-शहर में दिनों दिन बढ़ता जा रहा है पॉल्यूशन का ग्राफ, इसको रोकने के लिए सिर्फ गाइडलाइन ही जारी की जाती हैं
-जारी की गई गाइडलाइन में एक भी नियम का नहीं किया जाता है पालन, खोखले साबित हो रहे सभी दावे
-वाहन, सॉलिड वेस्ट, निर्माण, हरियाली और इंडस्ट्रीज की वजह से होता है सबसे अधिक प्रदूषण
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KANPUR : कानपुर को ऐसा खिताब मिला है जो एक दाग की तरह है। यह इसलिए है कि सेंट्रल पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड से जारी की गई गाइडलाइन के मुताबिक किसी भी विभाग ने अपना कार्य ईमानदारी से नहीं किया है। अगर ऐसा किया गया होता तो यह दुनिया में सबसे ज्यादा पॉल्यूटेड सिटी का खिताब नहीं मिलता। पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड की सबसे बड़ी जिम्मेदारी बनती है कि वह सभी डिपार्टमेंट से सामंजस्य बैठाकर पॉल्यूशन फैलाने वाले सभी जिम्मेदारों पर कार्रवाई करे, लेकिन नींद है कि टूटती नहीं। दैनिक जागरण आई नेक्स्ट बताने जा रहा है शहर में पॉल्यूशन फैलाने के 5 सबसे बड़े 'दानवों' के बारे में, पढि़ए इस रिपोर्ट में
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1. सबसे ज्यादा प्रदूषण्ा वाहनों से
शहर में सबसे ज्यादा प्रदूषण वाहनों के द्वारा होता है। हर साल लाखों वाहन सड़कों पर उतरते हैं और प्रदूषण का बड़ा कारण बनते हैं। शहर में 50,000 से ज्यादा ऐसे वाहन हैं जो अपनी लाइफ पूरी कर चुके हैं, लेकिन फिर भी सड़कों पर दौड़ रहे हैं। आरटीओ विभाग से जुगाड़ की दम पर इन्हें सड़कों पर प्रदूषण फैलाने का लाइसेंस भी मिल जाता है। लाइफ पूरी कर चुके इन वाहनों से मानक से ज्यादा प्रदूषण होता है। पिछले 5 सालों में हर दिन शहर में लगभग 500 से ज्यादा नए वाहनों के रजिस्ट्रेशन आरटीओ में होते हैं। गाडि़यों से निकलने वाले धुएं विकराल समस्याओं को पैदा कर रहे हैं।
वाहन लोड
वर्ष 2017
थ्री व्हीलर गुड्स 108
मोटर कार 18343
मोटर कैब 774
मोपेड 1961
मोटर बाइक 83031
टै्रक्टर 1048
गुड्स कैरियर 3197
बस 115
ओमनी बस 20
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वर्ष 2016
थ्री व्हीलर गुड्स 184
मोटर कार 16024
मोटर कैब 258
मोपेड 2616
मोटर साइकिल 77415
टै्रक्टर 109
गुड्स कैरियर 2065
बस 101
ओमनी बस 16
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वर्ष 2015
थ्री व्हीलर गुड्स 280
मोटर कार 15562
मोटर कैब 245
मोपेड 2178
मोटर साइकिल 75184
टै्रक्टर 118
गुड्स कैरियर 1847
बस 109
ओमनी बस 20
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वर्ष 2014
थ्री व्हीलर गुड्स 370
मोटर कार 14750
मोटर कैब 84
मोपेड 2171
मोटर साइकिल 73344
टै्रक्टर 125
गुड्स कैरियर 1399
बस 96
ओमनी बस 14
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2. कूड़ा-करकट जलाना
शहर में प्रतिदिन 1300 टन कूड़ा निकलता है और सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइन के मुताबिक इसे ढक कर ही कहीं ले जाया जा सकता है। नगर निगम इसका पालन तो करता है, लेकिन कुछ ही गाडि़यों में और जहां से भी यह गाडि़यां गुजरती हैं, सड़कों पर कूड़ा फैलाते हुए जाती हैं। यही नहीं शहर में सफाई कर्मचारी अक्सर और आम लोग भी अपने आसपास पेड़ों से गिरी पत्तियां, पॉलिथीन और कूड़े में आग लगा देते हैं, जो प्रदूषण का सबसे बड़ा कारण है। पनकी स्थित भवसिंह कूड़ा डंपिंग ग्राउंड में भी आग लग गई थी, जिससे आस पास के लोगों का सांस लेना तक दूभर हो गया था।
यह हैं हालात
-2 लाख टन कूड़ा प्लांट में डंप पड़ा हुआ है।
-1300 टन कूड़ा रोजाना प्लांट में आता है।
-50 गाडि़यों के जरिए पहुंचाया जाता है कूड़ा।
-150 चक्कर में गाडि़यां कूड़ा करती हैं डंप।
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3. हरियाली का कम होना
शहर में आए दिन पर्यावरण को बचाने के लिए बड़े-बड़े सामाजिक कार्यक्रम किए जाते हैं, लेकिन लगातार इस दिशा में कार्यो को नहीं किया जाता है, जिससे पर्यावरण की दशा और दिशा में कोई खास सुधार नहीं हो पा रहा है। एनवॉयरमेंट में बढ़ती खतरनाक नाइट्रिक ऑक्साइड, कार्बन मोनोऑक्साइड, सल्फर डाईऑक्साइड और नाइट्रोजन ऑक्साइड कणों की बढ़ती मात्रा धीरे-धीरे हमारे जीवन को खत्म कर रही है। इसको सिर्फ हरे-भरे पेड़-पौधों से ही दूर किया जा सकता है।
हरियाली आंकड़ों के आइने से
साल 2016
3,16,000 पौधे-- फॉरेस्ट डिपार्टमेंट ने लगाए
2,39,000 पौधे-- अन्य विभागों के द्वारा लगाए गए
साल 2017
5,40,000 पौधे--- फॉरेस्ट डिपार्टमेंट का टारगेट
1,33,000 पौधे--- अन्य विभागों को इस साल का टारगेट
(जुलाई से सितंबर महीने में पौधों को लगाने का कार्य विभागों द्वारा शुरू किया जाएगा.)
