लखनऊ (ब्यूरो)। आजकल की खराब लाइफस्टाइल का असर हमारी मेंटल हेल्थ पर भी पड़ रहा है। जिंदगी में तनाव और खराब खानपान का असर देखने को मिल रहा है। जिसकी वजह से लोग समय से पहले ही डिमेंशिया का शिकार हो रहे हैं। ऐसे में बड़ी संख्या में लोग इसके इलाज के लिए अस्पताल पहुंच रहे हैं। डॉक्टर्स की माने तो समय रहते इसकी पहचान से इसे कंट्रोल तो किया जा सकता है, लेकिन ठीक नहीं किया जा सकता। ऐसे में तनावमुक्त होना बेहद जरूरी है।

कम उम्र में हो रही बीमारी

मनोचिकित्सक डॉ। देवाशीष शुक्ला बताते हैं कि डिमेंशिया पहले 60 की उम्र के बाद की बीमारी मानी जाती थी। पर अब यह बीमारी 50-60 वर्ष के बीच में भी होने लगी है। इसकी बड़ी वजह केमिकल चेंज, खराब खानपान और खराब जीवनशैली है। अर्ली एज में पहचान हो जाये तो इसे कंट्रोल कर सकते हैं। साथ ही परिवार को तरीका बताया जाता है कि मरीज के साथ घर में व्यवहार कैसे करें, क्योंकि मरीज एक तरह से बच्चे की तरह हो जाता है, जिसको वॉशरूम जाने से लेकर खाने तक के लिए याद दिलाना पड़ता है। इसकी दवाइयां सीमित हैं, लेकिन रिस्पांस अच्छा है। समय रहते इसका ट्रीटमेंट करवाना बेहद जरूरी है।

एआई के इस्तेमाल से होगी आसानी

केजीएमयू के न्यूरोलॉजी विभाग के हेड प्रो। आरके गर्ग के मुताबिक, अलजाइमर्स रोग एक मस्तिष्क विकार है, जो समय के साथ बढ़ता जाता है। इसमें मस्तिष्क में कुछ प्रोटींस की जमा होने वाली परिवर्तनों की वजह से चरित्रित किया जाता है। अलजाइमर्स रोग से मस्तिष्क सिकुड़ता है और मस्तिष्क की कोशिकाएं धीरे-धीरे मर जाती हैं। यह स्मृति, सोच, व्यवहार और सामाजिक कौशल में होने वाले अवसादन का सबसे आम कारण है। उन्होंने आगे बताया कि एआई के उपकरण अलजाइमर्स के लक्षणों की पहचान में सहायक साबित होते हैं। अब तक की गई अध्ययनों में इसे प्रमाणित किया गया है कि एआई और मशीन लर्निंग के तकनीकी अलजाइमर्स रोग के उपचार और पहचान में क्रांतिकारी परिवर्तन ला सकते हैं। यदि इसे सही तरीके से इस्तेमाल किया जाए तो यह रोग की पहचान, उपचार और रोग की प्रगति की निगरानी में बड़ी मदद कर सकता है। जिससे उपचार के विकल्पों को बेहतर बनाया जा सकता है और रोगियों की जीवन गुणवत्ता में सुधार किया जा सकता है।

एयर पाल्युशन भी बड़ा कारण

केजीएमयू में साइकियाट्रिस्ट डॉ। आर्दश त्रिपाठी के मुताबिक, अलजाइमर्स बहुत तेजी से बढ़ रहा है। इसके कई कारण हैं जैसे लाइफ एक्सपेक्टेंसी बढ़ रही है यानि औसतन उम्र बढ़ रही, जिससे डिमेंशिया बढ़ रहा है। इसके अलावा जेनेटिक कारण भी हैं। वहीं, प्रिवेंटेबल फैक्टर में एयर पाल्युशन खासतौर पर वातावरण में ज्यादा पार्टिकुलेट होना भी बड़ा कारण है। यह कई स्टडी से पता भी चल चुका है। खासतौर पर हाइवे के पास रहने वालों में इसका खतरा अधिक होता है। वहीं, क्रोनिक बीमारी जैसे डायबिटीज, बीपी आदि भी इसके खतरे को बढ़ा रही है।

ऐसे करें अपना बचाव

डॉ। आदर्श के मुताबिक, इस बीमारी के खतरे को कम करने के लिए चार चीजें करना बेहद जरूरी है

-फिजिकली एक्टिव रहें

-सोशली कनेक्टेड रहें यानि दोस्त व परिवार आदि से मिलते रहें

-ब्रेन को चैलेंज करते रहें यानि दिमागी कसरत जरूरी है

-डायबिटीज, बीपी, आंख व कान की कमजोरी की समस्या है तो इसे कंट्रोल करें

इन लक्षणों का रखें ध्यान

- स्मृति हानि

- भ्रम होना

- रोजमर्रा के कामों को पूरा करने में दिक्कतें

- भाषा का इस्तेमाल करने में दिक्कत

- व्यक्तित्व में परिवर्तन