-बीएलडब्ल्यू में निर्मित रेल इंजन की विदेशों में है जबरदस्त डिमांड, 1975 से इंजन का हो रहा निर्यात

-बंगलादेश, श्रीलंका, म्यांमार सहित 11 देशों को भेजा जा चुका है इंजन, मोजांबिक के चार इंजन बन रहे

बनारस रेल इंजन कारखाना में बने इंजन से देश ही नहीं विदेशों में ट्रेन दौड़ा रहे हैं। दुनिया के कई देशों से बीएलडब्ल्यू के इंजन की मांग है। यह सिलसिला पिछले 46 साल से चल रहा है। इतने लंबे समय से यहां के बने रेल इंजन का निर्यात किया जा रहा है। कभी डीजल इंजन की मांग होती थी अब तो नये जेनरेशन के इंजन के आर्डर भी आने लगे हैं। खास बात यह कि विदेशों से आने वाले आर्डर के हिसाब से यहां इंजन तैयार कर दिया जाता है। यही बरेका की सबसे बड़ी खूबी है। जिसे आज तक कायम रखा गया है।

सन् 1973-74 में पहला आर्डर

करीब 46 साल पहले डीजल लोकोमोटिव वर्कशॉप को पहली बार किसी देश से इंजन के लिए आर्डर मिला था। ये पहला आर्डर 1974-75 में तंजानिया से मिला था। ऑफिसर्स के मुताबिक तंजानिया के साथ रेल इंजन की डील अब तक का सबसे खास डील रही। कुछ कारणों से इसके बाद विदेशों को इंजन भेजने का काम ठप हो गया था। लगभग 33 साल तक यहां से इंजन कहीं नहीं भेजा गया। सन् 2009 में इंजनों का निर्यात फिर से शुरू हुआ। इसके तहत मोजांबिक ने केप गेज के इंजन का आर्डर डीजल लोकोमोटिव वर्कशॉप को दिया। इसके बाद से यह सिलसिला चल पड़ा।

11 देशों को भेज चुके इंजन

बरेका अब तक 11 देशों को रेल इंजन निर्यात कर चुका है। बरेका से सर्वाधिक इंजन बांग्लादेश गये हैं। बांग्लादेश से तीन बार में 10, 13 और 26 इंजनों के निर्माण का एग्रीमेंट हुआ। इसी तरह श्रीलंका भी चार बार में क्रमश: नौ, पांच, छह और 10 इंजन भेजे गए। म्यांमार को 29, वियतनाम को 25 रेल इंजन भेजे गये हैं। इस श्रृंखला में तंजानिया, सुडान, अंगोला, माली, मलेशिया, सेनेगल व मोजांबिक भी हैं। 1975 में तंजानिया को पहली बार भेजा गया इंजन छह सिलेंडर वाला 1350 एचपी का एल्को श्रेणी का 15 मीटर गेज इंजन था।

अभी और चार इंजन मोजांबिक

मोजांबिक को छह डीजल रेल इंजन और 90 स्टील के पैसेंजर कोच दिये जाने का एग्रीमेंट हुआ है। इसके तहत बरेका की ओर से डीजल इंजन का निर्यात किया जाना है। दो इंजन तैयार किये जाने के बाद इसे मोजांबिक के लिए रवाना किया गया। 10 मार्च को रेल मंत्री पीयूष गोयल ने फूलों से सजे इंजन को हरी झंडी दिखाकर रवाना किया। अभी चार रेल इंजन और तैयार किए जा रहे हैं। जिन्हें जल्द ही मोजांबिक भेज दिया जाएगा।

ऐसे इंजन के निर्माण में महारत

- 12 सिलेंडर, 3000 हार्स पॉवर केप गेज को-को डीजल-विद्युत लोकोमोटिव

- एसी-एसी कर्षण प्रणाली

- 120 टन वजन

- अधिकतम गति 100 किमी प्रति घंटे

- कंप्यूटर नियंत्रित ब्रेक सिस्टम

- छह हजार लीटर ईंधन टैंक क्षमता

- एसी केबिन, आरामदायक सीट, बोर्ड पर ही रेफ्रीजरेटर और हॉट प्लेट।

- शोरमुक्त पायलट केबिन

-टॉयलेट युक्त लोको पायलट केबिन

सन् 2017 में बना नया कीर्तिमान

डीएलडब्ल्यू की स्थापना अगस्त 1961 में हुई थी। जनवरी 1964 में यहां बने पहले रेल इंजन को राष्ट्र को समíपत किया गया था। 1973-74 में निर्यात बाजार में प्रवेश हुआ और पहला रेल इंजन सन् 1975 में तंजानिया को निर्यात किया गया। लंबे समय तक डीजल रेल इंजन बनने के बाद सन् 2017 में 6000 हॉर्सपावर के अपने पहले इलेक्ट्रिक इंजन निर्माण के साथ ही डीएलडब्ल्यू ने नए युग में प्रवेश किया। 2019 से यहां इलेक्ट्रिक रेल इंजन का उत्पादन हो रहा है। अब इसका भी विदेशों से आर्डर आने लगा है।

निर्यात ही नहीं मेंटनेंस भी

मेक इन इंडिया मिशन के तहत बनारस लोकोमोटिव वर्कशॉप का केवल इंजन के निर्माण व निर्यात पर ही जोर नहीं है बल्कि उसका प्रॉपर मेंटनेंस भी करने का जिम्मा उठा रहा है। इसके तहत निर्यात किए जाने वाले रेल इंजनों का मेंटनेंस व कलपूर्जो की आवश्यकता भी पूरी कर रहा है। यही नहीं मल्टी ट्रैक्शन, मल्टी गेज सिस्टम के लिए लोकोमोटिव और पूर्जो के अलावा टेक्नोलॉजी और ट्रेनिंग सेवाएं देने के लिए पूरी तरह तैयार है। बीएलडब्ल्यू जहां कम लागत पर लोकोमोटिव तैयार करता है तो इंटरनेशनल स्टैंडर्ड का भी ध्यान रखता है।

डिमांड के अनुरूप डिजाइन

बीएलडब्ल्यू से इंजन के निर्यात में राइट्स का भी बड़ा रोल है। रेलवे के सार्वजनिक क्षेत्र का यह उपक्रम इंजनों का आर्डर मिलने के बाद उस देश की जरूरत के हिसाब से इंजन की डिजाइन तैयार कराने का काम करता है। संबंधित देश की जरूरत के हिसाब से उसी गेज का इंजन तैयार कराकर उसका निर्यात किया जाता है। इससे वर्कशॉप के इंजन का क्रेज दुनिया में बढ़ रहा है।

इंजन का निर्यात एक नजर में

-बंगलादेश 49

-श्रीलंका 30

-म्यांमार 29

-वियतनाम 25

-तंजानिया 15

-सुडान 08

-अंगोला 03

-मलेशिया 01

-सेनेगल 01

-मोजांबिक 03

'' बीएलडब्ल्यू में विदेशों की डिमांड व डिजाइन के अनुरूप रेल इंजन तैयार किए जाते हैं। यही वजह है कि वर्कशॉप को विदेशों से बड़ी संख्या में आर्डर मिल रहे हैं। इस समय मोजांबिक के चार इंजन का निर्माण चल रहा है। जिसे जल्द ही रवाना कर दिया जा रहा है.''

विजय, सीपीआरओ

बीएलडब्ल्यू वाराणसी