहीं लगा। इस दौरान शायद ही कभी किताबें खरीदने की जरूरत पड़ी हो। कभी बड़े भाई की तो कभी पड़ोस में ही रहने वाले किसी दोस्त की किताब लेकर पढ़ाई कर लेते थे। इतना ही नहीं किताबें कम होने पर हम चार दोस्त एक ही किताब से पढ़ाई कर लेते थे। मैं घर में सबसे छोटा था, तो मेरे बाद मेरी किताबें पड़ोस के लोग मांग कर ले जाते थे। हाईस्कूल के बाद तो मार्के ट से आधे रेटस पर बुक्स खरीदकर भी पढ़ाई करते रहे। खास बात यह थी कि ये सेकेंड हैंड बुक्स भी कुछ पैसे काटकर दोबारा सेल की जा सकती थीं। ये भी तब की पढ़ाई पर आज तो बच्चों को देखता हूं तो बचपन से ही उन पर पढ़ाई का भारी बोझ डाल दिया जाता है। एक बच्चे की पढ़ी हुई किताब को दोबारा कोई नहीं पढ़ सकता। या तो कोर्स चेंज हो जाता है या उसे ही नोट बुक बना दिया जाता है।

-डॉ। एसपी सिंह,एचओडी, बॉटनी डिपार्टमेंट, बीसीबी

बच्चों को वास्तव में अपनी उम्र से काफी ज्यादा भारी बस्ते को ढोना पड़ रहा है। जो उनके लिए मजबूरी का सबब बना हुआ है। हालांकि राइट टू एजुकेशन (आरटीई) एक्ट में क्या है इस बारे में हमें पूरी जानकारी नहीं है।

-प्राची शर्मा, पेरेंट

बच्चों के छोटे-छोटे कंधों पर भारी बस्ते का वजन। हमें उनकी दशा देखकर काफी पीड़ा होती है लेकिन हम करें भी तो आखिर क्या? हमें स्कूल बैग एक्ट के बारे में कोई जानकारी नहीं है।

-मोहन सिंह, पेरेंट

स्कूल बैग एक्ट के बारे में मुझे कोई जानकारी नहीं है लेकिन बच्चों के लिए भारी बैग उठाना किसी परेशानी से कम नहीं है।

-दीपिका, पेरेंट

बच्चों के बस्तों का वजन सच में बहुत ज्यादा है। मेरे हिसाब से स्कूल एडमिनिस्ट्रेशन को कुछ ऐसे प्रयास करने चाहिए, जिससे बच्चों भारी बस्ते से कुछ राहत मिले। मैंने स्कूल बैग एक्ट के बारे सुना तो है लेकिन मुझे इसकी डीप नॉलेज नहीं है।

-डॉ। मकसूद, पेरेंट

बच्चों को भारी बैग से मुक्ति मिल सके इससे बेहतर बात और क्या हो सकती है लेकिन ये तभी संभव है, जब स्कूल एडमिनिस्ट्रेशन ऐसा चाहे। वैसे मुझे स्कूल बैग एक्ट के बारे में पूरी जानकारी नहीं है।

-रमन शर्मा, पेरेंट