LUCKNOW : कोरोना वायरस की चेन को तोड़ने के लिए देश भर में लॉकडाउन लागू किया गया। इस दौरान जो जहां था वह वहीं फंस गया। इससे लोग परेशान होने लगे। ऐसे में उन्हे उनके घर तक पहुंचाने की जिम्मेदारी परिवहन निगम ने उठाई। परिवहन विभाग के अधिकारियों ने खाका तैयार किया और नियमों का पालन करते हुए प्रदेश ही नहीं दूसरे राज्यों में फंसे लोगों को घर तक पहुंचाया। परिवहन निगम का यह कदम मॉडल बनकर उभरा और इसे दूसरे राज्यों ने अपनाया। आइए इस मॉडल में अपना अहम योगदान देने वाले अधिकारियों से खुद उनकी जुबां से जानते हैं कि इसे कैसे परवान चढ़ाया।

देररात तैयार किया एक्शन प्लान

लॉकडाउन के बाद रोडवेज के पहिये भी थम गये। अधिकांश स्टाफ को घर भेज दिया गया। अचानक शासन से दूसरे राज्यों और शहरों में फंसे लोगों को लाने का आदेश मिला। इस पर देर रात अधिकारियों के साथ बैठक की और बसों के संचालन का खाका तैयार किया। इस दौरान सोशल डिस्टेंसिंग का कड़ाई से पालन कराया। बस के साथ पैसेंजर्स के हाथों को भी सेनेटाइज कराया गया। वहीं पैसेंजर्स को सफर के दौरान कोई प्रॉब्लम ना हो इसके लिए पानी और खाने की व्यवस्था की निगम की ओर से कराई गई।

कोट

ऐसे मुश्किल समय में ही व्यक्ति की परीक्षा होती है। सीएम के जनहित में लिये गये फैसला का पालन निगम ने एक टीम भावना से किया। परिवहन मंत्री, प्रमुख सचिव परिवहन, अध्यक्ष परिवहन निगम के मार्ग दर्शन की बदौलत हमने सभी काम सफलतापूर्वक किये। लाखों लोगों को अपने परिवार से मिलाया जा सका। आगे भी जिम्मेदारी और बड़ी है, लेकिन परिवहन निगम एक टीम की भावना से काम कर उसमें भी बेहतर परिणाम देगी।

डॉ। राजशेखर

एमडीए परिवहन निगम

रात में जागकर बसों का मेंटीनेंस कराया

लॉकडाउन में फंसे लोगों को उनके घर पहुंचाने के लिए बसों का चुनाव करना आसान नहीं था क्योंकि हमें इस दौरान इसका ख्याल रखना था कि सफर के दौरान बस ना खराब हो। ऐसे में रात को जागकर टीम के साथ डिपो पर बस के हर टेक्निकल पहलू की जांच की गई। उसके बाद उसे सेनेटाइज करा कर रवाना किया गया। आरएम को इसके लिए विशेष ध्यान देने को कहा गया। इसे सुनिश्चित करने के लिए वीडियो बनवाकर मंगवाया गया।

कोट

लोगों का सफर सुरक्षित करने के लिए बसों को सेनेटाइज किया गया। बस अड्डे भी सेनेटाइज किए गये। लॉकडाउन के चलते बसों की मेंटीनेंस आसान नहीं थी। कर्मचारी कम हो गए थे। फिर भी हमने जी तोड़ मेहनत की और बेहतर रिजल्ट दिये।

जयदीप वर्मा

मुख्य प्रधान प्रबंधक प्राविधिक

परिवहन निगम

रातभर ऑफिस से बसों की लोकशन ट्रेस की

मुझे बसों के संचालन की जिम्मेदारी सौंपी गई। मैंने बसों के आने-जाने वाले रूट में कहां क्या बदलाव किया जा सकता है, जिससे अधिक से अधिक दूरी तय की जा सके, इस पर फोकस किया। ऐसे में पैसेंजर्स के लाने के लिए रवाना होने वाली सभी बसों के बेहतर संचालन का खाका तैयार किया। यही वजह रही कि कम समय में अधिक से अधिक पैसेंजर्स अपने घरों को पहुंच सकें। इस दौरान किसी को कोई प्रॉब्लम ना हो इसके लिए खुद रात भर ऑफिस में बैठा। अपनी टीम के साथ मिलकर दिन भर कहां कितनी बसें पहुंची और अगले दिन संचालन की रणनीति तैयार की।

