-किशोर को यकीन था कि उन्हें राज्यसभा भेजा जाएगा

-अब टिहरी सीट भी हाथ से जाती दिख रही है

देहरादून

प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष किशोर उपाध्याय फिर पुराने तेवरों में लौट आए हैं। इस बार तो अंदाज और कड़क दिख रहा है। उन्होंने फिर सीधे सीधे सीएम के खिलाफ मोर्चा खोला है। 18 मार्च के बाद किशोर का अंदाज कुछ बदला था। जब तब सरकार के खिलाफ आवाज उठाने वाले किशोर उपाध्याय पूरी तरह नरम पड़ गए थे। बगावत के बाद पीसीसी अध्यक्ष सरकार का हाथ मजबूती से थामकर चल रहे थे, लेकिन अचनाक 31 मई को राज्यसभा के लिए प्रदीप टम्टा का नाम फाइनल होने के बाद उनके तेवर फिर तल्ख हो गए। आखिर उनके इन तल्ख तेवरों में उनका राजनीतिक दर्द छलक रहा है।

इन सवालों के क्या मायने?

पिछले दो दिनों से किशोर उपाध्याय ने अपनी ही पार्टी की सरकार को यूपीसीएल के एमडी एस एस यादव के स्टिंग को लेकर घेर रखा है। किशोर का तर्क है कि इससे सरकार की छवि खराब हो रही है। भ्रष्टाचार के प्रति सरकार सजग है तो उसे यादव को जांच पूरी होने तक छुट्टी पर भेज देना चाहिए। इस बाबत किशोर ने सीएम को खुला खत भी लिखा है। इस पर विपक्ष ने किशोर की तारीफ भी की लेकिन वह यह सवाल भी उठा रहा है कि किशोर सीएम के स्टिंग पर चुप क्यों हैं। वो ये क्यों नहीं कहते कि सीएम भी जांच पूरी होने तक पद छोड़ दें। स्टिंग से पहले किशोर उपाध्याय ने टम्टा की राज्यसभा उम्मीदवारी पक्की होने के बाद किशोर ने क्षेत्रीय अंसुतलन का मुद्दा उठाकर अपनी ही सरकार को कठघरे में खड़ा कर दिया। उन्होंने यहां तक कहा कि महत्वपूर्ण पदों पर गढ़वाल का प्रतिनिधित्व कम कर सरकार 2017 में अपने लिए मुसीबत खड़ी कर रही है।

किशोर की मन की टीस

दरअसल यह सब किशोर उपाध्याय का वो दर्द है जो वे सीधे-सीधे नहीं कह पा रहे हैं। 18 मार्च की बगावत के बाद किशोर को अपनी राज्यसभा की सीट पक्की लग रही थी। 31 मई को जब अचानक प्रदीप टम्टा का नाम फाइनल किया गया तो किशोर का पत्ता कट गया। इसके बाद उन्हें सिर्फ एक उम्मीद शेष लगी। वो विधानसभा चुनाव में टिहरी से टिकट मिलने की। लेकिन राज्यसभा सीट के नाम पर कांग्रेस से नूरा कुश्ती के बाद मैदान से हटे दिनेश धनै ने रही-सही कसर भी पूरी कर दी। अंदरखाने चर्चा यही है कि धनै से वादा किया गया है कि उन्हें उनकी मनपसंद टिहरी सीट से ही टिकट दिया जाएगा।

किशोर करें तो क्या करें?

राज्यसभा का सपना टूटा और अब विधानसभा चुनावों में टिहरी से टिकट की हसरत भी जाती दिख रही है। ऐसे में किशोर उपाध्याय की हालत खिसियानी बिल्ली खंभा नोचे वाली हो गई है। किशोर उपाध्याय जब तब अपने बयानों से मुख्यमंत्री हरीश रावत को असहज करते रहे हैं। पहले उन्होंने पीडीएफ को बाहर करने की मांग उठाई थी। फिर संगठन को तवज्जो न देने पर खूब बयानबाजी की। इतना ही नहीं, सीएम को घोषणावीर साबित करने में भी कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी। अब किशोर को अपनी राजनीतिक जमीन खिसकती दिख रही है। ऐसा नहीं है कि किशोर को किसी दूसरी सीट से टिकट नहीं मिल सकता, लेकिन सिर्फ टिहरी सीट को ही वे खुद के लिए मुफीद मानते हैं। दूसरी सीटें उनके लिए खतरे की घंटी हैं।