साल 2018
13,37,700 पौधे--लगाने के लिए वन विभाग को दिया टारगेट।
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हरियाली के लिए अलॉट बजट
2016---3 करोड़ का बजट खर्च किया गया।
2017---90 लाख खर्च हुआ।
2018---15 करोड़ का बजट बनाकर भेजा गया है।
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4. निर्माण पर कोई रोक नहीं
सेंट्रल पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड के मुताबिक कोई भी भवन निर्माण किया जाए तो उसे ढक कर किया जाए। लेकिन कुछ जगहों को छोड़ दिया जाए तो पूरे शहर में कहीं भी ऐसा नहीं होता है। सड़कों पर की जाने वाली खुदाई भी गाइड लाइन को साइड लाइन कर ऐसे ही कर दी जाती है और इसमें पानी का छिड़काव तक नहीं किया जाता है, जिससे बड़ी मात्रा में डस्ट पार्टिकल हवा में फैलते हैं। वहीं केडीए से हर महीने लगभग 70 नक्शे पास होते हैं, लेकिन इनके निर्माण की कभी जांच नहीं की जाती है। यही नहीं बिल्डिंग को गिराने आदि में भी कोई प्रिकॉशन नहीं लिया जाता है। इसके अलावा सड़कों पर ही निर्माण सामग्री पड़ी रहती है जो पॉल्यूशन का बड़ा कारण बनते हैं।
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5. इंडस्ट्रीज भी बड़ा कारण
शहर के कई हिस्सों में बड़ी-बड़ी इंडस्ट्रीज हैं, इसमें प्रमुख रूप से पनकी, दादानगर, जाजमऊ, चौबेपुर, रूमा आदि क्षेत्रों में हजारों की संख्या में इंडस्ट्रीज मौजूद हैं। पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड में 2500 से ज्यादा इंडस्ट्रीज रजिस्टर्ड हैं। इनमें जाजमऊ और पनकी और दादानगर में एयर पॉल्यूशन करने वाली फैक्ट्री ज्यादा संख्या में हैं। गाइड लाइन के मुताबिक चिमनी से निकलने वाले हानिकारक धुएं को कई चरण में फिल्टर किया जाना चाहिए, ताकि इसके हानिकारक पार्टिकल हवा में न फैल पाएं। लेकिन पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड ने अब तक कुछ इंडस्ट्रीज में ही कार्रवाइर्1 की है।
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बच्चों के लंग्स हाे रहे खराब
बीते सालों में शहर में पॉल्यूशन का जो स्तर बढ़ा है, उसका हमारी सेहत पर असर दिखने लगा है। खासतौर पर बच्चों पर इसके हानिकारक असर देखने हो तो हैलट में बालरोग अस्पताल में जाकर देख सकते हैं। कैसे ज्यादा पॉल्यूशन की वजह से यहां आने वाले हर दूसरे बच्चे के लंग्स पर प्रभाव पड़ा है। बालरोग अस्पताल के डॉक्टर्स के मुताबिक, ओपीडी और इनडोर में जो बच्चे आ रहे हैं उनमें से हर दूसरे बच्चे को रेस्पेरेटरी इंफेक्शन, ब्रांक्यूलाइटिस, निमोनिया की प्रॉब्लम है। ऐस में बड़ी संख्या में बच्चों को भी निमोलाइज कराने की सलाह दी जा रही है। बालरोग विभाग के प्रो। एके आर्या ने बताया कि ओपीडी में हर रोज 200 से ज्यादा बच्चे आ रहे हैं। इनमें से 60 फीसदी बच्चों में सर्दी, जुखाम, बुखार के अलावा गले में दर्द जैसी भी समस्या है।