- आपसी टकराव से प्रभावित हो रही राज्य की तीन यूनिवर्सिटी

- यूटीयू, आयुर्वेद और मेडिकल यूनिवर्सिटी में लगातार सामने आ रहे मामले

DEHRADUN: प्रदेश की हायर एजुकेशन इस वक्त बुरे हालातों से गुजर रही है। इसकी बड़ी वजह आपसी मतभेद, राजनीति और अंतर्कलह है। दरअसल बीते कुछ दिनों में संस्थानों में ऐसे मामले सामने आ चुके हैं। जो इस बात की तस्दीक करते हैं। आलम यह है कि अभी भी इन मामलों पर विराम नहीं लग पाया है।

लगी इस्तीफों की झड़ी

उत्तराखंड ओपन यूनिवर्सिटी के कुलपति और वुमेन इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी की डायरेक्टर के बीच विवाद, उत्तराखंड आयुर्वेद यूनिवर्सिटी में कुलपित की नियुक्ति को लेकर विवाद के बाद इस्तीफा, राजकीय दून मेडिकल कॉलेज में लगातार अनुशानहीनता व अन्य कारणों के चलते इस्तीफों की झड़ी। यह ऐसे कुछ चुनिंदा मामले हैं जिनके कारण हायर एजुकेशन में शिक्षा व्यवस्था चरमरा रही है। बीते कुछ समय में हायर एजुकेशन से जुड़े संस्थानों में गड़बडि़यों और आपसी राजनीति जैसे मामले सामने आने की संख्या में काफी इजाफा हुआ है। इसकी बड़ी वजह बाहरी राजनीतिक दबाव और वर्चस्व की लड़ाई भी मानी जा रही है। सूत्रों की मानें तो ज्यादा मामलों में आपसी मतभेदों के चलते ऐसे मामले जन्म ले रहे हैं।

यूटीयू और डब्ल्यूआईटी दो ध्रुव

डब्ल्यूआईटी की डायरेक्टर डा। अलकनंदा अशोक और यूटीयू के कुलपति प्रो। पीके के बीच जारी शीत युद्ध जगजाहिर है। एक फैकल्टी की सर्विस कंटीन्यू नहीं करने से शुरू हुआ मामला तूल पकड़ता गया और अब इसका खामियाजा न सिर्फ संस्थान की छात्राएं, बल्कि हाल में नियुक्ति को चुने गए क्ख् युवाओं ने भी झेली। कुलपति के हर निर्देश में खामियां बताकर संस्थान की ओर से वापस भेजा जा रहा है तो यूनिवर्सिटी अपनी ओर से निर्देशों पर निर्देश जारी करने में लगी है। ऐसे में यूनिवर्सिटी और डब्ल्यूआईटी संस्थान दो विपरीत दिशाओं में शिक्षा को ले जाने का कार्य कर रहे हैं।

नियुक्ति को लेकर विवाद

उत्तराखंड आयुर्वेद यूनिवर्सिटी में कुलपति के पद पर प्रो। एसपी मिश्रा को दोबारा नियुक्ति देने का मामला इन दिनों काफी चर्चाओं में है। हालांकि मामले में क्8 अक्टूबर को कोर्ट द्वारा फैसला सुनाया जाना बाकी है। लेकिन इससे पहले ही नियुक्ति के विवाद के चलते कुलपति ने अपना इस्तीफा राज्यपाल को भेज दिया। आयुष सचिव डॉ। भूपेंद्र कौर के मुताबिक अभी उनका इस्तीफा स्वीकार नहीं किया गया है। एक्ट के तहत मामले की जांच के बाद राज्यपाल को संस्तुति भेजी जाएगी। इसके अलावा यूनिवर्सिटी पूर्व रजिस्ट्रार डा। मृत्युंजय मिश्रा और एकेडमिक मामलों को लेकर भी बीते दिनों काफी चर्चाओं में रह चुकी है।

तीन महीने में आधा स्टाफ ने दिया इस्तीफा

राजकीय दून मेडिकल कॉलेज में भी हालात कुछ खास बेहतर नहीं हैं। बीते दो से तीन महीने के बीच संस्थान से इस्तीफा देने वालों की संख्या आधा दर्जन पहुंच चुकी है। आलम यह है कि अभी संस्थान पूरी तरह से शुरू भी नहीं हो पाया है। और इस्तीफों की झड़ी लगनी शुरू हो गई है। इसके अलावा संस्थान में प्राचार्य और चिकित्सा अधीक्षक के बीच तनातनी का मामला भी बीते दिनों सामने आ चुका है। ऐसे में सबसे बड़ा सवाल यह है कि इन हालातों के चलते हायर एजुकेशन की स्थिति में किस प्रकार सुधार लाया जाएगा। सरकार से लेकर शासन और संस्थान प्रशासन इस ओर अभी भी गंभीर नजर आता दिखाई नहीं दे रहा है।