वाराणसी (ब्यूरो)। ओलंपियन ललित उपाध्याय का कहना है कि हॉकी के मैदान में कदम रखते ही जरूरतें बढऩे लगीं। हॉकी स्टिक, बॉल, शूज, साइकिल, टी-शर्ट आदि। मेरे घर की आर्थिक स्थिति बहुत अच्छी नहीं थी। मेरे फादर सतीश उपाध्याय की एक छोटी सी कपड़े की दुकान थी, जो मेरी जरूरत को पूरा करने में असमर्थ थे। फिर भी मैं बिना हॉकी स्टिक के ही घर से पैदल ही मैदान में जाता था। दूसरे से हॉकी स्टीक मांगकर खेलता था। यही पर मेरी मुलाकात कोच परमानंद मिश्रा सर से हुई। उन्हें मेरा खेल और जुनून अच्छा लगा.
देश के लिए खेलना है
उन्होंने पूछा था कि तुम नौकरी के लिए या देश के लिए खेलना चाहते हो तो मैंने कहा था कि मैं देश के लिए खेलना चाहता हूं। मेरी जिद है कि मैं भी शाहिद भाई और विवेक सिंह की तरह ओलंपिक खेलूं। इसके बाद कोच परमानंद मिश्रा ने जरूरी संसाधन उपलब्ध कराया। इसके बाद मैदान ही मेरा घर हो गया और मैं अपनी जिद पूरा करने में जुट गया। शुरू से लेकर अब तक संघर्ष की दास्तां बहुत लंबी है, लेकिन मैंने कभी ओलंपियन बनने की जिद नहीं छोड़ी.
प्रदेश के एकमात्र खिलाड़ी
भारतीय हॉकी टीम के फॉरवर्ड प्लेयर ललित उपाध्याय पूरे उत्तर प्रदेश के एकमात्र ऐसे खिलाड़ी हैं, जो टोक्यो ओलंपिक में पदक जीतने में सफल हुए हैं। कोच परमानंद मिश्रा ने कहा कि ललित जुझारू रहा है और वह लक्ष्य से कभी नहीं भटकता। जो ठानता है, उसे करके ही मानता है। ललित उपाध्याय वाराणसी के शिवपुर क्षेत्र के छोटे से गांव भगतपुर के एक अति मध्यम परिवार से आगे आए हैं.
भारत पेट्रोलियम में अफसर
वर्तमान में ललित भारत पेट्रोलियम में अफसर हैं। बड़ा भाई अमित उपाध्याय भी हॉकी प्लेयर है। ललित 2008 से 2012 तक जूनियर टीम अंडर-21 में थे। 2014 से वे सीनियर टीम में शामिल हुए। 2018 में राष्ट्रीय हॉकी टीम में हुआ। ललित अब तक 200 से ज्यादा अंतर्राष्ट्रीय मैच खेल चुके हैं.
कॉमनवेल्थ में भी दिखाए जौहर
कॉमनवेल्थ, एशियन और वल्र्ड कप में भी अपने जौहर दिखाए हैं। बेहतर खेल के लिए 2017 में लक्ष्मण पुरस्कार और 2021 में अर्जुन अवार्ड से भी ललित को सम्मानित किया गया है। अभी वह बेंगलौर में है और बेल्जियम, हालैंड जाने की तैयारी में जुटे हैं.