कौन सुनेगा किसे सुनाएं इसीलिए चुप रहते हैं
- DDUGU के अलकनंदा गर्ल्स हॉस्टल में पीजी स्टूडेंट्स व रिसर्च स्कॉलर्स का पानी बिना है बुरा हाल
- बोलीं छात्राएं, दो सुप्रिटेंडेंट लेकिन दोनों ही नहीं आतीं हॉस्टल तो किसे सुनाएं समस्याएं?
GORAKHPUR: डीडीयूजीयू के चार ब्वायज हॉस्टल की हकीकत आप तक पहुंचाने के बाद आज हम आपको बता रहे हैं गर्ल्स हॉस्टल की कहानी। नाम है- अलकनंदा। अलकनंदा में पीजी स्टूडेंट्स और रिसर्च स्कॉलर्स रहती हैं। मुखर भी हैं लेकिन कहती हैं कि अपनी समस्या किसे सुनाए? कौन सुनेगा? यहां तो कोई आता ही नहीं है। कहने के लिए दो-दो सुप्रिटेंडेंट हैं लेकिन यहां कोई नहीं आतीं। शुक्रवार को जब रिपोर्टर इस हॉस्टल में पहुंचा तो गर्ल्स पानी के लिए परेशान नजर आई। बताया कि गर्मी में हलक सूख रहे हैं और पीने का पानी नहीं है। पानी के अभाव में रूटीन वर्क पूरा नहीं कर पातीं। कई बार तो इसी वजह से क्लास जाने में देर हो जाती है।
पूरी बिल्डिंग में पानी नहीं
डीडीयूजीयू के अलकनंदा हॉस्टल में दोपहर 2 बजे जब रिपोर्टर पहुंचा तो गर्ल्स
सबसे पहले पानी की समस्या बताई। रिपोर्टर ने खुद चेक किया तो तीन फ्लोर वाले हॉस्टल के दो फ्लोर के किसी भी नल से पानी नहीं आ रहा था। वहीं ग्राउंड फ्लोर पर लगे नल से पानी किसी तरह टपक रहा था। जिससे कोई काम कर पाना मुश्किल था। हालांकि तीनों फ्लोर के टायलेट, बाथरूम साफ नजर आए लेकिन पानी कहीं से नहीं आ रहा था। हॉस्टल में पीने के पानी के लिए दो आरओ सिस्टम लगे हैं लेकिन किसी से भी पानी नहीं आ रहा था।
रुटीन वर्क नहीं कर पातीं
खुद जायजा लेने के बाद रिपोर्टर न जब गर्ल्स से पूछा तो उनका कहना था कि रोज यही हाल रहता है। एक आरओ काम भी कर रहा था तो उससे भी आज पानी नहीं आ रहा है। सुबह-सुबह ही पानी नहीं आने से रुटीन वर्क करने में दिक्कत होती है। कई बार तो बगैर नहाए ही यूनिवर्सिटी जाना पड़ता है। यही नहीं, सिर्फ दो ही टायलेट, बाथरूम में पानी आता है।
बोतल से लाती हैं पानी
छात्राओं ने बताया कि पानी की समस्या करीब दो साल से लगातार है। इसके लिए कई बार उन्होंने कंप्लेंट की, आंदोलन भी किया लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ। पानी नहीं आने पर कई बार बोतल लेकर वीसी आवास में पानी भरने के लिए जाती हैं। इस कारण वीसी खुद हॉस्टल में पानी की समस्या से अनभिज्ञ नहीं हैं लेकिन इसके बाद भी समाधान की दिशा में कोई कारगर पहल नहीं की गई।
सात बजे के बाद चले जाते हैं गार्ड्स
गर्ल्स के लिए सुरक्षा बड़ा मसला है लेकिन अलकनंदा में इसमें भी लापरवाही होती है। गर्ल्स ने बताया कि तीन शिफ्ट में गार्ड्स लगाए गए हैं लेकिन शाम सात बजे के बाद कोई गार्ड नजर नहीं आता। सबसे ज्यादा सुरक्षा की जरूरत रात में ही होती है जबकि रात में अक्सर गार्ड गायब हो जाते हैं।
वरिष्ठ सहायक ही हैं सबकुछ
रिपोर्टर ने गर्ल्स से पूछा कि जब इतनी समस्याएं हैं तो वे जिम्मेदारों को बताती क्यों नहीं? गर्ल्स ने कहा कि उनकी दो सुप्रिटेंडेट हैं लेकिन वे कभी नहीं आती हैं। किससे बताएं? उनकी देख रेख के लिए वरिष्ठ सहायक विभा मिश्रा हैं। जो दिन और रात दोनों वक्त उनकी केयरिंग करती हैं। उनसे जितना हो सकता है, करती हैं। अब पानी की प्रॉब्लम तो वह दूर कर नहीं सकती, और जो दूर कर सकते हैं, वे करते नहीं हैं।
फ्यूज हैं कई ट्यूबलाइट्स
पानी की समस्या के बाद हॉस्टल में दूसरी बड़ी समस्या है अंधेरा। बिजली रहने के बाद भी ट्यूबलाइट्स नहीं जलते। गर्ल्स की इस कंप्लेंट पर जब रिपोर्टर ने खुद चेक किया तो पता चला कि कई ट्यूबलाइट्स खराब हैं। छात्राओं ने बताया कि इसकी शिकायत वार्डेन से की थी लेकिन इसके बाद भी ट्यूबलाइट्स नहीं बदले गए। लेकिन फिर नहीं बदले गए। बिजली गुल होने पर जेनरेटर चलाना है लेकिन वह कभी चलता ही नहीं है।
