-पेट्रोल और डीजल में हुई मूल्यवृद्धि ने फील्ड वर्क करने वालों की बढ़ाई मुश्किल

सैलरी का एक तिहाई हिस्सा सिर्फ ईधन भराने में हो जा रहा है खर्च

-फ्यूल खर्च में कटौती के लिए कोई लिफ्ट लेकर चल रहा रै तो कोई शेयर कर है वाहन

पेट्रोल-डीजल के बढ़े हुए रेट ने अच्छे-अच्छों का बैंड बजाकर रख दिया है। सबसे अधिक प्रभावित वे लोग हो रहे हैं जिनका अधिक समय मार्केट में गुजरता है। चाहे एमआर हो या फिर मार्केटिंग के इम्पलॉईज सबकी जेब पेट्रोल भराते-भराते ढीली हो जा रही है। सैलरी का एक तिहाई हिस्सा सिर्फ ईधन भराने में जा रहा है। स्थिति यह हो गई है कि एक बाइक पर दो एमआर सवार होकर गंतव्य तक पहुंच रहे हैं। आपसी तालमेल बनाकर मार्केट में एक साथ निकल रहे हैं ताकि कुछ राहत मिल सके। बनारस में बीएचयू सहित तीन गवर्नमेंट हॉस्पिटल और सुपर मल्टीस्पेशिएलिटी हॉस्पिटल्स होने का कारण यहां एमआर की संख्या काफी अधिक है। 20 से 25 हजार एमआर बाइक-स्कूटी से ही चलते हैं। इतनी ही संख्या में विभिन्न कंपनियों के मार्केटिंग के साथी भी बाइक का यूज करते हैं।

ईधन में कर रहे कांट्रीब्यूट

ईधन का बढ़ रहा रेट मेडिकल कंपनी में एमआर की भूमिका में रहने वाले प्रभाकर पांडेय को काफी सता रहा है। अपने एमआर साथी नीरज के साथ वह पेट्रोल में कांट्रीब्यूट करके काम निकाल रहे हैं। एक ही जगह जाना है तो फिर एक बाइक खड़ी कर दूसरी बाइक पर सवार होकर पहुंच रहे हैं। यह फंडा अपना रहे अकेले प्रभाकर ही नहीं हैं बल्कि ऐसा कई एमआर व मार्केटिंग के स्टाफ भी कर रहे हैं।

सैलरी का तिहाई हिस्सा तेल में

एक नामी आइसक्रीम कंपनी में कार्यरत सचिन बताते हैं कि ईधन की बढ़ती कीमतों ने तंग करके रख दिया है। सैलरी का एक तिहाई हिस्सा फ्यूल के खर्च में चला जा रहा है। रोजाना 70 से 80 किमी बाइक चलाने वाले सचिन का कहना है कि अब तो यह कोशिश होती है कि एक साथ अधिक से अधिक काम कर लिया जाए ताकि तेल की खपत कम हो। सचिन के साथ काम करने वाले सुरेश श्रीवास्तव, अम्बिका, सुनिधि भी तेल की बढ़ती कीमत से परेशान हैं।

पावर बाइक छोड़, स्कूटी पर आए

मार्केट में हर वक्त छाए रहने वाले अधिकतर लोग अब पावर बाइक से किनारा कर रहे हैं। दुकान से घर, घर से दुकान करने वाले लोग भी अब बाइक से दूर भाग रहे हैं। ऐसे लोगों की यही कोशिश रहती है कि किसी से लिफ्ट लेकर काम चलाया जाये। मोबाइल कंपनी में मार्केटिंग का काम करने वाले विवेक बताते हैं कि ईधन का बढ़ता जा रहा रेट धीरे-धीरे बाइक से दूर करा रहा है। पावर बाइक के शौकीन विवेक अब अपने अंकल की स्कूटी से फर्राटा भर रहे हैं।

ईधन की बढ़ती कीमतों ने टेंशन में ला दिया है। काम करना और बाइक से चलना भी जरूरी है तो अब मित्र के साथ एक ही बाइक पर मार्केटिंग कर रहे हैं, तेल में कांट्रीब्यूट करके दोनों का काम निकल जा रहा है।

प्रभाकर पांडेय, एमआर

फ्यूल की कीमत बढ़ी है लेकिन कर भी क्या सकते हैं, परेशानी तो बढ़ ही गई है। सैलरी का एक तिहाई हिस्सा अब ईधन भराने में चला जा रहा है। कोशिश यही कर रहे हैं कि अब कम से कम बाइक का यूज किया जाए।

सचिन कुमार, मार्केटिंग स्टाफ

सामनेघाट

सुबह से शाम तक बाइक से ही दौड़ना होता है। दवा कंपनी में होने के नाते कभी-कभी एक ही जगह दिन भर में दो-दो बार जाना पड़ता है। पेट्रोल के बढ़ते दर ने चिंतित तो कर ही दिया है। मगर, क्या करें काम तो करना ही है।

अंशु सिंह, एमआर

नया तरीका इजाद यह किया है कि अलग-अलग दवा कंपनी के एमआर साथी साथ में जुड़े हुए हैं। एक ही जगह उन्हें भी जाना है और मुझे भी, तो ऐसे में एक ही बाइक से दोनों साथ-साथ जा रहे हैं। कभी बाइक उसकी तो कभी हमारी। इससे बहुत फर्क पड़ा है।

विक्की गुप्ता, एमआर

स्थित बहुत विकट हो गई है, पहले जहां पांच सौ रुपये में बाइक की टंकी फुल हो जाती थी अब वहीं छह सौ में हो रही है। तीन से चार दिन में टंकी खाली भी हो जा रही है। मान कर चलिए कि दो हजार रुपये पेट्रोल में खर्च हो जा रहा है।

आशीष सिंह, एमआर

ईधन में सात से आठ सौ रुपये एक्स्ट्रा खर्च हो रहा है। इतना ही पैसा मोबाइल का बिल जमा करता था लेकिन अब तो यह पैसा पेट्रोल में जा रहा है।

अंकित सिंह, एमआर