-शादी समारोह के आयोजन में सख्त नियमों की वजह से घोड़ा, बग्गी और डीजे वालों को नहीं मिल रही बुकिंग

- अनलॉक के बाद बुकिंग पर भी असर, बिजनेस में आई गिरावट

<-शादी समारोह के आयोजन में सख्त नियमों की वजह से घोड़ा, बग्गी और डीजे वालों को नहीं मिल रही बुकिंग

- अनलॉक के बाद बुकिंग पर भी असर, बिजनेस में आई गिरावट

GORAKHPUR: GORAKHPUR: कोरोना वायरस ने वैवाहिक समारोह के आयोजन से जुड़े सभी कारोबार को पूरी तरह से प्रभातिव किया है। भले ही लॉकडाउन के बाद अब अनलॉक का फेज शुरू हो चुका है, लेकिन इन बिजनेस से जुड़े बाकी लोगों से घोड़ा-बग्गी वाले अलग कतार में खड़े हैं। पंजाबी भांगड़ा की कोई पूछ नहीं है, तो वहीं धंधा भी पूरी तरह से चौपट हो गया है। कर्ज लेकर खर्च चलाया जा रहा है। जिन्होंने लगन के लिए पहले से बुकिंग करा रखी थी, वह कैंसिल कर दी है। अब नवंबर और दिसंबर में होने वाले मांगलिक आयोजन की बुकिंग हुई हैं, उनकी तादाद भी काफी कम है। नियमों की सख्ती से काम पर भी काफी असर पड़ा है।

कम रेट पर भी नहीं मिल रही बुकिंग

घोड़ा-बग्गी का काम करने वाले आसिम अहमद ने बताया कि ऑनलाक के बाद से ही लोग कोरोना को लेकर घबराए हुए हैं, इसलिए बुकिंग कम हुई हैं। इसकी वजह से रेट को भी डाउन करना पड़ गया है। पहले जहां क्8 से ख्0 हजार रुपए एक बुकिंग का लिया जाता था, वहीं अब क्म् से क्7 हजार में भी कोई बुकिंग के लिए तैयार नहीं है। बक्शीपुर और लालडिग्गी एरिया में इन लोगों का परिवार रहता है। जिनकी रोजी रोटी इस बिजनेस के दम पर ही चलती है, लेकिन लॉकडाउन के बाद से ही इनके पास कोई विकल्प ही नहीं है। ऐसे में इन लोगों ने जो रुपए बिजनेस में लगाया था वह भी नहीं निकल पा रहा है। कुछ तो ऐसे यह जिन्होंने लॉकडाउन के पहले घोड़ा और बग्गी खरीदकर पूरी तैयारी की थी, लेकिन अब वह कर्जदार हो चुके हैं। कारोबार करने वालों का कहना है कि कोरोना काल में संकट से गुजर रहे हैं। घोड़ा को खिलाने और परिवार को खिलाने के लिए कर्ज कर लेकर खर्च चला रहे हैं।

एक घोड़े पर पांच हजार का डेली खर्च

भोला बग्गी वाले का कहना है कि एक घोड़े पर पांच हजार का खर्च पड़ता है। पिछले साल जो कमाया वह खत्म हो गया। ख्0 घोड़ों को खिलाने में काफी पैसे खर्च होते हैं। साथ ही वर्कर को भी वेतन देना होता है। नवंबर और दिसंबर के लग्न में सिर्फ पांच बुकिंग हुई हैं। जबकि शहर में क्00 से अधिक घोड़ा-बग्गी का कारोबार करते हैं। एक बग्गी पर दो घोड़ों की जरूरत होती है। कोरोना से बिजनेस का पूरी तरह से प्रभावित कर दिया है। खर्च चलाना भी मुश्किल हो गया है।

घोड़ा बग्गी बेचने की नौबत

घोड़ा-बग्गी मालिकों के सामने अभी भी संकट की घड़ी है। इस पेशे से जुड़े लोगों की मानें तो वह एक दो लग्न में इतना कमाते थे कि पूरा परिवार साल भर सकून से जीवन यापन करता था। इनकी रोजी रोटी आसानी से चलती थी। जब लॉकडाउन शुरू हुआ और सामूहिक आयोजन बंद हुए तब से ऐसी स्थिति आ गई। घोड़ा-बग्गी तक बेचने की भी नौबत आ गई है।

कारोबारियों की जगी उम्मीद

शासन की ओर से अनलॉक ने बिजनेस करने वालों को काफी राहत दी है। इससे इस पेशे वाले कारोबारियों में भी उम्मीद जगी है। घोड़ा-बग्गी भागड़ा संचालकों में एक बार फिर से बिजनेस पटरी पर उतरती दिख रही है। नवंबर और दिसंबर में होने वाली शादियों की बुकिंग शुरू हो चुकी है। पांच से छह बुकिंग मिल रही है, लेकिन गाइड लाइन के मुताबिक कम संख्या होने की वजह से रेट में अंतर दिख रहा है। कहना है कि अनलॉक जो काम बंद था वह दोबारा चल पड़ा है।

लॉकडाउन में जो पहले कमाया था उसी से खर्च चल रहा था। अब तो पैसे भी खर्च हो चुके हैं। कर्ज लेकर घोड़ा और परिवार की रोजी-रोटी की व्यवस्था की जा रही है। अनलॉक होने से उम्मीद जगी है कि अब सबकुछ ठीक होगा।

आसिम अहमद, बग्गी संचालक

घोड़ों पर काफी खर्च होता है। एक घोड़े के खाने पर कम से कम एक हजार रुपए खर्च होते हैं। उसमें से परिवार की रोजी रोटी का भी सवाल होता है। पहले जो बुकिंग हुई थी वह भी कैंसिल हो चुकी है। नई बुकिंग भी मिली है वह भी कम हैं।

भोला, बग्गी संचालक

बाहर से वर्कर बुलाए जाते हैं। उनके रहने और खाने पीने का प्रबंधक भी हमारी जिम्मेदारी होती है। इसके अलावा बग्गी मेटनेंस पर पांच हजार रुपए खर्च हो जाते हैं। लग्न के दिनों में अच्छी कमाई हो जाती थी, लेकिन कोरोना की वजह से बिजनेस पूरी तरह से प्रभावित हो गया है। अनलाक में उम्मीद जगी है कि सबकुछ ठीक होगा।

रईस अहमद, बग्गी संचालक