- मेरठ में डबल ट्रैप शूटिंग के लिए नहीं है कोई व्यवस्था
- सालों से बंद पड़ी है मेरठ की पल्हैड़ा शूटिंग रेंज
- बदतर होते हालातों में ब्रांज मेडल जीतना गोल्ड के बराबर
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MEERUT: जर्जर संसाधन, बिखरी हुई उम्मीदें और अपनों का साथ छूटने से कोई भी खिलाड़ी हार मान सकता है, लेकिन असब उन खिलाडि़यों में से नहीं है, सिर्फ अपने हौसलों की बदौलत ही असब ने ब्रांज मेडल पर कब्जा जमाकर बंजर होते होते हालातों को तमाचा मारा है।
बर्जर जमीन पर पदक
मो.असब रिजवी ने अपने करियर की शुरुआत संसाधनों के अभाव में की थी। ऐसे संसाधनों के बीच जिसमें कभी भी कोई भी शूटर अपने करियर को खत्म कर सकता था। लेकिन वो असब ही है, जिसने ऐसे हालातों को चुनौती के रूप में लिया। मेरठ में एक भी शूटिंग रेंज नहीं होना, शुरुआती स्तर पर अपनी बंदूक नहीं होना, जीते मेडलों की राशि नहीं मिलना और लाइसेंस बनवाने के लिए दर-दर भटकना है। ये कुछ ऐसे हालात हैं, जिसमें से निकलकर आज असब ने कॉमनवेल्थ गेम्स में कांस्य पदक जीत डाला।
क्या कहें इस रेंज का
मेरठ में यूं तो पल्हैड़ा शूटिंग रेंज हैं। जिसकी देखभाल खुद डीएम के हाथों में है। लेकिन यहां पर ये शूटिंग रेंज नाम की है। खराब पड़ी मशीनों और बंद पड़े तालों के बीच कोई खिलाड़ी कैसे इस शूटिंग रेंज में प्रैक्टिस कर सकता है। कई बार इस शूटिंग रेंज को शुरू करने की बात कही गई, लेकिन हालात वही रहे। वहीं डबल टै्रप शूटिंग के बदले रूल्स के मुताबिक भी यहां पर क्ले मशीनों को नहीं बदला गया। ऐसे में यहां पर शूटर्स को शूटिंग करने में काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ता था।
अपने पैसों के दम पर
असब ने अपने पैसों के दम पर और शूटिंग में कुछ कर गुजरने के दम पर दिल्ली की कर्णी सिंह शूटिंग रेंज का सफर रोज तय किया। यहां लगने वाला किराया उसने अपने जेब से भरा। मेडलों में जीता पैसा भी नहीं मिला, फिर भी असब ने इसे चुनौती के रूप में लिया और आज कुछ ऐसा कर दिखाया जिस पर उसके आलोचकों ने अपना सिर ही झुका लिया होगा।
वर्जन
असब में बहुत प्रतिभा है। खुशी ये है कि हालात बेहतर नहीं होने के बावजूद इस खिलाड़ी ने खुद को साबित करके दिखाया है।
-वेदपाल सिंह, सचिव जिला राइफल एसोसिएशन
मुझे बहुत दुख है कि हमारी सरकार शूटर्स के लिए कुछ नहीं करती है। जबकि सबसे ज्यादा मेडल भारत को शूटिंग में ही मिल रहे हैं।
-असब, कॉमनवेल्थ गेम्स ब्रांज मेडेलिस्ट