गोरखपुर (सुनील त्रिगुणायत)।टीबी की बीच में दवा बंद करने से लोग एमडीआर और एक्सडीआर टीबी पेशेंट

केस 1- खलीलाबाद के अरविंद कुमार शहर के एक क्लीनिक में इलाज के लिए आए। डॉक्टर ने उन्हें दवाएं लिखीं। हफ्ते भर में ठीक हो जाने का आश्वासन देते हुए इतने ही दिन बाद जांच के लिए बुलाया। बुखार और कफ से परेशान अरविंद की तकलीफ कम होने के बजाया और बिगड़ गई। डॉक्टर ने कल्चर टेस्ट कराया, इसमें मरीज का शरीर इस एंटीबॉयोटिक के प्रति प्रतिरोधी मिला जो उन्होंने अपने पर्चा में लिखा था।

केस 2- बेलीपार एरिया के रमेश कुमार टायफाइड से पीडि़त थे। उन्होंने सिटी के एक प्राइवेट हॉस्पिटल में इसका इलाज कराया। डॉक्टर ने मर्ज के मुताबिक दवाएं लिखीं, लेकिन तकलीफ कम होने के बजाए और बढ़ती गई। उन्होंने डॉक्टर से इसकी कंप्लेन की। डॉक्टर को शक हुआ तो पूछा कि क्या इससे पहले भी एंटीबायोटिक दवाओं को सेवन करते रहे हैं। रमेश ने बताया कि सर्दी-जुकाम होने पर अपने आप से खुद दवाएं लेते रहे।

ये दो मामले महज नजीर भर हैं। ऐसे मरीजों की लंबी फेहरिस्त है, जो सही दवा लेने के बाद भी ठीक नहीं हो पा रहे हैं। डॉक्टर का कहना है कि बिना सलाह के खुद से दवा खरीदकर खाने की आदत लोगों के लिए मुश्किल पैदा कर रहा है। डॉक्टर्स के मुताबिक इससे न सिर्फ मरीजों का मर्ज बढ़ जा रहा है। टीबी के मामले में यह काफी खतरनाक साबित हो रहा है।

बढ़ रहा ट्रीटमेंट का खर्च

छोटी स्वास्थ्य समस्याओं में खुद दवा खरीद के खाने की आदत से मर्ज ही नहीं बल्कि इलाज का खर्च भी बढ़ जाता है। बीआरडी मेडिकल कॉलेज के चेस्ट विभाग के एचओडी डॉ। अश्विनी मिश्र बताते हैं कि कॉलेज की ओपीडी में आने वाले न्यूमोनिया और यूरिनरी ट्रैक इंफेक्शन के 50-60 परसेंट मरीज प्रथम श्रेणी की एंटीआयोटिक दवाओं से प्रतिरोधी पाए जा रहे हैं। आमतौर पर बीमारी की शुरुआत में लोग अपने मन से एंटीबायोटिक का सेवन करने लगते हैं।

पहले सेप्ट्रॉन से हो जाते थे ठीक

इस दवा को भी पूरी डोज न लेकर लोग थोड़ी राहत होने पर छोड़ देते हैं। इससे आगे से यह दवा उनके शरीर पर असर नहीं करती। पहले जहां 100 परसेंट न्यूमोनिया के मरीज 50 पैसे की सेप्ट्रॉन टैबलेट या दो रुपए कीमत वाली दवा से ठीक हो जाते थे। अब इनमें से 50 से 60 परसेंट मरीजों को 300 रुपए से 700 रुपए में आने वाले इंजेक्शन देने पड़ रहे हैं। मरीज किस दवा के प्रति प्रतिरोधी हो गया है, बलमग, ब्लड, पेशाब आदि का कल्चर टेस्ट कराकर यह जाना जा सकता है।

टीबी की दवा बीच में बंद कर देने से लोग एमडीआर और एक्सडीआर टीबी मरीज में तब्दील हो जाते हैं। इससे इलाज जटिल हो जाता है।

- डॉ। गणेश प्रसाद यादव, जिला क्षयरोग अधिकारी

कॉलेज की ओपीडी में आने वाले न्यूमोनिया और यूटीआई के 50-60 परसेंट मरीज प्रथम श्रेणी की एंटीआयोटिक दवाओं से प्रतिरोधी मिलते हैं। लोगों को बिना डॉक्टर की सलाह के दवा नहीं लेनी चाहिए।

- डॉ। अश्विनी मिश्र, एचओडी, चेस्ट विभाग, बीआरडी मेडिकल कॉलेज