गोरखपुर (ब्यूरो)।इन सबके बावजूद बारिश के पानी का संचयन नहीं हो पा रहा है। इसके लिए आमजन के साथ सरकार भी जिम्मेदार है। आज के दौरान में तेजी से विकास के चलते सड़कें और फुटपाथ आरसीसी होते चले जा रहे हैं। पर्यावरणविदों के अनुसार यह धरती के विनाश का पर्याप्त कारण है। बारिश का पानी धरती की कोख में न जाकर नदियों, तालाबों में जाकर लगभग वेस्ट हो जा रहा है। यह चिंता का विषय बनता जा रहा है, लेकिन इस ओर ध्यान नहीं जा रहा है। गोरखपुर में 70 परसेंट जल दोहन हो रहा है और रिचार्ज सिर्फ 10 से 15 प्रतिशत तक सिमट कर रह गया है। ऐसे में रेन वॉटर हार्वेस्टिंग की एक मात्र उपाय है।

सौंदर्यीकरण खूब, हार्वेस्टिंग की व्यवस्था नहीं

शहर में साफ सफाई, सौंदर्यीकरण के चलते तमाम सड़कें आरसीसी कर दी गई हैं। यूनिवर्सिटी रोड, रामगढ़ताल रोड, मेडिकल कॉलेज रोड इसके जीते जागते उदाहरण हैं। यही नहीं फुटपाथ और सर्विस लेन तक को आरसीसी करके सुंदर बना दिया गया है। बारिश होने पर सारा पानी वेस्ट हो रहा रहा है। कहीं भी बारिश के पानी को संरक्षित करने की व्यवस्था नहीं की गई है। आरसीसी सड़कों के चलते बारिश का पानी जमीन में नहीं पहुंच रहा है। यही नहीं सौंदर्यीकरण के लिए शहर के डिवाइडरों पर पौधे लगाए गए हैं। बारिश होने पर इन पौधों को पानी मिलता है। समय-समय पर नगर निगम और जीडीए कर्मचारी पौधों को पानी देते हैं।

समस्या गंभीर, फिर भी सब उदासीन

पर्यावरणविद् प्रो। गोविंद पांडेय ने बताया कि देश में 4 हजार बिलियन क्यूबेक मीटर बारिश का आंकड़ा है। इसमें 75 प्रतिशत मानसून के दौरान बारिश होती है। चिंता की बात यह है कि सिर्फ 690 बिलियन क्यूबेक पानी ही भूजल में रिचार्ज हो पाता है। बाकि पानी वेस्ट हो जा रहा है। पिछले वर्षों में जल का अधाधुंध प्रयोग हो रहा है लेकिन किसी को भूजल रिचार्ज की चिंता नहीं है। सड़कें तो पक्की हो ही रही हैं, लोग भी घरों को ऐसा पक्का बना रहे हैं कि कहीं से भी पानी जमीन के अंदर नहीं जा रहा है। रेन वाटर हार्वेस्टिंग के प्रति भी लोग जागरूक नहीं हैं। इससे समस्या गंभीर होती जा रही है। लिहाजा लोगों को अब रेन वॉटर हार्वेस्टिंग अपनाना होगा।

किसान खेत के मेड़ को करें ऊंचा

पर्यावरणविद् के अनुसार किसान खेत के मेड़ को ऊंचा करें, ताकि बारिश का पानी आसानी से रिचार्ज हो सके। इससे भविष्य की परेशानी से बचा जा सकेगा। कई किसान ऐसा कर रहे हैं, जिसकी वजह से आसपास के लोगों को भी राहत मिल रही है।

क्या है रेन वॉटर हार्वेस्टिंग

रेन वॉटर हार्वेस्टिंग बारिश के पानी को जमा करने का एक तरीका होता है। यह किसी भी सतह पर गिरने वाला बारिश का पानी हो सकता है। इस पानी को बाद में फिल्टर किया जाता है और फिर से इस्तेमाल करने के लिए जमा कर दिया जाता है। इस तरह पानी की हार्वेस्टिंग करने से पानी का लेवल दोबारा पहले जैसे नार्मल हो जाता है, जिससे यह पानी बर्बाद होने से बच जाता है। इसे वर्षा जल संचयन भी कहते हैं। इससे धरती में पानी का स्तर बढ़ता है।

दो तरीके से इंतजाम

1. छत के बरसाती पानी को गड्ढे या खाई के जरिए सीधे जमीन के भीतर उतारना।

2. छत के पानी को किसी टैंक में एकत्र करके सीधा उपयोग में लेना

हार्वेस्टिंग के फायदे

1. वर्षा के संरक्षित जल का उपयोग व्यावसायिक कार्यों में कर सकते हैं।

2. वर्षा के जल को संरक्षित कर के घर की साफ सफाई, स्नान करना, कपड़े धोना, बर्तन साफ करना जैसे कार्य किए जा सकते हैं।

3. वर्षा के पानी को भूमि के अंदर भेजकर हम जमीन के अंदर मौजूद मीठे पानी के स्तर को बढ़ा सकते हैं।

4. वर्षा का जल प्रयोग करने से सप्लाई का पानी या भूमि के अंदर के पानी की बचत होती है।

गोरखपुर व आसपास के जिलो में भूजल दोहन (परसेंट में)

गोरखपुर 70

बस्ती में 45

देवरिया में 82

संतकबीरनगर 75

कुशीनगर 80

गोरखपुर में भूजल दोहन 70 प्रतिशत तक रहा है और रिचार्ज 15 प्रतिशत के करीब है। इससे समस्या साल दर साल बढ़ती जा रही है। अगर 50 प्रतिशत भूजल का उपयोग हो रहा है तो उतना ही रिचार्ज की जरूरत है। ऐसे में सभी को रेन वाटर हार्वेस्टिंग के प्रति जागरूक होना होगा। अगर लापरवाही होती रही तो निकट भविष्य में इसके परिणाम काफी भयावह होंगे।

प्रो। गोविंद पांडेय, पर्यावरणविद्

पिछले कुछ वर्षों में गोरखपुर का भूमिगत जल स्तर काफी तेजी से नीचे चला गया हैं। तेजी से बढ़ते मॉल, होटल व अपार्टमेंट कल्चर ने भी भूमिगत जल को काफी नुकसान पहुंचाया है। यदि प्रत्येक व्यक्ति वर्षा जल संचयन के प्रति जागरूक हो तो गिरते भूजल के स्तर पर रोक लगाई जा सकती है।

शिव प्रसाद शुक्ला, जल संरक्षण कार्यकर्ता

टॉक विद् ट्विटर

शिवेंद्र यादव (@SocialShivendra) लिखते हैं कि हमारे यहां पूर्वजों का बनाया हुआ एक कुआं है। बरसात में छत के ऊपर से आने वाला सारा पानी और आसपास का इक_ा हुआ पानी कुएं के जरिए जमीन के अंदर चला जाता है। इससे वॉटर लेवल बना रहता है व आसपास के पेड़ पौधे हरे-भरे रहते हैं।

राहुल चौधरी (@Rahulbtc2017)

लिखते हैं कि इंतजाम नहीं हैं। गोरखपुर में ऐसी व्यवस्था की जाए, जिससे हम भूजल को संरक्षित कर सकें।