- नीलकंठ एरिया में दूध-दही की जर्जर दुकान की मरम्मत के दौरान हुआ हादसा

- पिछले दिनों गोयनका छात्रावास का एक हिस्सा गिरने से दो की गई थी जान

काशी विश्वनाथ कॉरिडोर के पास नीलकंठ स्थित दूध-दही की एक जर्जर दुकान की मरम्मत करते समय शनिवार की शाम को एक हिस्सा भरभरा कर गिर गया। मलबे में दबकर जहां एक मजदूर की जान चली गई, वहीं दूसरे को मामूली चोट आई। मंडलीय अस्पताल में प्राथमिक उपचार के बाद घायल को घर भेज दिया गया। बता दें कि इसके पहले 31 मई की रात को कॉरिडोर स्थित गोयनका छात्रावास के एक हिस्सा के गिरने से दो मजदूरों की मौत हो गई थी। इस घटना के बाद डीएम ने जर्जर भवनों के ध्वस्तीकरण का आदेश दिया था। बावजूद इसके नगर निगम ने कार्रवाई नहीं की। अगर इस जर्जर भवन को पहले ही चिह्नित कर गिरा दिया गया होता तो मजदूर की जान नहीं जाती। जिस मजदूर की जान गई वह बिहार का रहने वाला था।

सैकड़ों वर्ष पुरानी थी दुकान

चौक थाना क्षेत्र के नीलकंठ मोड़ के पास दीपू यादव की दूध-दही की दुकान है। सैकड़ों वर्ष पुरानी दुकान जर्जर होने के कारण दीपू उसकी मरम्मत कराने के लिए बिहार के कैमूर के भभुआ थानांतर्गत पलका निवासी 55 वर्षीय मेवालाल प्रजापति और कतुआपुरा के गणेश यादव व शंकर यादव को मजदूरी पर लगाया था। काम के दौरान ही दुकान का एक हिस्सा अचानक ढह गया और दो मजदूर मलबे में दब गए। वहीं कुछ दूरी पर होने के कारण शंकर बाल-बाल बच गया। हादसे की जानकारी मिलते ही पुलिस, स्थानीय लोग व एनडीआरएफ की टीम मौके पर पहुंचकर राहत कार्य में जुट गई। आनन-फानन मलबे से निकाल दोनों मजदूरों को मंडलीय अस्पताल उपचार के लिए भेजा गया, जहां डाक्टरों ने मेवालाल प्रजापति को मृत घोषित कर दिया। गणेश की हालत सामान्य होने के कारण उसका प्राथमिक उपचार किया गया।

दूसरे की हालत खतरे से बाहर

एडीसीपी काशी जोन विकास चंद्र त्रिपाठी ने बताया कि दो मजदूरों के घायल होने की सूचना मिली थी। अस्पताल ले जाने पर एक को मृत घोषित कर दिया गया, जबकि दूसरे की हालत खतरे से बाहर है। बता दें कि बीते मई माह से अब तक कारिडोर व आस-पास के इलाके में जर्जर भवन गिरने की यह तीसरी घटना है। गत 31 मई की रात कॉरिडोर स्थित गोयनका छात्रावास का एक हिस्सा गिरने से पश्चिम बंगाल के दो मजदूरों की मौत हो गई थी।

डीएम ने दिया था ध्वस्तीकरण का आदेश

31 मई की रात कॉरिडोर स्थित गोयनका छात्रावास गिरने से पश्चिम बंगाल के दो मजदूरों की मौत के बाद डीएम कौशलराज शर्मा ने एक सप्ताह के अंदर नगर निगम को जर्जर भवनों के ध्वस्तीकरण का आदेश दिया था। जिन भवन स्वामी द्वारा अपने जर्जर मकान के ध्वस्तीकरण का कार्य नहीं किया जाता है तो इस कार्य को नगर निगम के संसाधनों से कराकर जर्जर भवनों पर हुए खर्च की वसूली संबंधित भवन स्वामी से कराया जाए। डीएम के आदेश के बाद नगर निगम ने जर्जर भवनों को लेकर गंभीरता नहीं दिखाई। अगर नगर निगम सर्वे कर दीपू यादव के भवन को जर्जर घोषित कर ध्वस्तीकरण की कार्यवाही कर देता तो यह हादसा नहीं होता।