-दो साल तक के बच्चों के लिए सेहतमंद नहीं मानता बाल एवं पुष्टाहार विभाग

-डिब्बाबंद दूध की बिक्री पर रोक लगाने के लिए डीएम को लिखा पत्रा

आजकल अधिकतर मां अपने नवजात को डिब्बाबंद दूध का सेवन कराती हैं। ऐसा ये डिब्बाबंद दूध को हेल्दी मानने की वजह से करती हैं। अगर आप भी अपने नन्हें-मुन्ने को डिब्बाबंद दूध दे रही हैं तो जान लें कि आप उसे पैष्टिक की जगह नुकसानदेय आहार दे रही हैं। अब भी वक्त है संभल जाएं। ऐसा हम नहीं बाल एवं पुष्टाहार विभाग के एक्सपर्ट कह रहे है। विभागीय अधिकारियों के मुताबिक अगर जन्म से दो साल तक डिब्बा बंद दूध से सेवन से बच्चो का इम्यून सिस्टम कमजोर होता है साथ ही इसका असर शारीरिक विकास पर भी पड़ता है। ऐसे में मां अपने लाड़लों के लिए डिब्बा बंद या पैकेट वाले दूध को साइड लाइन कर दे तो ही बेहतर है।

डिब्बा दूध पर लगाए पाबन्दी

बच्चों की इम्यूनिटी मजबूत रखने के लिए बाल विकास एवं पुष्टाहार विभाग की तरफ से निर्देश जारी किए गए हैं। इस सन्दर्भ में विभाग की तरफ से बनारस समेत प्रदेश के सभी डीएम को पत्र भेजा भेजा गया है। इसमें 2 साल तक के बच्चों को डिब्बे वाला दूध पिलाने पर पाबंदी लगाएं जाने को कहा गया है। यह पत्र डीएम के साथ सीएमओ और जिला कार्यक्रम अधिकारी को भी भेजा गया है। उन्हें कहा गया है के वे ध्यान दे कि कोई भी कंपनी बच्चों की मां या परिवार को डिब्बा बंद दूध का फ्री सैंपल न दे सके। अधिकारियों का कहना है की शिशु के लिए मां का दूध ही सबसे सर्वोत्तम है। ऐसे में माताओ को स्तनपान के लिए ज्यादा से ज्यादा जागरूक करे।

मिला रहता है मेलामिन नाम का एक तत्व

-सभी तरह के डिब्बाबंद दूध पाउडर में मेलामिन नाम का एक तत्व मिला रहता है

- यह शिशु के लिए नुकसानदायक होता है।

-शिशु चिकित्सक भी कह चुके हैं कि इस डिब्बाबंद दूध से नवजात शिशु को हैजा, अस्थमा, डायबिटीज, किडनी स्टोन आदि बीमारियां हो जाती हैं।

-डिब्बाबंद दूध कितनी भी अच्छी क्वालिटी का क्यों ना हो, लेकिन वो बच्चों के स्वास्थ्य के लिए नुकसानदायक होता है।

-पीडियाट्रिसियन की मानें तो कई बार माताएं स्तनों में दूध ना बनने के कारण शिशु को डिब्बाबंद दूध बच्चों को पिलाती हैं।

बड़ा संख्या है निर्भर

एक रिपोर्ट के मुताबिक देश में नवजातों की बहुत बड़ी हिस्सा डिब्बाबंद दूध पाउडर पर निर्भर है। इसके बावजूद इन दूध के मानकों पर कोई ध्यान नहीं देता। जबकि हर साल 2.5 करोड़ नवजातों को डिब्बाबंद दूध पाउडर आहार के रूप में दिया जाता है। इस कारण इस उत्पाद के पोषक-तत्वों को सुनिश्चित किया जाना जरूरी है। आपको जानकर हैरानी होगी की 2011 में फूड सेफ्टी एंड स्टैंडर्ड अथॉरिटी ऑफ इंडिया (एफएसएसएआई) द्वारा कराए गए सर्वेक्षण के अनुसार देश में वितरित किए गए दूध में से 68.4 फीसदी दूध नकली पाया गया। इस आंकड़े से आप इस स्थिति की गंभीरता को समझ सकते हैं। जबकि इन आंकड़ों से सभी संस्थाएं पल्ला झाड़ने में लगी हैं। ब्यूरो ऑफ इंडियन स्टैंर्डडस (बीआईएस) का कहना है कि वह सुरक्षा मानक तय नहीं करती। वह केवल पैकेजिंग को स्वीकृति देती है। सुरक्षा मानक तय करना उसकी जिम्मेदारी नहीं है।

मां के बीमार होने पर दूसरी महिलाएं करे मदद

गायनोलॉजिस्टों का कहना है कि तनाव से मां के दूध बनने की प्रक्रिया प्रभावित होती है। कोरोना काल की परिस्थितियों से इनकार नहीं किया जा सकता। ऐसे में किसी भी हाल में स्तनपान की निरंतरता टूटने न पाए। मां के बीमार होने पर घर में मौजूद दूसरी महिलाएं बच्चे को मां का दूध पिलाने में मदद करें। कटोरी में दूध निकालकर चम्मच से भी पिला सकते हैं। बीमार होने की स्थिति में मास्क लगाकर स्तनपान करा सकती हैं। सफाई का ध्यान रखें। खुद को व्यस्त रखने का प्रयास करें।

नवजात या कम उम्र के बच्चों के लिए मिलावटी या पैकेट में बंद दूध बहुत नुकसानदायक है क्योंकि उनका शरीर प्रीमैच्योर होता है और किसी भी तरह की मिलावट का उनके हर अंग पर बुरा प्रभाव पड़ता है। खासतौर पर मस्तिष्क, गुर्दे और लीवर पर।

डा। जेपी गुप्ता, शिशु रोग विशेषज्ञ-मंडलीय हॉस्पिटल

मिलावटी दूध से होने वाला नुकसान इस बात पर निर्भर करता है कि कंटैमिनेशन कैसा है। अगर दूध में बैक्टीरियल कंटैमिनेशन है, तो बच्चे में फूड प्वाइजनिंग, पेट दर्द, आंतों की सूजन, टाइफाइड, उल्टी, दस्त जैसे इंफेक्शन होने का डर होता है।

डॉ। आरके पाठक, चाइल्ड स्पेशलिस्ट

बाल एॅव पुष्टाहार विभाग की गाइड लाइन में पहले ही यह बातें बताई गई है की शिशुओं के लिए मां का दूध ही सर्वोत्तम है। इसके लिए आंगनबाड़ी कार्यकत्रियों के माध्यम से माताओं को डिब्बा बंद या पैकेट वाला दूध न देने के लिए जागरूक करते है।

नीलू मिश्रा, सुपरवाइजर, आईसीडीएस