लखनऊ (ब्यूरो)। एक तरफ धड़ल्ले से भूगर्भ जल की बर्बादी हो रही है, वहीं दूसरी तरफ रेन वॉटर हार्वेस्टिंग सिस्टम को लेकर जिम्मेदार सिस्टम अंजान बना हुआ है। नियम तो यह है कि तीन सौ वर्गमीटर के मकानों में रेन वॉटर हार्वेस्टिंग सिस्टम अनिवार्य है लेकिन 70 फीसदी मकानों में यह सिस्टम नजर नहीं आता है।

नक्शे में शो किया जाता

जब भवन स्वामी की ओर से इन वर्गमीटर के मकान का नक्शा तैयार कराया जाता है तो उसमें रेन वॉटर हार्वेस्टिंग सिस्टम के लिए जगह तो दर्शायी जाती है लेकिन जब मकान बन जाता है तो अधिकतर उस जगह भी निर्माण कर दिया जाता है। प्राधिकरण की ओर से भी इनके खिलाफ कोई ठोस कदम नहीं उठाया जाता है।

फिर कोई ध्यान नहीं देता

नियम के अनुसार, मकान बनवाने के बाद भवन स्वामी को जानकारी देनी होती है कि उसकी ओर से रेन वॉटर हार्वेस्टिंग सिस्टम लगवा लिया गया है। इसके बाद टीम को मौके पर जाकर इसका सत्यापन करना होता है। वर्तमान स्थिति यह है कि न तो भवन स्वामी की ओर से कोई जानकारी दी जाती है न ही टीम मौके पर जाकर कोई सत्यापन करती है।

200 दिन तक दूर हो सकता संकट

अगर रेन वॉटर हार्वेस्टिंग सिस्टम लगा दिए जाएं तो हर साल एक लाख लीटर पानी बच सकता है। उदाहरण के लिए अगर एक हजार वर्ग फुट के मकान में रेन वॉटर हार्वेस्टिंग सिस्टम को लगा दिया जाए तो इससे इतना पानी बचेगा, जिससे 150 से 200 दिन तक एक फैमिली को पानी संकट का सामना नहीं करना पड़ेगा। बता दें कि राजधानी के आलमबाग, इंदिरानगर, मड़ियांव, कुकरैल, सरोजनी नगर समेत कई इलाकों में जलस्तर तेजी से गिरा है। जिसकी वजह से लोगों के घरों में लगी बोरिंग तक फेल हो रही है।

पार्कों में भी प्लानिंग

एलडीए और नगर निगम की ओर से आवासीय और कॉमर्शियल बिल्डिंग्स के साथ-साथ पार्कों में भी जल संचयन की दिशा में कदम आगे बढ़ाए जाने की तैयारी की गई थी। एलडीए की ओर से पहले तो पार्कों का सौंदर्यीकरण कराया जाना था फिर उसमें जल संचयन संबंधी इंतजाम किए जाने थे। जिससे हर स्तर पर पानी की बचत हो सके। वहीं नगर निगम को भी इस दिशा में कदम उठाने थे। 10 प्रतिशत पार्कों में तो रेन वॉटर हार्वेस्टिंग सिस्टम लगाया गया लेकिन गली मोहल्लों में स्थित पार्कों में फिलहाल अभी तक कोई एक्शन नहीं लिया गया है।

सरकारी इमारतों में भी कवायद जरूरी

वैसे तो राजधानी की कई सरकारी इमारतों जैसे एलडीए, नगर निगम, मध्यांचल, परिवहन इत्यादि में रेन वॉटर हार्वेस्टिंग सिस्टम लगे हुए हैैं लेकिन नगर निगम के जोन कार्यालयों में इसे लगाने की योजना बनी थी लेकिन अभी तक योजना इंप्लीमेंट नहीं हो सकी है। इसी तरह पुलिस थानों में भी रेन वॉटर हार्वेस्टिंग सिस्टम नहीं लगे हुए हैंं।

यह है रेन वॉटर हार्वेस्टिंग प्रक्रिया

भवन निर्माण से पहले ही छत के पानी को रेन वाटर पाइप के जरिए जमीन में एक जगह एकत्रित किया जाता है। इसके बाद बोरिंग के जरिए पानी को ग्रेवल लैंड यानी बजरी भूमि तक ले जाते है। यहां से पानी छनता और फिर भूजल स्तर से ऊपर बालू वाले हिस्से तक बरसात का पानी छन के भूजल स्तर में मिल जाता है। इस प्रकिया में 20 से 25 हजार रुपये का खर्च आता है।

रेन वॉटर हार्वेस्टिंग सिस्टम को अनिवार्य कर दिया गया है। अगर नक्शा पास कराने के बाद उक्त सिस्टम नहीं लगाया जाता है तो कड़े कदम उठाए जाएंगे। टीमें भी गठित की जा रही हैैं, जो सर्वे करके रेन वॉटर हार्वेस्टिंग सिस्टम की स्थिति देखेंगी और रिपोर्ट देंगी।

डॉ। इंद्रमणि त्रिपाठी, वीसी, एलडीए

सोशल मीडिया पर कमेंट्स

मेरा मानना है कि पानी बचाने की शुरुआत अपने घर से ही करनी चाहिए। अगर पानी नहीं बचेगा तो कल की कल्पना नहीं की जा सकती है।

संध्या, गोमतीनगर

जो भी पानी की बर्बादी करे, उसके खिलाफ लीगल एक्शन लिया जाना चाहिए। जिम्मेदार विभागों को इस तरफ ध्यान देना होगा।

सविता, आलमबाग

घरों में तेजी से सबमर्सिबल लगाए जा रहे हैैं। पहले तो इस बिंदु पर नियम कानून बनाए जाने की जरूरत है। सबमर्सिबल से सबसे अधिक पानी का दोहन होता है।

आकाश, कैसरबाग

अगर हम अभी पानी नहीं बचाएंगे तो आने वाली पीढ़ी को खतरे में डालेंगे। हर व्यक्ति को पानी बचाने की दिशा में प्रयास करने होंगे।

साकेत, आशियाना