-वेबीनार में बोली महिलाएं, लेडिज टॉयलेट है बेहद जरूरी

सरकार महिलाओं की सुरक्षा और उनके लिए व्यवस्था पर खूब पैसा खर्च करने की बात तो लगातार करती आ रही है, लेकिन हकीकत में देखें तो कही भी कुछ नहीं हो रहा है। महिला टॉयलेट के नाम पर बनारस में सिर्फ खानापूर्ति भर हो रही है। दैनिक जागरण आई नेक्स्ट की ओर से पिंक टॉयलेट को लेकर पिछले एक सप्ताह से चल रहे कैंपेन में हर रोज महिलाओं की इस समस्या को प्रमुखता के साथ प्रकाशित किया जा रहा है। इसी कैंपेन के तहत बुधवार को एक वेबीनार का आयोजन किया गया। जिसमें शहर के प्रबुद्ध लोगों के साथ युवतियों ने अपने-अपने विचार रखे।

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महिला टॉयलेट को लेकर जल्द ही कोई एक्शन लिया जाना चाहिए। सरकार तो बहुत सारी योजना लेकर आ रही है, मगर काम किसी पर नहीं हो रहा। बहुत सारे लोग महिला टॉयलेट को जरूरी नहीं समझते। जबकि यह सबसे बड़ी समस्याओं में से एक है। सरकार अगर इस मामले पर सहयोग करें तो यह प्रोजेक्ट जरूर पूरा होगा।

-वर्तिका विश्वकर्मा

सबसे बड़ी समस्या इंफेक्शन फैलने को लेकर है। जब सरकार इस बात से पूरी तरीके से जागरूक है कि महिलाओं को गंदी जगह टॉयलेट इस्तेमाल करने से पुरुषों की तुलना में जल्दी इंफेक्शन होता है। उनमें यूरिनल इंफेक्शन होने का चांस होता है फिर भी सफाई के नाम पर महिला टॉयलेट के बगल में ही कूड़ा फेंका जाता है। गर्मी में बाहर निकलने पर लड़कियां पानी कम पीती हैं, क्योंकि बाहर इस्तेमाल करने के लिए कहीं भी टॉयलेट नहीं है।

शिवांगी सिंह

शहर की अगर बात करें तो मुझे एक भी महिला टॉयलेट साफ नहीं दिखाई देता है। टॉयलेट के बगल में ही कूड़ा फेंका जाता है और इतनी बदबू और गंदगी में नहीं लगता कोई भी अंदर जाना चाहेगा। खासकर मेंस्ट्रूअल साइकिल के दौरान टॉयलेट होल्ड करना बहुत ही मुश्किल होता है। उस वक्त अगर कोई महिला चाहे भी तो महिला टॉयलेट का उपयोग नहीं कर सकती है।

सरगम वर्मा

मेरा मानना यह है कि अगर सरकार 10 रुपये पब्लिक टॉयलेट के लिए खर्च करती है तो 8 रुपये लेडीज टॉयलेट के लिए खर्च किया जाना चाहिए और दो रुपये मेल टॉयलेट के लिए। ऐसे ही टॉयलेट ना होने की वजह से महिलाओं में काफी बीमारी फैलती है। टॉयलेट ना होने के कारण लड़कियां खुले में शौच करती हैं। इससे छेड़खानी भी हो जाती है। उनके साथ शहर में अगर एक पुरुष टॉयलेट है तो कम से कम 9 महिलाओं के लिए होना चाहिए।

डॉ। लेनिन रघुवंशी

शहर के टॉयलेट इतने गंदे होते हैं कि हिचकिचाहट होती है। ज्यादातर जगहों पर टॉयलेट नहंी है। अगर हैं भी तो उनकी सुरक्षा का ख्याल नहीं रखा जा रहा है, जो लड़कियां किसी दुकान पर 12 से 13 घंटे काम करती हैं उन को सबसे ज्यादा परेशानियां होती है। क्योंकि छोटे दुकानों में टॉयलेट नहीं होते हैं। ऐसे में उनके पास एक ही ऑप्शन बचता है बाहर जाकर फ्रेश हों। ऐसे में वे किसी मॉल में जाती हैं या घर जाने तक फ्रेश होती हैं।

श्रेया गुप्ता

पब्लिक प्लेस में लेडीज टॉयलेट ना होना आज की सबसे बड़ी समस्या है। लड़कियों व महिलाओं के लिए यह समस्या गहराती जा रही है। इसकी वजह से वे ज्यादा समय तक बाहर नहंी रह पाती। महिलाओं का पुरुषों की तुलना में टॉयलेट इस्तेमाल करने का तरीका अलग है। महिलाएं इंफेक्शन की शिकार हो सकती हैं। जितनी भी पिंक टॉयलेट्स हैं उनकी साफ-सफाई और देखरेख बेहद अच्छे से की जानी चाहिए ताकि हम उस इस्तेमाल कर सकें।

नेहा मिश्रा

महिलाओं के लिए टॉयलेट कीे बेहद कमी है। बचपन से ही देखते और सुनते आ रहे हैं कि कोई भी कही भी टॉयलेट करने को बोल देता था। जबकि उससे बहुत सारी बीमारियां होने के चांसेस होते हैं। महिलाओं के लिए शहर में पिंक टॉयलेट बनने चाहिए, जिससे महिलाओं की समस्या कम हो।

हर्षिता दास

महिलाएं पुरुषों की तरह कही भी जाकर फ्रेश नहीं हो सकतीं। उन्हें गंदा नहीं साफ और स्वच्छ टॉयलेट चाहिए। मगर बनारस में ऐसा टॉयलेट कही भी देखने को नहीं मिलता। इसके लिए सरकार को गंभीरता से विचार करने की आवश्यकता है। शहर में हर जगह पिंक टॉयलेट का निर्माण होना चाहिए।

रिद्धी रघुवंशी

पिंक टॉयलेट न होने से काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ता हैं। जब कभी भी बाहर निकले हैं तो सौ बार सोचना पड़ता है कि पानी पीकर निकले या नहीं। क्योंकि बाहर फ्रेश होने के लिए जाना होगा, तो बड़ी दिक्कत हो जाएगी। पानी न पीने से यूनिरल प्रॉब्लम भी होने लगती है। सरकार को इसकी जल्द से जल्द व्यवस्था करनी चाहिए।

आकृति सिंह

गंदगी में टॉयलेट करने से बीमारियों और इन्फेक्शन होने का डर होता है। रेस्टोरेंट या होटल वाले किसी को भी सिर्फ टॉयलेट इस्तेमाल करने की परमिशन नहीं देते हैं। हालंाकि कोर्ट का ऑर्डर है कि हम कभी भी किसी भी होटल के टॉयलेट को यूज कर सकते हैं पर ज्यादातर लोग इस बात से अवगत नहीं है।

सिमरन वर्मा