लखनऊ (ब्यूरो)। कैसरबाग बस स्टेशन पर न तो दवा की दुकान खुल सकी, न ही पार्लर शुरू हो सका है। यहां कई प्रतिष्ठित कंपनियों के फूड स्टॉल खोले जाने का सपना भी अधूरा रह गया। परिवहन निगम के अडिय़ल रवैये के चलते ऐसा हुआ है। बस स्टेशनों पर अत्यधिक किराये की डिमांड किये जाने से निवेशकों ने अपने कदम पीछे खींच लिये। इसकी वजह से जहां यात्रियों को बेहतर सुविधाएं नहीं मिल पा रही हैं, वहीं रोडवेज को भी राजस्व का नुकसान हो रहा है। इन दुकानों को किराए पर उठाने के लिए टेंडर निकाला गया था, लेकिन किसी ने संपर्क नहीं किया। अत्यधिक किराये के चलते लोगों ने इससे दूरी बना ली। कैसरबाग ही नहीं प्रदेश के अन्य बस स्टेशनों पर भी दुकानें नहीं उठ पा रही हैं। विभागीय अधिकारियों के अनुसार, इन दुकानों का किराया कम करने का अधिकार हमारे पास नहीं है। इसके लिए शासन को पत्र भेजा गया है।

छह दुकानें बनी हुई हैं

रोडवेज अधिकारियों के अनुसार, कैसरबाग बस स्टेशन पर छह दुकानें बनी हुई हैं। यहां पर एक मेडिकल स्टोर, एक पार्लर, एक जूस सेंटर और कई प्रतिष्ठित कंपनियों के खाने के स्टाल खोले जाने की तैयारी की गई। इसके लिए परिवहन निगम ने टेंडर निकाले तो आवेदन ही नहीं आये। ऐसे ही एक दुकान परिवहन निगम मुख्यालय में भी सात वर्षों से बंद पड़ी है। इसके अलावा प्रयागराज, मेरठ, सहारनपुर, कानपुर, रायबरेली सहित कई जिलों में बस स्टेशनों पर दुकानें बंद पड़ी हैं। कानपुर में पान की दुकान के लिए टेंडर किया गया लेकिन आवेदक दूर ही रहे।

कोरोना के बाद वापस नहीं लौटे दुकानदार

कोरोना काल के बाद अब तक बस स्टेशनों पर कई दुकानों के शटर डाउन हैं। जिनकी दुकानें थीं, वे भी महंगे किराये के चलते दोबारा लौट कर नहीं आये। इसके अलावा बस स्टेशनों के बाहर लगी अवैध दुकानों के चलते भी दुकानदारों ने वापसी नहीं की। बस अड्डे पर खुली दुकानों का किराया कम करने के लिए कई बार बोर्ड बैठक में मुद्दा रखा गया लेकिन किसी ने इस मामले में कुछ भी बोलने से इंकार कर दिया। विभागीय अधिकारियों के अनुसार, दुकानें न खुलने से हर महीने परिवहन निगम को तकरीबन एक करोड़ रुपए का नुकसान उठाना पड़ रहा है।

परिवहन निगम के राजस्व को बढ़ाने के लिए प्रयास किये जा रहे हैं। बस स्टेशनों पर खुली दुकानों का किराया भी रिवाइज किया जाना है। इसके लिए शासन को पत्र भेजा गया है।

-आरपी सिंह, एमडी, परिवहन निगम