कोट

प्रदेश के कौन से बस अड्डे और डिपो में कितनी बसें हैं। कहां से कितने पैसेंजर्स आने हैं और उन्हें कहां पहुंचना है। यह सब तय करना आसान नहीं था। कई बार में बदलाव करने पड़े। देर रात तक कार्यालय में बैठ कर अगले दिन की तैयारी करनी पड़ती थी।

राजेश वर्मा

मुख्य प्रधान प्रबंधक संचालन

परिवहन निगम

शहर की सीमा पर खुद मौजूद रहे

लखनऊ क्षेत्र में ही सबसे अधिक बसें मौजूद हैं। यहां पर सात डिपो में तकरीबन 1100 बसें हैं। शहर की सीमाओं पर पहुंचने वाले पैसेंजर्स की संख्या को देखते हुए बस की व्यवस्था की। किसी पैसेंजर्स को कोई प्रॉब्लम ना हो इसके लिए मैं खुद सीमा पर मौजूद रहा। पैसेंजर्स के लिए मौके पर सेनेटाइजर की भी व्यवस्था की।

कोट

शहरी सीमाओं पर जब भीड़ टूटी और उन्हें पहुंचाने के निर्देश मिले तो यह समझना मुश्किल था कि कहां-कितनी बसें चाहिए। ऐसे में खुद ही निकलना पड़ा। भीड़ को काम करने में कई बार रात में तीन बज गए। कई दिनों तक सुबह सात से रात तीन बजे तक पैसेंजर्स को रवाना किया।

पल्लव बोस

आरएम लखनऊ क्षेत्र

परिवहन निगम

पहले स्क्रीनिंग की फिर भेजा घर

शहर के क्वारंटाइन सेंटर पर जुटने वालों की स्क्रीनिंग के बाद उन्हें घर भेजा जाना था। ऐसे में वहां पर कितनी बसें लगनी थी और किस रूट पर कितने यात्री जाने थे यह जिम्मेदारी पूरी करना आसान नहीं था। कई पैसेंजर्स कानपुर रोड पर फंसे थे तो कुछ फैजाबाद रोड पर। ऐसे में इन्हें एक जगह एकत्र करना, फिर इनकी स्क्रीनिंग करा कर इन्हें भेजना। इसके लिए शहर में ही रोजाना कई बार छह से सात घंटे से अधिक सफर करना पड़ता।

कोट

बाहर से आने वालों को क्वारंटाइन सेंटर तक पहुंचाना और फिर वहां से उन्हें उनके क्षेत्र में जाने वाली बसों में भेजने की व्यवस्था करने की जिम्मेदारी मुझे मिली। इस बात की खुशी है कि इस कठिन वक्त में मैं बेहतर काम कर सका। आगे भी अपने काम को बेहतर ढंग से करुंगा।

गौरव वर्मा

एआरएम, कैसरबाग डिपो

ड्राइवर और कंडक्टर से बनाया तालमेल

लॉकडाउन में बसों के संचालन के लिए ड्राइवर और कंडक्टर को बुलाने की जिम्मेदारी मुझे सौंपी गई। संक्रमण के चलते वह घबरा रहे थे। इस पर उन्हे मोटीवेट करा बुलाया। इसके लिए कुशल ड्राइवर की लिस्ट बनाई और उनसे संपर्क किया। ड्राइवर और कंडक्टर का मनोबल बढ़ाने के लिए खुद कई दिन तक बस अड्डे पर मौजूद रहा।

कोट

ऐसे ड्राइवरों का चुनाव करना था जो मजबूत हों और हर तरह की मुसीबत का सामना कर सकें। रास्ते में जरा सी परेशानी आने पर खुद ही ना घबराने लगें। इन ड्राइवरों को भेजने के लिए मैं खुद कई बार सीमाओं तक गया और उन्हें प्रोत्साहित किया।

शशिकांत सिंह

स्टेशन इंचार्ज, कैसरबाग बस अड्डा