-सपेरे हैं सांपों की तस्करी के माहिर खिलाड़ी

-ट्रेन्स के सफर में खेल दिखाकर पहुंचा देते हैं वेस्ट बंगाल तक माल

-इसके एवज में लंबे पैसे मिलने का दिया जाता है लालच

VARANASI: रेल के जरिये हो रही स्नैक की तस्करी में मेनली किसका हाथ होता है अब उसे भी जान लीजिए। यूं ही नहीं अपनी और पैसेंजर्स की जान जोखिम में डालते हैं तस्कर। इसके एवज में उन्हें लंबे पैसे दिये जाने का लालच दिया जाता है। जी हां, सांपों की तस्करी का धंधा करोड़ों का है। इस खेल के माहिर खिलाड़ी खुद सपेरे ही होते हैं, जो ट्रेनों में गाहे बगाहे सांप का खेल दिखाते हुए वेस्ट बंगाल तक माल पहुंचा देते हैं।

इस तरह होता है धंधा

सपेरे औसत लम्बाई का स्नैक लगभग पांच हजार व अजगर जैसे बड़े सांपों को 10 हजार रुपये में स्मगलर को हैण्ड ओवर करते हैं। स्मगलर इन्हें दूने दाम में कोलकाता तक पहुंचाते हैं। यहां से सांप का चमड़ा या जिंदा सांप बांग्लादेश तक पहुंचता है। इसमें ट्रांसपोर्टेशन व कारखाने में सफाई चार्ज जुड़ जाता है। लोकल स्मगलर्स के हाथों एक महीने में लगभग सौ सांपों की तस्करी होती है। सालाना इस धंधे में करोड़ों का वारा-न्यारा किया जाता है।

बेशकीमती है जहर

सांप का जहर बेशकीमती है। दवा बनाने के लिए इसका यूज तो होता ही है नशे के रूप में बड़े पैमाने पर यूज होने लगा है। नशे के सौदागर भी इसके लिए सांपों के सौदागर तक पहुंचते हैं। हालांकि स्मगलर्स इसका बिजनेस काफी संभलकर करते हैं। कुछ सेलेक्टेड लोगों के हाथों में ही ये प्वॉइजन पहुंचता है। स्मगलर सपेरों से ही इसे सांप में से निकलवाते हैं। काफी सिक्योरिटी के साथ इसे स्टोर किया जाता है।

सपेरे को सांप पकड़ने का जिम्मा

जानकार बताते हैं कि स्नैक्स को नौगढ़, मिर्जापुर, सोनभद्र के जंगलों से पकड़ा जाता है। स्नैक को पकड़ने का काम लोकल सपेरों को सौंपा गया है। जौनपुर, इलाहाबाद, मिर्जापुर, लखनऊ के सपेरे भी हमेशा स्मगलर्स के कॉन्टैक्ट में रहते हैं। जैसा ऑर्डर मिलता है उसी के हिसाब से स्नैक जुटाये जाते हैं। यदि कभी कोई बड़ा ऑर्डर आया तो दूसरे स्टेट के सपेरों से स्नैक को लिया जाता है।

ड्रैगन तक पहुंचते हैं स्नैक्स

सांपों को खाने के साथ ही इनके चमड़े और हड्डी का भी बेहतर यूज होता है। लोकल स्मगलर्स पहले गोरखपुर के कुछ स्मगलर्स के साथ काम करते थे। बॉर्डर पर सख्ती होने से अब वेस्ट बंगाल के कुछ लोगों के साथ काम कर रहे हैं। यहां से भेजा गया माल वेस्ट बंगाल भेजा जाता है। यहां कुछ लेदर का उपयोग होता है। बाकी माल बांग्लादेश के रास्ते चीन तक पहुंचता है। स्नैक्स को ट्रेनों से ही वेस्ट बंगाल भेजा जाता है। इसमें रिस्क काफी कम होता है। एक बार में एक दर्जन स्नैक्स को छोटे-छोटे घड़ेनुमा पोटली में बंद कर एयर बैग में रखकर भेजा जाता है।

डिमांड पर 'जिंदा या मुर्दा'

वैसे तो स्नैक को जिंदा ही भेजा जाता है। डिमांड के हिसाब से उनका चमड़ा निकाला जाता है या जिंदा ही आगे बढ़ा दिया जाता है। वैसे यदि कोई डिमांड करे तो चमड़े को यहां भी निकाला जाता है। उसके लिए स्नैक को बड़े ही बेरहमी से किल किया जाता है। फिर चमड़े को निकालकर नमक आदि लगाकर सुखा दिया जाता है। हालांकि यहां चमड़े आसानी से नहीं निकल पाते इसलिए उसे अच्छे कारखानों में निकाला जाता है।

Use of snakes

मेडिकल से लेकर फैशन इंडस्ट्री तक सांपों की बेहद डिमांड होती है। खासतौर पर चाइनीज मेडिसिन में तो सांप का काफी यूज होता है। इसकी हड्डी से कई दवाइयां बनती हैं। कहा जाता है कि सांप का मांस खाने से सेक्स पावर बढ़ता है। इस वजह से कई लोग इस मांस को लाइक करते हैं। सांप अपने पुराने चमड़े को केचुल के रूप में बदलता है। स्किन डिजीज के उपचार में इसको यूज किया जाता है। फैशन जगत में सांप के तो सभी दीवाने हैं। इसका चमड़ा काफी सॉफ्ट व शाइनिंग होता है। इसका बेल्ट, पर्स व शूज भी बनाया जाता है। इसकी कीमत काफी अधिक होती है। सांप के चमड़े से बने सामानों को यूज करना स्टेटस सिंबल माना जाता है।

कोबरा की है स्पेशल डिमांड

पूर्वाचल में गेहुअन, कोबरा, धामिन, करैत, अजगर व पानी के सांप पाये जाते हैं। कोबरा बेहद जहरीला होता है। इसके चलते कोबरा की काफी डिमांड होती है। इसका लेदर भी बेहद शाइनिंग होता है। इसलिए भी इसकी काफी डिमांड होती है।

रेलवे के आलाधिकारियों से मिलकर इस बेहद गंभीर मसले पर चर्चा की जाएगी। हर तरह से इस पर कठोर कदम उठाया जाएगा।

मनोज सोनकर

डीएफओ, सारनाथ