बच्चे हिंसा का शिकार हो रहे हैं। उन पर तमाम प्रकार के जुल्म किए जा रहे हैं। इतना ही नहीं उन्हें उनके अधिकारों से वंचित रखा जा रहा है। यही कारण है कि वह आगे चलकर हिंसक बन रहे हैं। इस हिंसा और उत्पीडऩ के सबसे ज्यादा शिकार सरकारी स्कूल्स में पढऩे वाले बच्चे हैं। ये भी बताया गया है कि सरकारी स्कूल्स में पढऩे वाले करीब 90 परसेंट बच्चे पहले घर में फिर स्कूल्स में ऐसे दुव्र्यवहार का सामना करते हैं।

बच्चों पर हिंसा

बच्चों पर होने वाली हिंसा को लेकर पिछले 2006 से सर्वे चल रहा है, जिसमें पाया गया है कि बच्चों पर घर से लेकर सरकारी स्कूल्स तक तमाम प्रकार की हिंसा हुआ करती है। सर्वे में बताया गया कि 14 साल तक के बच्चे इस तरह की हिंसा और प्रताडऩा का शिकार होते हैं। सर्वे में बच्चों पर हिंसा करने के करीब 33 चौंकाने वाले तरीके सामने आए हैं। इसमें लात मारना, शारीरिक दंड देना, डांट-झपट करना, ताना सुनाना, तमाम तंज कसना, पिटाई, रस्सी से कुर्सी पर बांधना, गाली देना, नकारना, यौन शोषण, लिंग-भेद का फर्क गिनाना और बच्चों से एक-दूसरे का उत्पीडऩ करवाना जैसे तीन दर्जन से अधिक तरीके प्रकाश में आए हैं।

171 स्कूल्स में हुआ सर्वे

सर्वे कुछ स्टेट्स के करीब 10 हजार बच्चों के अलावा अकेले उत्तराखंड के लगभग 171 मॉडल स्कूल्स में किया गया। सभी में पाया गया कि सरकारी स्कूल्स में पढऩे वाले बच्चों पर उनके अधिकारों के विपरीत जमकर अत्याचार, उत्पीडऩ और शोषण होते हैं। इसके गुनाहगार पैरेंट्स से लेकर स्कूल्स में पढ़ाने वाले टीचर्स और स्कूल्स के क्लास मॉनिटर्स व बच्चों के सीनियर्स शामिल हैं। बताया गया है कि इस प्रकार के शोषण का शिकार हर तीन में से दो बच्चे हो रहे हैं। हालांकि ये आंकड़े अभी तक केवल सरकारी स्कूल्स में ही बताए गए हैं। सर्वे करने वाली नॉन गवर्नमेंट एजेंसी का मानना है कि ऐसी शिकायत गवर्नमेंट एडेड या गवर्नमेंट फंडेड स्कूल्स व प्राइवेंट स्कूल्स में भी देखने को मिल रही हैं, लेकिन मैनेजमेंट होने के कारण वहां सर्वे नहीं हो पा रहा है।

वर्कशॉप में सामने आई बातें

वेडनसडे को इस बाबत भुवनेश्वरी महिला आश्रम व प्लान इंडिया के तहत भयमुक्त शिक्षा पर स्टेट लेवल वर्कशॉप का आयोजन किया गया। जिसमें शिक्षा विभाग, एनजीओ, राज्य बाल संरक्षण आयोग, अजीज प्रेमजी फाउंडेशन सहित तमाम सरकारी और गैर सरकारी विभागों के अधिकारी मौजूद थे। वर्कशॉप में ये बात सामने उभर कर आई कि अब जब ‘राइट टू एजूकेशन एक्ट 2009’ देशभर में लागू हो गया है, जिसमें बच्चों के अधिकारों की बात कही गई है। इसके बावजूद भी स्कूली बच्चों को स्कूल्स में उनके अधिकार नहीं मिल पा रहे हैं।

केंद्र ने भी माना है

इन दोनों संस्थाओं के मुताबिक सर्वे में 50 परसेंट बच्चे फिजिकल पनिशमेंट के शिकार पाए गए। जिसमें से 52 ब्वॉयज व 51 परसेंट गल्र्स को दंड दिया जाता है। 78 परसेंट बच्चों के साथ बुरा बर्ताव किया जाता है। दोनों संस्थाओं का ये भी कहना है कि केंद्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्रालय ने 2007 में भी एक सर्वे में इस बात का जिक्र किया है। दोनों संस्थाओं ने सुझाव दिए कि आरटीई 2009 के तहत भयमुक्त एजूकेशन के लिए निहित अनुच्छेद 17 में बच्चों को जो अधिकार मिलें हैं, उनका सही तरीके से अनुपालन नहीं हो पा रहा है।