मेस का भी बुरा हाल
अलकनंदा में मेस है लेकिन छात्राओं का कहना है कि खाने की क्वालिटी सही नहीं है। प्रत्येक दिन के हिसाब से छात्राएं 67 रुपए का भुगतान करती हैं। इसके एवज में सुबह में दाल, चावल सब्जी, अचार और रात में रोटी, सब्जी और आचार मिलता है। मेस में एक ही खाना रोज मिलता है, इससे बोरियत सी हो गई है। कभी मेनू चेंज नहीं होता। इतना ही नहीं, मेस के भीतर लगे पंखे और ट्यूबलाइट भी खराब हैं। इससे गर्मी के बीच अंधेरे में ही डिनर करना होता है।
बस वोट के लिए आते हैं छात्रनेता
छात्राओं ने कहा कि यूनिवर्सिटी के जिम्मेदार तो उनकी समस्या नहीं ही सुनते, उनकी समस्या के लिए यहां के छात्र नेता भी आवाज नहीं उठाते हैं। छात्रसंघ चुनाव के पहले वोट के लिए कई बार छात्र नेता आए लेकिन जितने के बाद एक बार भी उनकी समस्या पूछने कोई नहीं आया। एक छात्रा महामंत्री भी बनी जिससे उम्मीद थी कि गर्ल्स की समस्याएं दूर होंगी लेकिन वह भी कोई पहल नहीं की। कम से कम वह तो यूनिवर्सिटी प्रशासन के सामने गर्ल्स की समस्याएं उठा सकती थीं? अब तो नए वीसी से ही कुछ उम्मीद है।
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अलकनंदा गर्ल्स हॉस्टल
सुप्रिटेंडेंट - डॉ। पूजा सिंह,
डॉ। सरिता पांडेय
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टोटल कमरे - 54
वार्डेन रूम - 01
सुप्रिटेंडेंट रूम - 2
कर्मचारी - 4
आउट सोर्सिग - 4
सिक्योरिटी गार्ड - 2
जेनरेटर- कभी चलता नहीं
आरओ- 2 (दोनों ही खराब है)
सफाई कर्मचारी- 00
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2001 में हुआ था शिलान्यास
अलकनंदा गर्ल्स हॉस्टल का शिलान्यास 15 फरवरी 2001 को हुआ था। इस हॉस्टल के निर्माण से पहले इस जगह पर मूल्यांकन संबंधित कार्य होते थे, लेकिन महिला छात्रावास की डिमांड पर इसे 2001 में बनाया गया। उसके बाद 2010 से इसका संचालन शुरू हुआ। नया हॉस्टल होने के कारण बिल्डिंग अच्छी है लेकिन पानी की समस्या आज तक दूर नहीं हो पाई।
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कॉलिंग
यहां की सबसे बड़ी समस्या पानी की है। कोई दिन ऐसा नहीं जाता, जब पानी की दिक्कत न हो। शुक्रवार की सुबह बाथरूम में पानी नहीं आ रहा था। शिकायत की लेकिन समाधान नहीं हुआ।
सुजीता तिवारी, छात्रा
ज्यादातर टायलेट में फ्लैश खराब है। वैसे फ्लैश का क्या फायदा जब पानी ही नहीं आएगा? पानी आता भी है तो उसका फ्लो एकदम स्लो होता है। वार्डेन से कई बार कहा गया, लेकिन वार्डेन की इंजीनियरिंग डिपार्टमेंट वाले भी नहीं सुनते हैं।
विभा, छात्रा
सिक्योरिटी गार्ड की व्यवस्था केवल दिन के वक्त है। शाम के सात बजे के बाद वे गायब हो जाते हैं। इसकी शिकायत भी की गई थी, लेकिन कोई फायदा नहीं। नए वीसी आ रहे हैं। अब उन्हीं से उम्मीद है कि वह हास्टल की व्यवस्था में बदलाव करेंगे।
अर्चना गुप्ता, छात्रा
वर्जन
अलकनंदा गर्ल्स हॉस्टल की सबसे बड़ी समस्या है पानी की। चाहे पीने का पानी हो या फिर जनरल रूटीन के इस्तेमाल का पानी, समय से पानी आता ही नहीं है। इसके लिए कई बार इंजीनियरिंग डिपार्टमेंट को पत्राचार किया गया, लेकिन समस्या का परमानेंट समाधान ही नहीं हो रहा है। इसके अलावा भी कई अन्य समस्याएं है जिसे दूर किया जाना चाहिए।
प्रो। सुमित्रा सिंह, वार्डेन, अलकनंदा गर्ल्स हॉस्टल, डीडीयूजीयू
वर्जन
रजिस्ट्रार