- चुनाव बाद भी खाली रह जाएंगे 25 हजार से अधिक पद

-ग्राम पंचायत सदस्यों की सीट के बराबर भी नहीं मिले कैंडीडेट

-प्रदेश के कई गांव में एक भी सदस्यों ने नहीं भरा पर्चा

-ग्राम पंचायत सदस्यों का भी कम नहीं होता महत्व

yasir.raza@inext.co.in

LUCKNOW: निर्वाचन आयोग की सारी कवायद के बाद भी ग्राम पंचायत सदस्यों की हजारों पद खाली रह जाएंगे। पहले फेज में होने जा रहे इलेक्शन में एक लाख 96 हजार 580 पदों में से एक लाख 80 हजार 51 लोगों ने ही इंटरेस्ट दिखाया है। इनमें कई सीटों पर तीन से पांच कैंडीडेट भी मैदान में हैं। यानी इलेक्शन प्रक्रिया पूरी होने तक 25 हजार से अधिक सीट फिर भी खाली रह जाएगी। इसके लिए आयोग को दोबारा चुनाव कराने पड़ सकते हैं। कई जिले तो ऐसे हैं जहां कई कई गांवों में एक भी मेंबर ने ग्राम पंचायत सदस्य के लिए पर्चा नहीं भरा है। ऐसे में वहां उप प्रधान का चुनाव कैसे होगा यह सबसे बड़ा सवाल बन गया है। क्यों कि ग्राम के उप प्रधान का चुनाव ग्राम सभा के चुने गये सदस्य ही करते हैं।

प्रधानी की एक सीट पर नौ कैंडीडेट

पहले फेज के आंकड़ों पर अगर गौर करें तो 15 हजार 646 सीटों के लिए एक लाख 44 हजार कैंडीडेट ने दिलचस्पी दिखायी है। जबकि ग्राम पंचायत सदस्य के लिए 1 लाख 96 हजार 580 पदों के लिए सिर्फ एक लाख 80 हजार ही कैंडीडेट्स ने ही नॉमिनेशन किया है। यानी ग्राम प्रधान के लिए औसतन हर सीट पर नौ कैंडीडेट हैं जबकि ग्राम पंचायत सदस्य के लिए यह रेशियो एक से भी कम का है। 1961 अधिनियम के अनुसार ग्राम पंचायत सदस्य के खाली पड़े पद पर छह माह के अंदर नियुक्ति करायी जानी चाहिए।

क्यों नहीं है दिलचस्पी?

दरअसल, ग्राम सभा में होने वाले किसी भी काम के लिए सीधे ग्राम प्रधान की जिम्मेदारी होती है। बाकी सदस्यों से विकास कार्यो में अधिक मतलब नहीं होता। हालांकि नियमों के मुताबिक ग्राम सभा की बैठक में कम से कम 20 परसेंट सदस्यों का होना जरूरी होता है। जो ग्राम प्रधान होशियार होते हैं वह अपने सगे संबंधी या भरोसेमंद लोगों का परचा बगैर किसी चरचा के भर देते हैं, और वह निर्विरोध निर्वाचित हो जाते हैं। प्रधान भी सिर्फ अपने फायदे भर के कैंडीडेट खड़ा करते हैं बाकी सीटें खाली छोड़ देते हैं। ऐसे में हर गांवों में 30 से 40 परसेंट सीटें खाली रह जाती हैं।

कभी नहीं चुने गये पूरे सदस्य

निर्वाचन आयोग के एक अधिकारी की मानें तो पंचायत चुनावों में अब तक के इतिहास में कभी ऐसा नहीं हुआ कि ग्राम पंचायतों के सदस्यों की सीट भरी हो। 30 से 40 परसेंट तक सीट हमेशा खाली रह जाती है। इस बार भी ग्राम पंचायत सदस्यों में अधिक क्रेज नहीं दिख रहा है। अभी तक भरे गये पर्चो में आधे से अधिक सदस्यों के पद खाली हैं जबकि आज नामांकन का आखिरी दिन था।

उप प्रधानों के चयन का होता है अधिकार

ग्राम पंचायत सदस्यों के रोल के बारे में आपको बता दें। ग्राम प्रधान निर्वाचित होने के बाद ग्राम सभा की बैठक बुलाता है। इसमें सभी ग्राम पंचायत के सदस्य मौजूद हैं। बैठक में ग्राम के उप प्रधान का चुनाव कराया जाता है। जिसे चुनने का अधिकार ग्राम पंचायत सदस्यों को होता है। जरूरत पड़ने पर इसमें वोटिंग करायी जाती है और जिसे अधिक वोट मिलता है, वह उप प्रधान चुना जाता है।

प्रधान के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव ला सकते हैं सदस्य

ग्राम सभा की साल में तीन बार आम मीटिंग बुलायी जाती है। मीटिंग का कोरम पूरा करने के लिए कुल सदस्यों का कम से कम पांचवा हिस्सा मौजूद रहना जरूरी होता है। इसके अलावा अगर किसी ग्राम सभा के दो तिहाई मेंबर ग्राम प्रधान के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव ले आयें और लिखित रूप में जिले के डीएम को दें तो डीएम किसी अधिकारी को नियुक्त कर ग्राम सभा की आम बैठक बुलाकर ग्राम प्रधान को हटाने का निर्णय कर सकता है। हालांकि इस तरह के केसेस पूरे प्रदेश में दो चार ही आते हैं।

प्रधान उम्मीदवार खुद ही भरते हैं सदस्यों के पर्चे

सूत्रों का कहना है कि ग्राम पंचायत सदस्य के चुनाव में आम लोग कम ही दिलचस्पी दिखाते हैं। प्रधानी का चुनाव लड़ रहा कैंडीडेट ही अपने हिसाब से भविष्य की रणनीति तय कर अपने कैंडीडेट्स को चुनाव मैदान में उतार देता है। अधिकतर गांवों में वार्ड लेविल पर कोई विरोध नहीं करता और सदस्य निर्विरोध निर्वाचित हो जाता है।

इन जिलों की स्थिति सबसे अधिक खराब

ग्राम पंचायत सदस्य के लिए सबसे कम दिलचस्पी जिन जिलों में है उनमें फर्रुखाबाद पहले नंबर पर है। यहां 1947 ग्राम पंचायत सदस्य पदों के लिए मात्र 33 लोगों ने ही नामांकन किया है। महोबा में 1190 पद के लिए 139, मऊ में 2687 पद के लिए 225, आगरा में 2843 पद के लिए 302, मथुरा में 1777 पद के लिए 582 कैंडीडेट ही मैदान में हैं। इनमें अधिकतर का निर्विरोध निर्वाचित होना तय है लेकिन जो सीटें रिक्त रह जाएंगी उनका क्या होगा? इस बारे में आयोग के पास भी फिलहाल कोई जवाब नहीं 8है।