- अब 30 लाख रुपए नहीं, पांच साल अनिवार्य सेवाएं देनी होंगी डॉक्टरों को

- चिकित्सा शिक्षा व स्वास्थ्य विभाग कर रहा है डॉक्टरों की तैनाती पर मंथन: सूत्र

DEHRADUN: राज्य गठन से लेकर अब तक डॉक्टरों की कमी से जूझ रहे सूबे में डॉक्टरों को पहाड़ चढ़ाने में सरकारें नाकाम ही साबित हुई हैं। अब एक बार फिर सरकार डॉक्टरों को पहाड़ चढ़ाने की कवायद में जुटी है। कुछ दिन पहले चिकित्सा शिक्षा मंत्री दिनेश धनै पासआउट होकर बॉंन्ड तोड़ने वाले डॉक्टरों पर सख्ताई की बात कह चुके हैं, लेकिन बताया जा रहा है कि अब चिकित्सा शिक्षा, स्वास्थ्य विभाग व शासन बॉन्ड तोड़ने पर फ्0 लाख की अनिवार्यता खत्म करने की व्यवस्था कर रही है, अब डॉक्टरों को पहाड़ों में अनिवार्य रूप से पांच साल की सेवाएं देनी ही पड़ेंगी।

हमेशा रही डॉक्टरों की कमी

प्रदेश के दो सरकारी मेडिकल कॉलेजों से निकलने वाले डॉक्टर्स अब तक सूबे के पहाड़ी इलाकों में अपने सेवाएं देने से मुकर रहे हैं। राज्य निर्माण से लेकर अब तक सरकारों की तरफ से तमाम प्रयास किए गए, लेकिन सब धरे के धरे रह गए। अब तक सरकार ने सरकारी मेडिकल कॉलेजों से निकलने वाले डॉक्टरों के सामने शर्त रखी थी, कि या तो डॉक्टर्स पांच साल तक अपनी सेवाएं सूबे के दूरस्थ क्षेत्रों में देंगे या फिर बॉन्ड तोड़ने पर फ्0 लाख का जुर्माना देंगे। इस शर्त को भी नए डॉक्टरों ने तोड़कर फ्0 लाख रुपए तक का जुर्माना भर दिया और पहाड़ों में सेवा देने से मना कर दिया।

फ्0 लाख नहीं, सेवा जरूरी

पास आउट होकर पहाड़ों में सेवाएं देने से मुंह मोड़ रहे डॉक्टरों पर अब सरकार सख्त होती दिख रही है। हाल में ऐसे डॉक्टरों पर चिकित्सा शिक्षा मंत्री ने सख्त कार्रवाई के निर्देश दिए थे, जिसके बाद अब चिकित्सा शिक्षा व स्वास्थ्य विभाग शासन के साथ मिलकर नए पैमाने तैयार करने पर रिहर्सल कर रही है। सूत्रों के अनुसार अब यह तय हो पाया है कि फ्0 लाख रुपए जुर्माने के बजाय पांच साल की पहाड़ों में सेवा अनिर्वायता पर विचार हुआ है। हालांकि यह भी मंथन हुआ कि जब तक नए डॉक्टर्स पहाड़ों में सेवाएं नहीं देंगे तो उन्हें डिग्री भी नहीं दी जाएगी, लेकिन बताया जा रहा है कि इसमें भी कानूनी पेंच सामने आ रहे हैं। चिकित्सा शिक्षा के निदेशक डॉ। आशुतोष सयाना के अनुसार चिकित्सा शिक्षा मंत्री के निर्देश पर पहाड़ों में डॉक्टरों की तैनाती पर नए सिरे से काम चल रहा है।

-------

विभागों में सामंजस्य जरूरी

सूत्रों के अनुसार सुदूरवर्ती क्षेत्रों में नए डॉक्टरों की तैनाती का पेंच दो विभाग के बीच फंसता रहा है। कारण, चिकित्सा शिक्षा विभाग डॉक्टरों के पास आउट होने के बाद जिम्मेदारी नहीं रख पाता है। जबकि तैनाती के बाद डॉक्टर्स क्षेत्रों में काम कर रहे हैं या नहीं, यह जिम्मेदारी स्वास्थ्य विभाग की होती है। ऐसे में डॉक्टरों की नियमित तैनाती रखने का मामला दो विभागों में फंसता रहा है, लेकिन अब शासन स्तर पर दोनों विभागों के बीच सामंजस्य बिठाया जा रहा है।