लखनऊ (ब्यूरो)। ल्यूकेमिया, लिम्फोमा, प्रतिरक्षा की कमी संबंधी विकारों आदि समस्याओं से जूझ रहे मरीजों के लिए राहत भरी खबर है। ऐसे मरीजों को बोन मैरो ट्रांसप्लांट कराने के लिए निजी या अन्य बड़े शहरों का रुख नहीं करना पड़ेगा, क्योंकि अब राजधानी के केजीएमयू में भी बोन मैरो ट्रांसप्लांट शुरू हो गया है।

मरीजों को मिलेगा बड़ा फायदा

केजीएमयू के हेमेटोलॉजी विभाग में ब्लड कैंसर समेत ब्लड से जुड़ी अन्य बीमारियों का इलाज किया जाता है। यहां की ओपीडी में 200 से अधिक मरीज इलाज कराने आते हैं। साथ ही गंभीर मरीजों को भर्ती कर ट्रीटमेंट शुरू किया जाता है। अभी तक विभाग द्वारा ब्लड कैंसर से पीडि़त मरीजों का इलाज कीमोथेरेपी व इम्यूनोथेरेपी से किया जा रहा है। पर अब मरीजों को बोन मैरो ट्रांसप्लांट की सुविधा भी मिल सकेगी और उनको बेहतर इलाज भी यहीं मिल सकेगा। मरीजों को बेहतर इलाज मुहैया कराने की दिशा में हेमेटोलॉजी विभाग ने अहम कदम उठाया। वीसी डॉ। बिपिन पुरी ने बताया कि संस्थान में आने वाले ब्लड कैंसर से पीडि़त मरीजों में बोन मैरो ट्रांसप्लांट करने का फैसला लिया गया है।

चार मरीजों में हुआ ट्रांसप्लांट

हेमेटोलॉजी विभाग के एचओडी डॉ। एके त्रिपाठी ने बताया कि बोन मैरो मुलायम और स्पंजी ऊतक होते हैं, जो हड्डियों के बीच पाये जाते हैं। संस्थान में अब तक चार मरीजों का बोन मैरो ट्रांसप्लांट हुआ है। ऑटोलॉगस तकनीक से ट्रांसप्लांट किया गया है। इसमें मरीज का बोन मैरो ही उसमें ट्रांसप्लांट किया जाता है। इससे रिजेक्शन की आशंका बहुत कम हो जाती है। ऐसे में ट्रांसप्लांट के बाद मरीज जल्द स्वस्थ्य हो जाता है। ट्रांसप्लांट के बाद इन मरीजों को समय-समय पर बुलाकर जांचें कराई जा रही हैं।

बेहद कम खर्च में होगा ट्रांसप्लांट

डॉ। त्रिपाठी ने बताया कि निजी अस्पताल में बोन मैरो ट्रांसप्लांट कराने में करीब 10 लाख रुपये का खर्च आता है। जबकि, यही ट्रांसप्लांट संस्थान में कराने में करीब ढाई लाख का खर्च होगा, यानि मरीजों पर ज्यादा आर्थिक बोझ नहीं पड़ेगा। इसके अलावा, पीएम व सीएम फंड समेत कई अन्य तरह की योजनाएं केजीएमयू में चल रही हैं। इसके तहत मरीजों को पैसे भी नहीं खर्च करने पड़ रहे हैं। ट्रांसप्लांट टीम में विभाग के डॉ। एसपी वर्मा, डॉ। स्वस्ती सिन्हा, पैथोलॉजी विभाग की डॉ। गीता यादव, ब्लड एंड ट्रांसफ्यूजन मेडिसिन विभाग की अध्यक्ष डॉ। तुलिका चंद्रा, रेडियोथेरेपी विभाग के अध्यक्ष डॉ। एमएलबी भट्ट शामिल हैं।

केजीएमयू में बोन मैरो ट्रांसप्लांट करने का फैसला मरीजों के हितों को देखते हुए लिया गया है। इससे ब्लड कैंसर से जूझ रहे मरीजों को बड़ी राहत मिलेगी।

-डॉ। बिपिन पुरी, वीसी, केजीएमयू

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अल्ट्रासोनिक ट्रीटमेंट से आरसीटी हुआ आसान

अगर रूट कैनाल ट्रीटमेंट, आरसीटी कराने के बावजूद समस्या ठीक नहीं हुई, तो चिंता करने की जरूरत नहीं है। अब नई मशीन की मदद से इसे दोबारा और बेहतर तरीके से किया जा सकता है। ऐसे में आरसीटी के फेल होने के बावजूद दांत को निकालने की जरूरत नहीं पड़ेगी। यह जानकारी केजीएमयू डेंटल विंग के कंजरवेटिव डेंटिस्ट्री एवं एंडोडॉन्टिक्स विभाग के अध्यक्ष व डीन डॉ। एपी टिक्कू ने सोमवार को अल्ट्रासोनिक इन एंडोडॉन्टिक्स तकनीक कार्यशाला के दौरान दी।

बैक्टीरिया का पूरी तरह से सफाया

पुणे स्थित एमए रंगूनवाला डेंटल कॉलेज के उप-प्राचार्य डॉ। विवेक हेगडे ने कहा कि अल्ट्रासोनिक रूट कैनाल ट्रीटमेंट ज्यादा कारगर साबित होगा। अल्ट्रसोनिक मशीन में कंपन होता है। ऐसे में जिन मरीजों में आरसीटी फेल हो जाती है उनमें दोबारा करना आसान होता है। बीमारी से प्रभावित दांत में कैमिकल डालने के बाद मशीन से उसको क्लीन कर दिया जाता है। कंपन होने से बैक्टीरिया या दूसरी गंदगी बाहर आ जाती है। इसके अलावा पूर्व में की गई आरसीटी का मैटेरियल भी आसानी से बाहर आ जाता है।

टूटी निडिल निकालना होगा आसान

वहीं, डॉ। रमेश भारती ने बताया कि आरसीटी प्रोसिजर करने के दौरान निडिल टूट जाती है। जिसकी वजह से उसे निकालना बेहद कठिन हो जाता है। पर अल्ट्रासोनिक मशीन की मदद से टूटी निडिल को बाहर आसानी से निकाला जा सकता है। खास बात यह है कि दांतों को बहुत अधिक काटने की भी जरूरत नहीं पड़ती है। ऐसे में दांतों को बचाया जा सकता है।