लखनऊ (ब्यूरो)। ग्लोबल बर्डन ऑफ अस्थमा रिपोर्ट के अनुसार भारत में लगभग तीन करोड़ लोग अस्थमा से पीडि़त हैं। जबकि उत्तर प्रदेश में यह संख्या 50 लाख से अधिक है। दो तिहाई से अधिक लोगों में दमा बचपन से ही शुरू हो जाता है। इसमें बच्चों को खांसी होना, सांस फूलना, सीने में भारीपन, छींक आना व नाक बहना तथा बच्चे का सही विकास न हो पाना जैसे लक्षण होते हैं। इसके अलावा खांसी जो रात में गंभीर हो जाती हो, सांस लेने में दिक्कत जो दौरों के रूप में तकलीफ देती हो, छाती में कसाव-जकडऩ, गले से सीटी जैसी आवाज आना आदि भी अस्थमा के लक्षण हो सकते हैं।

खुद से न बंद करें इन्हेलर
अस्थमा इलाज में इन्हेलर चिकित्सा सर्वश्रेष्ठ है। क्योंकि इसमें दवा की मात्रा का कम इस्तेमाल होता है, असर सीधा एवं शीघ्र होता है एवं दवा का कुप्रभाव बहुत ही कम होता है। अस्थमा के इलाज के लिए दो प्रमुख तरीके के इन्हेलर हैं। रिलीवर इन्हेलर जल्दी से काम करके श्वांस की नलिकाओं की मांसपेशियों का तनाव ढीला करते हैं। इससे सिकुड़ी सांस की नलियां खुल जाती हैं। मरीजों को ध्यान रखना चाहिए कि खुद से इन्हेलर का प्रयोग कभी बंद न करें, इसके गंभीर परिणाम हो सकते हैं।

अस्थमा के मरीज रहें सजग
इंडियन कॉलेज ऑफ एलर्जी अस्थमा एंड एप्लाइड इम्यूनोलॉजी के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ। सूर्यकांत का कहना है कि बदलते मौसम में सांस की दिक्कत बढ़ती है। धूल, धुआं, गर्र्दा, नमी, सर्दी व धूम्रपान, शीतल पेय, फास्टफूड तथा केमिकल व प्रिजरवेटिव युक्त खाद्य पदार्थो जैसे चॉकलेट, टाफी, कोल्ड ड्रिंक व आइसक्रीम आदि से बचना जरूरी है।

ऐसे करें बचाव
- बदलते तापमान में अपना ध्यान रखें
- दवा पास रखें और कंट्रोलर इन्हेलर समय से लें
- सिगरेट, सिगार व बीड़ी के धुएं से बचें
- प्राणायाम करना बचाव का अच्छा तरीका है
- रेशम के तकिये का इस्तेमाल न करें
- सेंमल की रूई से भरे तकिए, गद्दा या रजाई का इस्तेमाल न करें
- धुआं, धूल, मिट्टी, वाली जगह से बिना नाक मुंह ढंके न गुजरें
- इत्र या परफ्यूम का इस्तेमाल न करें