- एनजीटी के जुर्माना का पटना में कितना होगा असर
- प्रतिदिन तीन हजार करोड़ लीटर गंदा पानी जा रहा गंगा में
PATNA : गंगा की सफाई को लेकर नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने बड़ा प्लान तैयार किया है। वह सख्ती दिखाकर गंगा को मैली होने से बचाने के बड़े प्लान पर काम कर रही है। गंगा में कचरा डालने वालों पर भ्0 हजार रुपए जुर्माना लेने का नियम बना है लेकिन पटना की हालत काफी खराब है। पटना में प्रतिदिन फ्0 करोड़ लीटर गंदा पानी गंगा में जा रहा है। सिस्टम ही ऐसा बना है कि इस पर अंकुश नहीं लग पा रहा है। एक तरफ जहां गंगा को पास जाने की कवायद चल रही है वहीं गंगा में जा रहा गंदा पानी चुनौती है। आज दैनिक जागरण आई नेक्स्ट बताने जा रहा है प्रदूषण के कारण किस तरह से मैली हो रही है पटना में गंगा।
रोज फ्0 करोड़ लीटर गंदा पानी गंगा में
रोज राजधानी से फ्0 करोड़ लीटर गंदा पानी गंगा में जा रहा है। दानापुर से पटना तक 9 स्थानों पर ड्रेनेज से सीवरेज का पानी सीधे गंगा में बह रहा है। इसमें बीओडी, टोटल कॉली फॉर्म, फीकल कॉली फार्म की मात्रा हद से अधिक है। एक्सपर्ट्स का कहना है कि पटना में फैक्ट्री की गंदगी नहीं बल्कि फीकल काली फार्म की मात्रा 90 फीसदी गंगा को प्रदूषित कर रही है।
गंगा में प्रदूषण का स्तर
क्। बीओडी (ऑक्सीजन की मात्रा) - नदी के पानी में इसका स्टैंडर्ड फ् मिली ग्राम प्रतिलीटर से कम होना चाहिए, लेकिन यह स्तर ब् से भ् मिली ग्राम प्रतिलीटर हो गया है। इससे ये पता चलता है कि पानी बिना ट्रीट किए ही गंगा में जा रहा है। इससे जल में ऑक्सीजन कम होता है। इस कारण गंगा में रहने वाले जीव-जंतुओं का जीवन संकट में है।
ख्। पीएच (मिले हुए साबुन की मात्रा)- यह म्.भ् से 8 तक होना चाहिए लेकिन अधिकतर स्थानों पर इसकी मात्रा 8 मिली ग्राम प्रति लीटर को काफी पार कर गया है। इससे पानी के अंदर रहने वाले जलीय पौधों पर संकट होता है। जो पानी को साफ करने में लगे रहते हैं।
फ्। टोटल कॉलीफार्म (गंदगी की मात्रा) - इसका स्टैंडर्ड ख्भ्00 एमपीएन प्रति क्00 मिली लीटर या इससे कम होना चाहिए लेकिन इसकी संख्या भ्0 हजार से एक लाख एमपीएन तक पहुंच गई है। इस कारण गंगा के पानी को नहीं पिया जा सकता है।
ब्। फीकल कॉलीफार्म (मल मूत्र की मात्रा) - इसका स्टैंडर्ड भ्00 एमपीएन प्रति क्00 मिली लीटर या इससे कम होना चाहिए लेकिन इसकी मात्रा तीन हजार से क्भ् हजार तक पहुंच गई है। ये इस बात का संकेत करता है कि गंगा में सीधे तौर पर मल-मूत्र बहाया जा रहा है। इसके साथ ही गंगा में 90 फीसदी प्रदूषण का कारण भी यही है।
गंगा को गंदा करने वाले 9 प्वॉइंट
स्थान - मात्रा
क्। दानापुर कैंट ड्रेन - क्0.क्
ख्। दीघा घाट ड्रेन - 9.म्
फ्। कुर्जी ड्रेन क्ख्0.ब्
ब्। राजापुर ड्रेन ब्0.7
भ्। बांस घाट ड्रेन म्.म्
म्। क्लेक्ट्रेट ड्रेन - क्ब्.फ्
7. मितन घाट ड्रेन भ्.ब्
8. महावीर ड्रेन भ्.ब्
9. बक्शाही ड्रेन ख्क्.ब्
(एमएलडी की मात्रा मिलियन लीटर प्रतिदिन, केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अनुसार)
फ्00 एमएलडी गंदा पानी जाता है गंगा में
एक्सपर्ट की मानें तो पटना के नौ बड़े नाला के अलावा सौ से अधिक छोटे नाले खुद ही गंगा में गंदा पानी बहाते हैं। सरकारी आंकड़ा भले ही ख्फ्फ् एमएलडी का है, लेकिन हर दिन कुल गंदा पानी करीब फ् सौ एमएलडी गंगा में बहाया जाता है।
एक नजर नेशनल पाल्युशन कंट्रोल बोर्ड के इस डाटा पर भी
- 7ब् प्रतिशत गंगा सीवरेज से गंदी हो रही है
- ख्ब् प्रतिशत इंडस्ट्रिल कचरा से गंगा गंदी हो रही है
- ख् प्रतिशत आदमी से गंगा गंदी हो रही है
गंगा को तभी प्रदूषण से मुक्त बनाया जा सकता है जब मानीटरिंग सिस्टम ठीक हो। गंदगी के लिए पूरी तरह से राज्य सरकार जिम्मेदार है। कानून तो क्98म् में भी बना था लेकिन सरकार कहां पालन करती है। सरकार जिस दिन जगी गंदगी बंद हो जाएगी।
- विकास चंद्र गुडडू बाबा, संरक्षक, गंगा बचाओ अभियान