-सेम साल्ट वाली बीपी और शुगर की दवाओं के दाम सिर्फ कंपनी के नाम के आधार पर हैं ज्यादा या कम

-सिटी में दवा के नाम पर चल रहा है जबर्दस्त खेल

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GORAKHPUR: दवा के रेट को लेकर मार्केट में जबर्दस्त खेल चल रहा है। चाहे ब्लड प्रेशर की दवा हो या फिर शुगर की। सिर्फ कंपनी का नाम बदलते ही दवा का दाम बढ़ जाता है। हालांकि एक्सपर्ट डॉक्टर्स का कहना है कि ब्रांड नेम बदलने से दवा की क्वॉलिटी पर कोई असर नहीं पड़ता। लेकिन एक खास नेक्सस के चलते पब्लिक दवाओं का ज्यादा दाम चुकाने पर मजबूर है। दैनिक जागरण-आई नेक्ट ने जब इसका रियलिटी चेक किया तो मामला कुछ यूं सामने आया।

डेली आते हैं आसपास जिले के मरीज

गौरतलब है कि गोरखपुर व आसपास जिले से सरकारी और प्राइवेट हास्पिटल में बड़ी संख्या में इलाज के लिए आते हैं। लेकिन दवा के नाम पर मरीज व तीमारदारों से खेल किया जाता है। दैनिक जागरण-आई नेक्स्ट रिपोर्टर ने सिटी के विभिन्न दुकानों पर जाकर सच्चाई परखी। इसके बाद जो चीजें सामने आई वो कुछ इस तरह से हैं।

ऐसे बढ़ जाते हैं दवाओं के दाम

डायबिटीज

-डिलीवरी ग्लिीमीप्राइड 2 एमजी कंपोजीशन की दवा केनाम में बहुत ज्यादा फर्क देखने को मिला।

-एक कंपनी इस दवा की 10 गोलियां 40 रुपए में बेचती है। यानी एक गोली दो रुपए की पड़ी।

-वहीं दूसरी कंपनी की यही दवा 10 गोली लेने पर 598 रुपए की थी। यानी एक गोली 59.80 रुपए की पड़ रही है।

ब्लड प्रेशर

-एक कंपनी टेलमी सार्टन कंपोजीशन की 40 एमजी की 30 टेबलेट 220.75 पैसे में बिकती है। यानी एक टेबलेट करीब साल सात रुपए की पड़ी।

-लेकिन एक अन्य कंपनी उसी दवा की 10 टैबलेट्स 34 रुपए 57 पैसे में बेचती है। एक गोली मात्र 3.45 रुपए की पड़ी।

-इसी तरह एंटीफंगरा दवा की एक गोली के दाम में 22 से 35 रुपए तक अंतर है।

-एक कंपनी इंट्राकेनोजोल 200 एमजी कंपोजीशन की दवा 10 गोली के लिए 365 लेती है। यानी एक गोली 37 रुपए पड़ी।

-वहीं दूसरी कंपनी की इसी कंपोजीशन की दवा 16 रुपए प्रति टैबलेट पड़ती है।

पेट इंफेक्शन

-पेट में संक्रमण को ठीक करने के लिए दी जाने वाली सेफ्टम 500 एमजी कंपोजीशन की दवा की कीमत में काफी अंतर देखने को मिला।

-एक कंपनी की चार टैबलेट 431 रुपए की मिलती है। यानी एक गोली करीब 108 रुपए की है।

-वहीं दूसरी कंपनी 324.80 रुपए में 10 गोलियां दे रही है। इसकी एक गोली की कीमत 32 रुपए में पड़ रही है। कीमत में यह अंतर तीन गुना रहा।

एलर्जी

-इसी तरह एलर्जी में दी जाने वाली दवा की 10 टैबलेट एक कंपनी 56 रुपए में बेचती है।

-दूसरी कंपनी इसे मात्र 18 रुपए देती है। मेडिकल स्टोर संचालक ने दोनों दवाओं को चलाने का दावा किया।

कभी नहीं होती पूछताछ

दवाओं के दाम में इस अनियमितता को देखते हुए ड्रग्स विभाग भी कोई कदम नहीं उठा रहा है। न तो कभी मेडिकल स्टोर्स पर कोई छापेमारी होती है और न ही प्राइवेट हॉस्पिटल्स से कोई पूछताछ होती है। नतीजा, आम जनता इस खेल में पिसने को मजबूर है।

फैक्ट फीगर

2100 थोक मेडिकल स्टोर

2789 फुटकर मेडिकल स्टोर

168 मेडिकल क्लीनिक

07 मैटनिटी होम

260 हॉस्पिटल हैं कुल

वर्जन

दवाओं को लेकर छापेमारी की जाती है भालोटिया चूंकि थोक मंडी है, इसलिए पहले वहां चेकिंग की जाती है। टाइम टु टाइम नर्सिग होम के मेडिकल स्टोर पर भी चेकिंग की जाती है। दवा अलग-अलग कंपनी की होती है। इसलिए मंहगी होती है। कुछ कंपनियां अपना मार्केट बनाने के लिए रेट कम रखती हैं।

-जय सिंह, ड्रग्स इंस्पेक्टर

देश में पहले कंपोजीशन से ही दवाएं बेची जाती थीं। वर्तमान में ट्रेड नेम केअनुसार दवाएं बेची जा रही हैं। यही वजह है कि कंपनियों ने अपना अलग-अलग रेट तय कर रखे हैं। हालांकि कई कंपनियां मॉलिक्यूल अलग-अलग रखती हैं।

-योगेंद्र दुबे, अध्यक्ष, दवा विक्रेता समिति गोरखपुर