ऐसे मे जब सभी खिलाड़ी देश के लिए पदक जीतने का सपना देख रहे हैं, 17 साल की दीपिका का पूरा ध्यान मेडल जीत कर अपने खेल तीरंदाजी में जान डालने पर लगा है.बीबीसी के साथ बातचीत में दीपिका कुमारी ने कहा, “मेरे जहन में कुछ और नहीं है। मुझे सिर्फ ओलंपिक में मेडल जीतना है। अपने खेल के लिए। क्योंकि तीरंदाजी को एक ओलंपिक पदक की जरूरत है.”

झारखंड की दीपिका का यह सपना देखना जरूरी भी है क्योंकि पिछले आठ सालों से जिस खेल को एशियाड या ओलंपिक में पदक मिला, वो चमक उठा। यकीनन दीपिका का एक पदक इस खेल को उठाने में मददगार होगा। दीपिका भी इस पदक के लिए पूरी तरह से तैय़ार हैं। उनकी नजर में कोरियाई तीरंदाज ओलंपिक में सबसे बड़ी चुनौती होंगे।

कोरियाई चुनौती

दीपिका ने बताया, “कोरियाई तीरंदाज काफी तेज हैं। एक बार किसी से खिलाफ हारने के बा द दूसरी बार सामना होने पर वो कोई गलती नहीं करते। वो काफी सावधान हो जाते हैं.” दीपिका ने बताया कि ओलंपिक के लिए काफी गंभीर ट्रेनिंग की गई है। इस बात का पूरा ध्यान रखा गया है कि ओलंपिक से पहले किसी की फॉर्म नीचे न जाए।

दीपिका के अलावा बोम्बेला देवी और चक्रोवालू स्वुरो ने महिलाओं की व्यक्तिगत स्पर्धा के लिए भी क्वॉलिफाई किया है। इसके अलावा यह तीनों रिकर्व टीम स्पर्धा में भी पदक हासिल करने की कोशिश करेंगी।

चक्रोवालू स्वुरो नागालैंड से हैं जबकि बोम्बेला मणिपुर की खिलाड़ी हैं। इस भारतीय टीम के नाम पिछले साल तूरीन में हुई वर्ल्ड चैंपियनशिप का सिल्वर मेडल है। जबकि दीपिका जूनियर विश्व चैंपियन होने के साथ-साथ दिल्ली में हुए राष्ट्रमंडल खेलों में स्वर्ण पदक भी जीत चुकी है।

असाधारण दीपिका

दीपिका ने बेशक इस मुकाम तक पहुंचने के लिए बहुत मेहनत की है लेकिन इसके लिए वह पूर्व तीरंदाज लिंबा राम का शुक्रिया अदा करना नहीं भूलतीं। दीपिका ने कहा, “भारत में तीरंदाजी लिंबा सर की वजह से ही है। उन्होंने ही इस खेल को देश में पहचान दी। आज तीरंदाज यहां तक पहुंचे हैं तो इसका एक कारण लिंबा सर भी हैं.”

रांची से 15 किलोमीटर दूर छोटे से गांव रातू छाटी में दीपिका बहुत ही गरीब परिवार से हैं। जाहिर है कि उनके लिए तीरंदाजी जैसे मंहगे खेल को अपनाना आसान नहीं था। इसलिए पिता नहीं चाहते थे कि उनकी बेटी तीरंदाजी करे।

दीपिका बताती हैं, “मेरे पिता कतई नहीं चाहते थे कि मैं तीरंदाजी करूं। लड़की होना भी उनकी सोच का एक कारण था। वह चाहते थे कि मैं पढूं क्योंकि वह खुद नहीं पढ़ पाए थे। पिता मना करते थे तो मैं अपनी मां को बताती और वह पिता को मनाने की कोशिश करते। लेकिन बाद में पिता ने मेरा समर्थन करना शुरू कर दिया.”

दीपिका 15 साल की थी जब उन्होंने 2009 में अमरीका में 11वीं यूथ वर्ल्ड आर्चरी चैंपियनशिप जीत कर विश्व तीरंदाजी में अपने आने का संदेश दिया। इसके बाद पिता को लगने लगा कि उनकी बेटी कुछ कर सकती है।

तीरंदाजी को अपनाने के बारे में पूछे जाने पर दीपिका ने बताया कि, “मैं 2007 से तीरंदाजी कर रही हूं। इससे पहले मुझे तीरंदाजी के बारे में पता नहीं था। मेरी कजन तीरंदाजी करती थी। उसी ने मुझे इसके बारे में बताया.”

दीपिका ने बताया कि 12-13 साल की उम्र में उन्हें अंदाजा नही था कि भारत में कौन सा खेल लोकप्रिय है। उन्होंने टेनिस और क्रिकेट के बारे में सुना था। क्रिकेट मुझे कभी पसंद नहीं आया। फिर उन्होंने आसपास देखा तो सिर्फ तीरंदाजी ही थी।

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