- एक से लेकर तीन डिग्री तक कम रहता है तापमान

- संक्रमण के दौर में लोगों को समझ में आया पर्यावरण संरक्षण और उसका महत्व

- एसी छोड़ लोगों ने शुद्ध हवा की तलाश शुरू कर दी

- लोग अपने घरों के पास पीपल, नीम, अशोक बरगद आदि पेड़ों को ढूंढने लगे

:: प्वाइंटर ::

2020

में एक हजार से अधिक पेड़ विकास की बलि चढ़ गए

232

पेड़ अबतक काटे जा चुके हैं जेपी मेहता से शिवपुर सेंट्रल जेल रोड पर

इस भागती-दौड़ती जिंदगी में व्यस्त लोग अपनी आधुनिक जीवन शैली में मशगूल थे, तभी अचानक एक वैश्विक महामारी ने सुनामी की तरह दस्तक दी और सब कुछ थम सा गया। वातानुकूलित कमरों में निश्चित बैठे लोगों के माथे पर पसीने की बूंद टपकने लगी। एसी जो ऑक्सीजन का पर्याय माने जाने लगा था, उसे छोड़ लोगों ने शुद्ध हवा की तलाश शुरू कर दी। लोग अपने घरों के पास पीपल, नीम, अशोक बरगद आदि पेड़ों को ढूंढने लगे। शायद अब पर्यावरण संरक्षण और उसका महत्व भी समझ आने लगा। विकास के नाम पर कटते गए पड़ों को अगर सरंक्षित किया होता तो लोगों को ऑक्सीजन के लिए सिलेंडर पर निर्भर नहीं होना पड़ता। शायद कोरोना से इतनी मौत भी नहीं होती। खैर अब भी चेत जाए तो आने वाला कल बेहतर हो सकता है। इन सबके बीच कुछ जगहों की हरियाली लोगों को राहत दे रही है। बीएचयू परिसर, डीरेका, कैंटोमेंट क्षेत्र की ग्रीन बेल्ट। शहर के बीच यहां की हरियाली शहरवासियों के लिए ऑक्सीजन बैंक की तरह है। इन जगहों का तापमान शहर से एक से लेकर तीन डिग्री तक कम रहता है।

घटती गई हरियाली

कभी काशी आनन-कानन क्षेत्र हुआ करता था। गंगा घाट से लेकर जनपद की अंतिम छोर तक हरियाली रहती थी, लेकिन बढ़ती आबादी और विकास की रफ्तार ने काशी को हीट लैंड बना दिया। एक-दूसरे से सटकर बने घरों के कारण तापमान और बढ़ जाता है। इसके अलावा लगातार कट रह पेड़ों की वजह से बनारस के तापमान में लगातार बढ़ोत्तरी हो रही है। बदलते बनारस में सराकार की करीब 200 परियोजनाओं से शहर की सड़कों से लेकर गलियां में विकास कार्य चल रहा है, लेकिन उसी रफ्तार से हरियाली भी कम हो रही है। 2020 में एक हजार से अधिक पेड़ों की विकास की बलि चढ़ चुकी हैं। वर्तमान समय में जेपी मेहता से शिवपुर सेंट्रल जेल रोड पर पड़ों की कटाई चल रही है। इस रोड पर अब तक 232 पेड़ काटे गए हैं। अभी 50 पेड़ काटने की तैयारी है। अधिकतर पेड़ ऑक्सीजन देने वाले थे।

ये जगह हैं ऑक्सीजन बैंक

हीट लैंड में तब्दील हो रही काशी में कुछ जगहों की हरियाली लोगों को राहत दे रही है और यह हैं काशी हिंदू विश्वविद्यालय परिसर, डीरेका, कैंटोमेंट क्षेत्र, काशी विद्यापीठ, संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय और सिगरा स्टेडियम की ग्रीन बेल्ट। शहर के बीच यहां की हरियाली शहरवासियों के लिए ऑक्सीजन बैंक की तरह है। वायु प्रदूषण के कारण परेशान लोग सुबह और शाम शुद्ध ऑक्सीजन के लिए यहीं पहुंचते हैं। यहां का तापमान शहर से 1-3 डिग्री कम रहता है। बीएचयू की हरियाली बढ़ते तापमान पर हमेशा भारी रहती है। यहां का तापमान शहर की तुलना में आमतौर पर तीन डिग्री कम रहता है। महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ, संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय, कैंटोमेंट क्षेत्र और सिगरा स्टेडियम भी लोगों को राहत पहुंचा रहे हैं।

ये हैं हीट जोन

नदेसर, सिगरा, लहुराबीर, गोदौलिया, लक्सा, चौक, भेलूपुर, दुर्गाकुंड, लंका, जैतपुरा, मंडुआडीह, महमूरगंज, पांडेयपुर, शिवपुर, राजघाट और लहरतारा।

इन वजह से बिगड़ रही स्थिति

-बेतरतीब और सटकर बने बहुमंजिला भवन

-सूर्य की रोशनी अवशोषित होने के लिए न तो खुली जगह है और न ही पेड़-पौधे

-कंक्रीट और डामर से बनीं सड़कें और फुटपाथ

-एसी का ज्यादा इस्तेमाल

-कृषि भूमि का क्षेत्रफल घटना

-पेड़ों ज्यादा काटे गए, नए पौधे कम लगे

-कई तालाब पाटकर कॉलोनियां बसा दी गईं

::: बॉक्स :::

क्या है हीट जोन

बेतरतीब और सटाकर बनते घरों और ऊंची इमारतों के कारण सरफेस एरिया बढ़ जाता है। इसके कारण गर्मी तेजी से बढ़ती है। इसे ही अरबन हीट आईलैंड इफेक्ट (हीट जोन) के तौर पर जाना जाता है। यहां का तापमान तुलनात्मक रूप से तीन से चार डिग्री तक अधिक रहता है।

विश्वविद्यालय का तापमान गर्मी में औसतन 2 से 3 डिग्री कम रहता है। बारिश भी शहर की अपेक्षा विश्वविद्यालय परिसर में अधिक होती है। अगर शहर को हीट आइलैंड बनने से बचाना है तो हमें शहर में बड़े स्तर पर पौधरोपण करना होगा।

-प्रोफेसर एसएन पांडेय, बीएचयू

हमारे जीवन के लिए पेड़ बहुत जरूरी हैं। जीने के लिए ऑक्सीजन औषधि की आवश्यकता होती है, जो पेड़ से ही मिलती है। जिनता घना वृक्ष होगा, उतना ही ऑक्सीजन देगा। वैसे एक अनुमान के मुताबिक एक घने बरगद के पेड़ से 100 से अधिक लोगों को ऑक्सीजन मिलता है। कार्बनडाइ ऑक्साइड समेत प्रदूषण को आबर्जव करता है।

-डॉ। बीडी त्रिपाठी, पर्यावरणविद्