- इंपीरियल बैंक की है 75 साल पुरानी पासबुक

- रासायिक उपचार व जापानी टिशू पेपर से दिया नया जीवन

DEHRADUN: करीब 7भ् साल पुरानी बैंक की एक पास बुक। शायद यह सुनकर आश्चर्य हो, लेकिन यह सच है और यह पासबुक एक शख्स ने संभालकर रखी है। ये सामान्य पासबुक नहीं है, यह पासबुक याद दिलाती है भारत-पाक विभाजन की। इस पासबुक को आज तक सहेजकर रखने वाले सुनील कुमार ने विशेषज्ञों के सहयोग और रासायनिक उपचार के जरिए इसे सुरक्षत रखा है। यह पासबुक ऐतिहासिक महत्व के इंपीरियल बैंक की है।

पासबुक से भावनात्मक लगाव

माना जा रहा है कि दून घाटी में यह पहला प्रयास होगा, जिसमें भारत विभाजन से पहले का कोई दस्तावेज वैज्ञानिक तरीके से संरक्षित किया गया हो। दरअसल, भ्0 वर्षीय सुनील सोनकर, जो ल्यूड्स नाम से भी जाने जाते हैं, एक पब्लिक स्कूल में फुटबॉल कोच हैं। उनके पास एक पासबुक सालों से यूं ही पड़ी हुई थी। जो नमी व कीटों के कारण खराब हो चुकी थी। नेशविला रोड निवासी सुनील की मानें तो उनके लिए यह दस्तावेज किसी भावनात्मक दस्तावेज से कम नहीं है। सुनील कहते हैं कि उनके दादा कालीचरण सियालकोट (अब पाकिस्तान)आर्मी कैंटोनमेंट में ठेकेदार के तौर पर कार्य करते थे। उन्होंने ख्ब् अगस्त क्9ब्क् में इंपीरियल बैंक ऑफ इंडिया जो कि क्9भ्भ् में भारतीय रिवर्ज बैंक बना, में अपना खाता खोला था।

पासबुक में भ् रुपए 9 पैसे बैलेंस

पासबुक की एंट्री बताती है कि खाताधारक ने भारत विभाजन की आहट के बीच क्9ब्म् में अपने खाते से ज्यादातर धन निकाल लिया था। क्भ् जुलई क्9ब्7 को बचे हुए 70 रुपए 9 पैसे में से म्भ् रुपए निकाल लिए थे। उसके बाद वे अपने ससुराल रुड़की आ गए। उसके बाद वे सियालकोट नहीं गए। सुनील कुमार बताते हैं कि उनके दादा कालीचरण को विश्वास रहा होगा कि बंटवारे के बाद सियालकोट में हालत सुधर जाएंगे और वहां जा पाएंगे। इसलिए उन्होंने अपने खाते में न्यूनतम धनराशि पांच रुपए 9 पैसे छोड़कर रखे हुए थे। लेकिन उनकी मुराद पूरी नहीं हो पाई। हालांकि अब उनका परिवार दून में रह रहा है। उनके परिवार वालों ने उनके सियालकोट से संबंधों को आज भी पास बुक के जरिए सहेज कर रखा हुआ है। सुनील कुमार कहते हैं कि कहने के लिए पासबुक मामूली है, लेकिन उनके लिए यह किसी ऐतिहासिक महत्व से कम नहीं है। इसीलिए उन्होंने पास बुक के रख-रखाव के लिए हिमालयन वॉल ऑफ फेम दिल्ली संस्था की मदद ली। सुनील बताते हैं कि उनकी दादी उन्हें सियालकोट के बारे में बताया करती थीं। उस वक्त उनका परिवार पलखू-परखतकुआं नामक स्थान पर सियालकोट में रहा करता था। सुनील कहते हैं कि वे खुश हैं कि उनकी आने वाली पीढि़यां भी इस दस्तावेज को देखकर अपने अतीत से रूबरू हो सकेंगे।

ऐसे सहेजी पासबुक

7भ् साल पुरानी पासबुक को रि-स्टोर दिल्ली से कराया गया। कीटनाशक उपचार के बाद जापानी टिशू पेपर का प्रयोग किया गया है। इसके बाद क्9ब्क् की पासबुक को नया जीवन दिया गया है। कंजर्वेशन एक्सपर्ट एसके चौधरी कहते हैं कि सुनील सोनकर की भावनाओं को देखते हुए उन्होंने बिना कोई शुल्क लिए पासबुक को संरक्षित किया।