अजुरी में उतरे सुरुज देव, मनोकामना पूर्ण होने का दिया वरदान

अस्ताचलगामी सूर्य को अ‌र्घ्य देने गंगा तट पर उमड़ा आस्थावानों का रेला

झूमते-गाते पहुंचे घाटों पर, प्रबल भाव से समर्पित की श्रद्धा

VARANASI:

एक तरफ पुण्यसलीला गंगा का कलकल बहता जल और दूसरी तरफ घाटों पर लहराता आस्था और श्रद्धा का रेला। दोनों ही गतिमान और दोनों मे ही किसी अनंत में विलीन हो जाने की उत्कंठा। अवसर था सूर्योपासना के महापर्व डाला छठ के तीसरे दिन मंगलवार को अस्ताचलगामी 'सुरुज देव' को अ‌र्घ्य देने का। अपने आराध्य के प्रति उमड़ रहे मन के अनंत भावों को परंपरा की गठरी में सिर पर उठाये लोगों की अपार भीड़ गंगा तट पर उमड़ी। जिधर भी नजर गयी भावनाओं की रंग बिरंगी चुनरी ओढ़े आस्था, श्रद्धा के साथ अनंत को अ‌र्घ्य देती हुई दिख्ायी दी।

अंनत रूपों उतरे सुरुज देव

न कहीं वेदों के कठिन मंत्रों औपचारिकता और न कहीं पूजन की वैदिक रीति लेकिन आराध्य के प्रति समर्पण अपने चरम पर। कहा है न ईश्वर तो भाव का भूखा है उसे न तो माला फूल की जरूरत है और न ही स्वादिष्ट भोग की। उसे तो अपने भक्त के भावनाओं से मतलब है। भक्तों की यही भावना परंपरा के पोषक लोकगीतों के माध्यम से तो कभी जगह जगह फूटती रही। 'बंगही लचकत जाये' 'आजो भईया दौरी ले जईह, अरग दिहईह' जैसे भोजपुरी गीतों के बोल कानों में मिश्री घोल रहे थे। भक्तों ने अपनी अपनी भक्ति में कोई कसर नहीं छोड़ी तो भगवान भी कहां पीछे रहने वाले थे। सुलग रहे सुगंधित धूपों की गमक ने कुछ ऐसा मायाजाल रचा कि भगवान भाष्कर अनंत रूपों में आस्थावानों की 'अजुरी' में उतरे और सभी को दिया मनोकामना के पूर्ण होने का वरदान।

कुछ ही देर में पट गये घाट

भगवान दीनानाथ को अ‌र्घ्य देने के लिए गंगा घाटों पर व्रतियों का रेला दोपहर बाद से ही उमड़ने लगा। जैसे जैसे समय बीतता गया श्रद्धालुओं की भीड़ बढ़ती गयी। चार बजते बजते घाट पर तिल रखने की जगह नहीं थी। सिर पर पूजन सामग्री से भरी दौरी लिये पुरुष और महिलाओं का घाट पर पहुंचने का क्रम जो शुरू हुआ तो सुरुज देव के अस्त होने तक चलता रहा। ढोल और नगाड़े के आनंद स्वरों पर झूमते नाचते परिवारों का रेला एक के बाद एक घाट पर पहुंचने दिखा। अपने संकल्प पूर्ति के क्रम में महिलाओं ने पवित्र गंगा में डुबकी लगाई और गीले वस्त्रों में ही कमर भर जल में खड़े होकर भगवान भाष्कर को अपनी श्रद्धा समर्पित की।

हर कुंड पर उमड़े लोग

गंगा तट के अलावा शहर के कुंड, जलाशयों पर भी आस्था का मेला लगा। वरुणा नदी पर भी डूबते सूरज को अ‌र्घ्य देने वालों का खासा जमावड़ा हुआ। डीएलडब्ल्यू स्थित सूर्य सरोवर पर भी सूर्य को अ‌र्घ्य देने वालों का हुजूम उमड़ा। डीएलडब्ल्यू एडमिनिस्ट्रेशन ने लोगों की सुरक्षा और सुविधा के लिए विशेष इंतजामात किये थे। बहुत सी महिलाओं ने घर में बनाये गये प्रतीक सरोवर में सूर्य को अ‌र्घ्य दिया। पांच गन्ने से पूजा वेदियों को घेरा गया। दीप प्रज्जवलित हुए और फल-फूल, नैवेद्यों से कोसी भर कर पुत्र के दीर्घायु की कामना की गई। पूजा के बाद घर लौटते समय हर व्रती महिला के हाथ में दीया था। सूर्य नारायण को अ‌र्घ्य देने के बाद श्रद्धालुओं ने उनकी आरती उतारी और उसे जलते हुए वापस घर को गई। दूसरे दिन महिलाएं इस दीपक को सुबह उगते हुए सूरज को अ‌र्घ्य देने के साथ लेकर आती हैं।

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घर से घाट तक, लेट कर

कुछ व्रतियों ने घर से घाट तक की दूरी को लेट कर पूरा करने का संकल्प लिया था। संकल्प कठिन जरूर था लेकिन इच्छाशक्ति प्रबल थी। जिसके बल पर बहुत से लोगों ने अपने इस संकल्प को पूरा किया। इस कठिन व्रत का संकल्प लेने वालों का लोग पैर छूते चल रहे थे। हर कोई उनके लिए रास्ता खाली कर दे रहा था।

रात रुकेंगी घाट पर

बहुत सी व्रती महिलाओं ने छठ की रात घाट पर ही बिताने का संकल्प लिया था। इस लिए वे शाम को अ‌र्घ्य देने के बाद घर नहीं गई। सप्तमी के दिन वे भोर में उगते सूरज को अ‌र्घ्य देने के बाद ही घर कर लौटेंगी। ऐसे आस्थावानों से गंगा के घाट रात भर गुलजार रहे।

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लग गया जाम

अ‌र्घ्य देने के बाद वापस लौटने की हुई भीड़ के चलते गोदौलिया इलाके में भारी जाम लग गया। हालांकि प्रशासन ने ट्रैफिक व्यवस्था के सुचारु संचालन के व्यवस्था की थी लेकिन वह सब नाकाफी रहा। करीब दो घंटे तक गोदौलिया चौराहे पर जाम की स्थिति बनी रही।

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आज पूरा होगा महाव्रत

बुधवार को उगते सूरज को अ‌र्घ्य देने के साथ ही सूर्य उपासना का यह महासंकल्प पूरा होगा। महिलाएं अपने नाक के कोर से मांग भरेंगी और पति की दीर्घायु की कामना के साथ निर्जला व्रत का पारण करेंगी।

बिजली ने दिया धोखा

सूर्यास्त के बाद हजारों की भीड़ घाट से सड़क की ओर चली लेकिन शहर में बिजली विभाग की मेहरबानी के चलते अंधेरा कायम था। एक तो हजारों की भीड़ उस पर से अंधेरा। लगभग अफरातफरी का माहौल दिखा। वो तो गनीमत रहा कि दुकानदारों ने इन्वर्टर और जेनरेटर से अपनी दुकानें रोशन की थी जिससे सड़क पर भी थोडी बहुत रोशनी रही।