एडमशिन का नया क्राइटेरिया
2013 से एमसीआई देशभर के मेडिकल कॉलेजेज के एमबीबीएस और बीडीएस कोर्सेज में एडमिशन का नया क्राइटेरिया लागू करने जा रही है। एडमिशन के नए क्राइटेरिया से न सिर्फ देशभर के मेडिकल कॉलेजेज में एडमिशन में एकरूपता आएगी, बल्कि एडमिशन में जुगाड़ और डोनेशन का खेल भी पूरी तरह समाप्त होना तय है। इस नई व्यवस्था से मेडिकल कॉलेजेज की मनमानी और स्टेट गवर्नमेंट का रोल भी खत्म हो गया है। नए क्राइटेरिया के तहत एमसीआई ने एआईपीएमटी नामक ए्ग्जाम खत्म कर दिया है। स्टेट्स में होने वाले एंट्रेस टेस्ट का भी अब कोई मतलब नहीं रह जाएगा। इसकी जगह नेशनल इलिजिबिलिटी कम एंट्रेंस टेस्ट (हृश्वश्वञ्ज-त्र) की शुरूआत होने जा रही है। देश के किसी मेडिकल या डेंटल कॉलेज के एमबीबीएस या बीडीएस कोर्सेज में एडमिशन के लिए अब सिर्फ हृश्वश्वञ्ज-त्र ही क्वालिफाई करना होगा। क्वालिफाइंग मार्क्स भी तय कर दिए गए हैैं। जनरल के लिए-50 फीसदी, ओबीसी, एससी और एसटी के लिए 40 फीसदी। इससे कम मार्क्स लाने वाले किसी स्टूडेंट का कहीं एडमिशन नहीं होगा। किसी प्राइवेट मेडिकल कॉलेज में भी नहीं। जाहिर है मुन्नाभाइयों को अब किसी मेडिकल कॉलेज में एडमिशन ही नहीं मिल सकेगा।
डोनेशन का खेल भी खत्म
देशभर के प्राइवेट मेडिकल कॉलेजेज में एडमिशन के लिए डोनेशन का मोटा खेल लंबे समय से चल रहा है। प्राइवेट मेडिकल कॉलेजेज की कमाई का यह सबसे बड़ा जरिया बना हुआ है। सूत्रों की मानें तो प्राइवेट मेडिकल कॉलेजेज के एमबीबीएस कोर्स में एडमिशन के लिए डोनेशन की रकम 50 लाख रुपए तक पहुंच चुकी है। इस कारण बड़ी संख्या में अयोग्य स्टूडेंट पैसे के दम पर डॉक्टर बन रहे हैैं। जुगाड़ से एडमिशन और जुगाड़ से एमबीबीएस और बीडीएस की डिग्री लेने वाले डॉक्टर्स के गलत इलाज की वजह से हर साल हजारों लोगों की जान चली जाती है। इसे रोकना एमसीआई के लिए चुनौती बन गया था। लिहाजा एमसीआई ने केंद्र सरकार के अप्रूवल पर ग्र्रेजुएट मेडिकल एजूकेशन 1997 के रेग्युलेशंस में बदलाव कर एमबीबीएस और बीडीएस कोर्सेज में एडमिशन के सिस्टम को ही बदल दिया है।
सिंगल एंट्रेस सिस्टम
report by: Vikas Verma