देहरादून ब्यूरो।
गांव में चिनपुणियां देवता के पूजा और भंडारे का आयोजना गांव की 50 से ज्यादा विवाहिता बेटियों की ओर से किया गया था। इस सामूहिक पूजा में न सिर्फ गांव के सभी परिवार शामिल होने पहुंचे, बल्कि सभी बेटियां में अपने परिवार के साथ आई। करीब 300 की आबादी वाले गांव के मंदिर में 600 से ज्यादा लोग जमा हुए।

अब देवताओं से ही उम्मीद
गांव की 60 वर्ष से लेकर 23 वर्ष तक की बेटियां और उनके परिवार पूजा में शामिल हुए। इन बेटियों का कहना था कि जब तक गांव था, जब तक त्योहारों पर, शादी-विवाह में और दूसरे कई मौकों पर सभी से मिलना-जुलना हो जाता था, अब गांव ही नहीं रहा तो फिर मिलने के सभी रास्ते भी बंद हो गये हैं। इस पूजा और भंडारे के बहाने उन्होंने प्रयास किया कि एक बार फिर से सभी लोग मिल-जुल लें। गांव की बेटियों के अनुसार अब सरकार से कोई मदद मिलने की उम्मीद खत्म हो गई है, इसलिए वे ग्राम देवता की शरण में हैं।

एक ही जगह बसें सब
इन बेटियों का कहना है कि हम जनजातीय लोगों के अगल पर्व त्योहार होते हैं, अलग मान्यताएं हैं। हम लोगों की सबसे बड़ी ताकत सामूहिकता है। हम अपने सभी त्योहार और सभी पूजाएं सामूहिक रूप से करते हैं। ऐसे में हम चाहते हैं सभी परिवार एक साथ एक ही जगह बसें, ताकि इस तरह की सामूहिक पूजाएं हम करते रहें। यदि गांव के परिवार अलग-अलग जगह बसते हैं तो हमारी ये सामूहिक परंपराएं पूरी तरह खत्म हो जाएंगी।

बेटियों के विदा होते ही निराशा
लोहारी के स्कूल और देवता के मंदिर में दिनभर हंसी-खुशी का माहौल रहा। लोहारी के घर इन दिनों झील से बाहर हैं, दिनभर बेटियां टूटे और एक बार डूब चुके घरों में जाकर पुरानी यादें तलाशती रही। टूटे घरों से लेकर गांव के ऊपर बने चिनपुनियां देवता के मंदिर तक गहमा-गहमी रही। लेकिन, भंडारा खत्म होते ही बेटियां एक-एक कर विदा होने लगी। दरअसल गांव में रुकने के लिए जगह ही नहीं है। शहरों से आये परिवार ही शाम होते-होते लौट गये और गांव में फिर से सन्नाटा पसर गया। लोगों के चेहरों पर फिर से निराशा झलकने लगी।